Govardhan Puja Vidhi, Mantra, Samagri: दिवाली से अगले दिन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपाद तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है। इस पूजा का खास महत्व है। इस वर्ष 8 नवंबर को उत्तर भारत में यह त्योहार मनाया जा रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इंद्र को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया। इस दिन भगवान कृष्ण ने स्वर्ग के देवता इंद्र देव का घमंड तोड़ा था। तब कृष्ण जी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कानी उंगली पर उठा लिया। इसके बाद सब को अपने गाय सहित पर्वत के नीचे शरण लेने को कहा। इंद्र देव को काफी समय बीत जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के घमंड को तोड़ने के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन और पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें।
पूजा विधि: इस दिन सुबह-सुबह गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। यह मनुष्य के आकार के होते हैं। गोवर्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों और पेड़ों का डालियों से सजाया जाता है। गोवर्धन को तैयार कर शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। ‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में बताया गया है। अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल – फूल अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग माना जाता है। पूजा के बाद इस भोग को अपने परिवार, मित्रों को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करें।
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल मालाएं धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है और प्रदक्षिणा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि का इस्तेमाल किया जाता है। गोवर्धन में ओंगा यानि अपामार्ग की डालियां जरूर रखी जाती हैं। इसके अलावा गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर पानी, रोली, चावल, फूल दही और तेल का दीपक जलाकर पूजा करते हैं और साथ में परिक्रमा की जाती है।
आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है। मान्यता है कि गोवर्धन पूजा के दिन अगर कोई दुखी है, तो पूरे साल भर दुखी ही रहेगा। इसलिए सभी को इस दिन खुश होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है।
इंद्र देव लगातार रात-दिन मूसलाधार वर्षा करते रहे। कृष्ण ने सात दिनों तक लगातार पर्वत को अपने हाथ पर उठाएं रखा। इतना समय बीत जाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं
इस तस्वीर में भगवान कृष्ण की लीलाओं को देखा जा सकता है। आप यह तस्वीर भेजकर अभी भी गोवर्धन पूजा की शुभकामना दे सकते हैं
शास्त्रों में गोवर्धन पूजा मनाने को लेकर एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, इंद्र को अपनी शक्तियों पर बहुत अधिक घमंड हो गया। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनके घमंड को तोड़ने के लिए एक लीला रची।
गोवर्धन पूजा गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस दिन गोधन यानी गायों की पूजा भी की जाती है क्योंकि कृष्ण गायों को बहुत प्रेम करते थे।
दिवाली से एक दिन बाद गोवर्धन पूजा होती है। यह पूजा कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं।
गोवर्धन जी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
जो लोग गोवर्धन पर्वत के पास नहीं हैं, वे गोबर से या भोज्यान्न से गोवर्धन बना सकते हैं। अन्न से बने गोवर्धन को ही अन्न-कूट कहते हैं। इस प्रकार से आप गोवर्धन की सही विधि से पूजा कर पाएंगे।
गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।
इंद्र ब्रह्मा जी के पास गए तब उन्हें ज्ञात हुआ की श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। देवराज इन्द्र ने कृष्ण की पूजा की और उन्हें भोग लगाया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा कायम है। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं।
इंद्र ब्रह्मा जी के पास गए थे। वहां पर उन्हें ज्ञात हुआ की श्री कृष्ण कोई और नहीं स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। इतना सुनते ही वह श्री कृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा याचना करने लगे। यह प्रसंग गोवर्धन पर्वत घटनाक्रम से जुड़ा है।
इस दिन भगवान कृष्ण ने स्वर्ग के देवता इंद्र देव का घमंड तोड़ा था। इंद्र को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया था। तब कृष्ण जी ने वर्षा से लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठा लिया था।
इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर उठा लिया था। बताते हैं कि तभी से भगवान कृष्ण का एक नाम गोवर्धन भी पड़ गया।
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपाद तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शाम के समय में विशेष रूप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है।
पूजा विधि: इस दिन सुबह-सुबह गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। यह मनुष्य के आकार के होते हैं। गोवर्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों और पेड़ों का डालियों से सजाया जाता है। गोवर्धन को तैयार कर शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। ‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में बताया गया है। अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल – फूल अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग माना जाता है। पूजा के बाद इस भोग को अपने परिवार, मित्रों को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करें।