Jagannath Rath Yatra 2023: शास्त्रों में भगवान जगन्‍नाथ रथयात्रा का विशेष महत्व बताया गया है। यह रथ यात्रा उड़ीसा के पुरी शहर से हर साल निकलती है। रथ यात्रा को देखने हर साल विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्‍नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है।

आपको बता दें कि हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भव्य रथ यात्रा का आरंभ होता है। वहीं इस भव्य यात्रा का समापन  शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ अलग-अलग रथों में सवार होकर भ्रमण के लिए निकलते हैं। यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। आइए जानते हैं इस यात्रा का इतिहास और तीनों रथों के बारे में खास बातें…

जगन्नाथ जी का रथ

भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष के नाम से जाना जाता है। इस रथ पर लहरा रहे ध्वज का नाम त्रिलोक्यमोहिनी है। वहीं अगर प्राचीन काल की बात करें तो इस रथ को गरुड़ध्वज के नाम से भी जाना जाता था। वहीं इस रथ में 16 पहिए होते हैं। साथ ही यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा होता है। वहीं इस रथ में खासकर पीले रंग के कपड़े का प्रयोग किया जाता है। विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है। 

बलराम जी का रथ

भगवान बलराम जी के रथ का नाम तालध्वज है। साथ ही इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। वहीं जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा होता है। साथ ही अगर इसके पहियों की बात करें तो इसमें 14 पहिये होते हैं।

बहन सुभद्रा का रथ

गवान बलभद्र और जगन्नाथ भगवान की छोटी बहन सुभद्रा का रथ का नाम पद्मध्वज है। साथ ही रथ को तैयार करने में काले और लाल रंग के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। वहीं इसके अश्व रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता हैं। साथ ही से खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं।

रथ यात्रा का इतिहास

भगवान जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई कथाओं का वर्णन है। वहीं एक पौराणिक कथा क अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न भगवान जगन्‍नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था। साथ ही कहते हैं कि यह बाद में नष्ट हो गया है। वहीं ऐसा माना जाता है ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं वर्तमान में मंदिर की ऊंचाई 65 मीटर है। जिसको 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव और अनंग भीमदेव ने कराया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से साधक के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

यह भी पढ़ें:

मेष राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलवृष राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
मिथुन राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलकर्क राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
सिंह राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलकन्या राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
तुला राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलवृश्चिक राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
धनु राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलमकर राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल
कुंभ राशि का 2023 से 2030 का वर्षफलमीन राशि का 2023 से 2030 का वर्षफल