पूनम नेगी
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से अनंत चतुर्दशी तक विध्नहर्ता गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणपति बप्पा का यह दस दिवसीय उत्सव इस बार 10 से 19 सितम्बर तक मनाया जाएगा। गजानन गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। हिन्दू धर्म में इन्हें प्रथम पूज्य की गरिमामय पदवी से विभूषित किया गया है। सनातन संस्कृति का कोई भी कार्य गणपति को नमन के बिना शुरू नहीं किया जाता क्योंकि वे विघ्नहर्ता व शुभत्व का पर्याय हैं।
दस दिवसीय उत्सव में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाते हैं। मोरया शब्द के बाबत गणेश-पुराण में एक रोचक कथा आती है। कहा जाता है कि एक बार सभी देवगण जब सिंधु नामक महा दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त हो गए, तब उन देवों की रक्षा के लिए भगवान गणेश ने अपने अग्रज के वाहन मयूर को अपना वाहन बनाया और छह भुजाओं वाला अवतार लेकर उस दैत्य का विनाश कर देवों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। तब सभी देवों ने मयूरेश्वर के रूप में उनकी विजय पर जयकारे लगाए। तभी से जन समाज के बीच वे मयूरेश्वर पूजे जाने लगे और कालान्तर में मोरया के रूप में लोकप्रिय हुए।
गणेशोत्सव के दौरान गिरिजानंदन अपने प्रत्येक भक्त के घर में अलग-अलग सुंदर स्वरूपों में पधारते हैं। प्रथम पूज्य श्री गणेश ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनकी विशाल आकृति इतना लचीलापन लिए हुए है कि हर चित्रकार को अपने-अपने नजरिए से उन्हें चित्रित करने का अवसर प्रदान करती है। गजानन की किसी मूर्ति में हाथ में लड्डू रहता है तो किसी में वे सिर पर सुंदर पगड़ी धारते हैं; किसी प्रतिमा में गणपति चूहे पर आसीन रहते हैं तो किसी में आराम से पालथी मार कर बैठते हैं तथा कहीं रोचक भाव भंगिमा में नृत्य करते दिखाई देते हैं।
उल्लेखनीय है कि गजानन गणेश की आकृति जितनी मनोहारी है, उसका तत्वदर्शन भी उतना ही शिक्षाप्रद। गणेश का गज मस्तक उनकी सर्वोपरि बुद्धिमत्ता व विवेकशील होने का प्रतीक है। उनकी सूंड़ रूपी लंबी नाक कुशाग्र घ्राणशक्ति की द्योतक है, जो हर विपदा को दूर से ही सूंघ लेती है। छोटी-छोटी आंखें गहन व अगम्य भावों की परिचायक हैं, जो जीवन में सूक्ष्म लेकिन तीक्ष्ण दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। उनका लंबा उदर दूसरों की बातों की गोपनीयता, बुराइयों, कमजोरियों को स्वयं में समाविष्ट कर लेने की शिक्षा देता है। बड़े-बड़े सूपकर्ण कान का कच्चापन न होने की सीख देते हैं। स्थूल देह में वह गुरुता निहित है, जो गणनायक में होनी चाहिए। गणेश शौर्य, साहस तथा नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। उनके हेरंब रूप में युद्धप्रियता का, विनायक रूप में यक्षों जैसी विकरालता का और विघ्नेश्वर रूप में लोकरंजक एवं परोपकारी स्वरूप का दर्शन होता है। गण का अर्थ है समूह। गणेश समूह के स्वामी हैं इसीलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक, गणपति आदि नामों से पुकारा जाता है।
देवाधिदेव महादेव और जगजननी मां पार्वती के पुत्र आदिदेव गणेश की उत्पत्ति के बारे में पौराणिक ग्रंथों में कई कथाएं वर्णित हैं। इनमें एक पौराणिक वृतांत सर्वाधिक लोकप्रिय है। इस कथानक के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने उबटन के मैल से एक बालक का पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंक दिए। उस बालक की मनोहारी छवि ने माता पार्वती के मन में वात्सल्य जगा दिया और उन्होंने उसे पुत्र बना लिया। एक दिन उस बालक को पहरेदारी का दायित्व सौंप कर माता पार्वती गुफा के भीतर स्नान को चली गईं। उसी समय महादेव वहां आए और गुफा में प्रवेश करने लगे।
बालक ने उन्हें गुफा प्रवेश से रोका तो महादेव ने पहले तो बालक समझ कर उसे समझाया किंतु उसका हठ देखकर क्रुद्ध शिव ने सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को इसकी जानकारी हुई तो उनके क्रोध से पूरे कैलाश पर कोहराम मच गया। तब उनका क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव ने उस बालक के मस्तक पर गजशीश लगाकर उसे पुनर्जीवन दिया और वह बालक गजानन गणेश के नाम से लोक विख्यात हुआ। शास्त्रीय विवरणों के मुताबिक वह पावन तिथि भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी थी। गणेश को सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक लोकप्रियता वाले देव की मान्यता हासिल है। वे भारत सहित सिंध और तिब्बत से लेकर जापान और श्रीलंका तक की संस्कृति में समाये हुए हैं।