हिन्दू धर्म में हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। संकटमोचन हनुमान अष्टक का पाठ सभी संकटों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। कहते हैं कि मंगलवार के दिन हनुमान अष्टक के विधिवत पाठ से शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं। हनुमान अष्टक का पाठ कैसे करना चाहिए इसके बारे में शास्त्रों में बताया गया है। हनुमान अष्टक पाठ के लिए कोई विशेष नियम नहीं है। इसका पाठ कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। लेकिन यदि आप तुरंत फल पाना चाहते हैं तो इसके लिए एक शास्त्रीय तरीका मौजूद है। माना जाता है कि हनुमान अष्टक के से विशेष लाभ लाने के लिए समय और विधि का ध्यान रखना चाहिए। जानते हैं कि हनुमान अष्टक मंत्र और विधि क्या है?

विधि: हनुमान अष्टक का पाठ करने के लिए आप हनुमान जी की एक तस्वीर रखें। साथ ही श्रीराम की तस्वीर को भी उसके साथ रखकर, सामने बैठ जाएं। इसके बाद दोनों तस्वीरों के सामने घी का दिया जलाएं और साथ में तांबे के गिलास में पानी भरकर भी रख दें। इसके बाद ही पूरे मन से हनुमान बाहुक का पाठ करें। जैसे ही पाठ समाप्त हो तो तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीड़ित व्यक्ति को पिला दें या जिस किसी के हित के लिए भी यह पाठ किया गया हो उसे पिला दें। पानी के साथ आप पूजा के दौरान हनुमान जी को तुलसी के पत्ते भी अर्पित कर सकते हैं। यह पवित्र तुलसी के पत्ते पूजा को अधिक सकारात्मक बनाते हैं। पाठ खत्म होने पर पीड़ित व्यक्ति को तुलसी के ये पत्ते भी खिला दें। इस तरह से व्यक्ति सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से दूर रहता है। केवल कष्ट होने पर ही नहीं, बल्कि रोजाना भी हनुमान बाहुक का पाठ करना फलदायी माना गया है।

बाल समय रवि भक्षि लियो, तब तीनहुं लोक भयो अंधियारो। ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।1। देवन आनि करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।2। बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारौ। चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिए कौन विचार विचारो।3। कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।4।

अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस ये बैन उचारो। जीवत ना बचिहों हमसों, जु बिना सुधि लाये यहां पगुधारो।5। हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया, सुधि प्राण उबारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।6। रावन त्रास दई सिय की, सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।7। चाहत सीय अशोक सों आगि, सो दे प्रभु मुद्रिका शोक निवारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।8। बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो। ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।9।

आन संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।10। रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारौ। श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयौ यह संकट भारो।11। आनि खगेश तबै हनुमान जी, बन्धन काटि सो त्रास निवारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।12। बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो। देविहिं पूजि भली विधि सों, बलि देहुं सबै मिलि मंत्र विचारो।13। जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।14। काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि विचारो। कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसौं नहिं जात है टारो।15। बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कुछ संकट होय हमारो। को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।16।

देहा: लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दनव दलन, जय जय जय कपि सूर।।