किरण मिश्रा
होली ऋषि और कृषि से जुड़ा पवित्र उत्सव है, जो कदाचित सृष्टि के आदिकाल से ऋषियों और कृषकों द्वारा मनाया जाता रहा है। आश्रमों में ऋषि और बटुक फागुन में सामवेद के मंत्रों का गान करते थे। वहीं, नई फसल के पक जाने पर किसान चटकीले फागुन में रंग-बिरंगी होली खेलते थे। शास्त्र परंपरा ने होली को अग्नि से मिलाया। अग्नि जो पवित्र है, शुद्ध है। अग्नि को समर्पित ये उत्सव कहीं इसलिए तो नहीं कि मनुष्य, वस्तुत: एक यज्ञाग्नि है। वाणी उस अग्नि का ईंधन है; सांस, धुआं है। आंखें कोयला है; और कान चिंगारियां है। इसीलिए खेतों में चमचमा रही जौ-गेहूं की बालियों को सबसे पहले अग्नि देवता को समर्पित किया जाता है। फिर होली की अग्नि-ज्वाला में नवीन धान्य को पकाकर उन पकी हुई बालियों को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।

प्राचीन काल के संस्कृत साहित्य में होली के अनेक रूपों का विस्तृत वर्णन है। श्रीमद्भागवत महापुराण में रसों के समूह रास का वर्णन है। अन्य रचनाओं में रंग नामक उत्सव का वर्णन है जिनमें हर्ष की प्रियदर्शिका व रत्नावली और कालिदास की कुमारसंभवम् तथा मालविकाग्निमित्रम शामिल हैं। कालिदास रचित ऋतुसंहार में पूरा एक सर्ग ही बसंतोत्सव को अर्पित है। भारवि, माघ और अन्य कई संस्कृत कवियों ने बसंत की खूब चर्चा की है। चंद बरदाई द्वारा रचित हिंदी के पहले महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में होली का वर्णन है। भक्तिकाल और रीतिकाल के हिंदी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशिष्ट महत्त्व रहा है। आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन सूरदास, रहीम, रसखान, पद्माकर, जायसी, मीराबाई, कबीर और रीतिकालीन बिहारी, केशव, घनानंद आदि अनेक कवियों को यह विषय प्रिय रहा है।

वास्तव में होली खुलकर और खिलकर कहने की परंपरा है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व बसंत का संदेशवाहक भी है। राग अर्थात् संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं। यही कारण है कि जोगीरे की तान में आपको सामाजिक विडंबनाओं और विद्रूपताओं का तंज दिखता है। होली की मस्ती के साथ वह आसपास के समाज पर चोट करता हुआ नजर आता है। जोगीरे होते क्या हैं? इसके बारे में सही-सही नहीं कहा जा सकता। शायद इसकी उत्पत्ति योगियों की हठ-साधना, वैराग्य और उलटबांसियों का मजाक उड़ाने के लिए हुई हो। मूलत: यह समूह गान है। प्रश्नोत्तर शैली में एक समूह सवाल पूछता है तो दूसरा उसका जवाब देता है जो प्राय: चौंकाऊ होता है। प्रश्न और उत्तर शैली में निरगुन को समझाने के लिए गूढ़ अर्थयुक्त उलटबांसियों का सहारा लेने वाले काव्य की प्रतिक्रिया में इन्हें रोजमर्रा की घटनाओं से जोड़कर रचा गया है।

फाग उत्तर भारत का एक लोकप्रिय लोकगीत है। इसमें होली खेलने का वर्णन होता है। यह हिंदी के अतिरिक्त राजस्थानी, पहाड़ी, बिहारी, बंगाली आदि अनेक प्रदेशों की अनेक बोलियों में गाया जाता है। इसमें देवी देवताओं के होली खेलने से अलग अलग शहरों में लोगों के होली खेलने का वर्णन होता है। देवी देवताओं में राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं। इसके अतिरिक्त होली की विभिन्न रस्मों की वर्णन भी होली में मिलता है।

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदू होती है। बरसाने की लठमार होली काफी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊं की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है।

बंगाल की दोल जात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन और पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित बसंतोत्सव है। जबकि मणिपुर के याओसांग में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है।