Hanuman Bharat Milap In Bharatkund Ayodhya: तुलसीदास द्वारा रचित रामायण में भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास, लंका दहन, रावण वध, श्री राम के अयोध्या वापसी से लेकर सरयू नदी में प्राण त्यागने तक के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है। ऐसा ही एक दोहा मिलता है जिसमें इस बात के बारे में बताया गया है कि जब मेघनाथ की शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए, तो श्री राम के परम भक्त हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर उनकी जान बचाई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संजीवनी बूटी लाते समय हनुमान जी को भी बाण लगा था, जिससे वह अयोध्या में मूर्छित होकर गिर गए थे। लंका कांड में इस बारे में विस्तार से बताया गया है।

अयोध्या में इनकी बाण से गिरे थे हनुमान जी

जब मेघनाथ ने अपनी शक्ति के बल से लक्ष्मण जी को मूर्छित कर दिया था। तब उन्हें जगाने के लिए हनुमान जी सबसे बड़े वैद्य सुषेन वैद्य को ले आए थे। फिर उन्होंने ही पवन पुत्र हनुमान को संजीवना लाने के लिए भेजा था। जब हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे, तो उन्हें संजीवनी की सही पहचान नहीं हो पा रही थी, तो वह पूरे पर्वत को लेकर ही आ रहे थे। तब वह अयोध्या के ऊपर से निकले, तो भरत जी ने उन्हें देखा।

देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि॥58॥

भरत जी ने हनुमान जी का विशाल स्वरूप देखा और उन्होंने अनुमान लगाया कि कोई राक्षस है और उन्होंने कान तक धनुष को खींचकर बिना फल का एक बाण चला दिया।

परेउ मुरुछि महि लागत सायक। सुमिरत राम राम रघुनायक॥
सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए। कपि समीप अति आतुर आए॥1॥

बाण लगने के बाद हनुमान जी ‘राम, राम, रघुपति’ का नाम लेते हुए अयोध्या की धरती में मूर्छित होकर गिर। जब भरत ने हनुमान जी के मुख से राम नाम सुना, तो वह दौड़ते हुए उनके पास आए।

बिकल बिलोकि कीस उर लावा। जागत नहिं बहु भाँति जगावा॥
मुख मलीन मन भए दुखारी। कहत बचन भरि लोचन बारी॥2॥

हनुमान जी को उदास देखकर भरत जी ने उन्हें कई बार जगाया। पर वह जाग ही नहीं रहे थे, तो वह उदास हो गए। भरत जी का मन काफी व्याकुल हो गया और अपने नेत्रों में जल भरकर उन्होंने कहा…

जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा। तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा॥
जौं मोरें मन बच अरु काया॥ प्रीति राम पद कमल अमाया॥3॥

जिस भगवान ने श्री राम से विमुख किया। एक बार फिर उसने ये भयानक दुख दिया। अगर मेरे मन, वचन और शरीर में श्री राम के चरण कमल के प्रति मेरा प्रेम है, तो…

तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला। जौं मो पर रघुपति अनुकूला॥
सुनत बचन उठि बैठ कपीसा। कहि जय जयति कोसलाधीसा॥4॥

इसके साथ ही रधुनाथ जी मुझपर प्रसन्न हो, तो यह वानर सही हो जाए। ये सुनते ही हनुमान जी कोसलपति श्री रामचंद्रजी की जय हो के साथ उठ खड़े होते हैं।

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥60 क॥

इसके बाद भरत जी से हनुमान जी को गले लगा लिया और प्रभू श्री राम के बारे में सब पूछा। इसके बाद हनुमान जी ने पूरा वृतांत बताकर उनसे विदा लेकर संजीवनी बूंटी लेकर वह लक्ष्मण जी के पास निकल गए।

कहां पर भरत जी से मिले थे हनुमान जी?

भगवान हनुमान मूर्छित होकर अयोध्या से लगभग 23 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में गिरे थे। जहां पर उनकी मुलाकात भरत जी से हुई थी।

नंदीग्राम भरतकुंड क्या है?

बता दें कि जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास में गए थे, तो भरत ने भी राज पाठ का त्याग कर दिया था और नंदीग्राम में आकर तपस्या की थी। उन्होंने अयोध्या के सिंहासन में श्री राम के खड़ाऊ को प्रतीक के रूप में रख दिया। इसी जगह पर भरत मिलाप किया था। इसके साथ ही इसी तरह पर महाराज दशरथ ने अपने प्राण त्यागे थे। इसके बाद पिता का पिंडदान करने के लिए नंदीग्राम कुंड का निर्माण हुआ था। इसी को भरत कुंड कहा जाता है।