शंकर जालान

गणगौर राजस्थान व सीमावर्ती राज्य का एक त्योहार है, जो चैत्र में मनाया जाता है। गणगौर के दौरान कुंवारी लड़कियां श्रेष्ठ वर व विवाहित महिलाएं वर की सलामती के लिए शिव (इसर) और पार्वती (गौरी) की पूजा करती हैं। पूजा करते हुए दूब से पानी के छींटे देते हुए ‘गोर गोर गोमती’ गीत गाती हैं। इस दौरान गौर पर सिंदूर और चूड़ी चढ़ाने का विशेष प्रावधान है। चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है।

चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलने वाला त्योहार है गणगौर

गण (शिव) व गौर (पार्वती) के इस पर्व में कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं। विवाहित महिलाएं चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन और व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण एकम (प्रतिपदा) से चैत्र शुक्ल तृतीया यानी 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार है गणगौर।

कहते हैं एक बार भगवान शंकर, माता पार्वती व नारदजी के साथ भ्रमण के लिए निकले। वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे। उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन को पहुंच गई। पार्वतीजी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटीं।

थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने-चांदी के थालों में सजाकर सोलह शृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंचीं। इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा कि तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? पार्वतीजी बोलीं प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है, इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा। किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएंगी।

जब इन स्त्रियों ने शिव-पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वतीजी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया, जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। पार्वतीजी ने कहा कि तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित हो जाओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो। तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद पार्वतीजी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गईं। स्नान के बाद बालू से शिवजी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया।

भोग लगाया और प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए और पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा और मोक्ष को प्राप्त होगा। भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए।

इतना सब करते-करते पार्वतीजी को काफी समय लग गया। पार्वतीजी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आईं, जहां पर भगवान शंकर व नारदजी को छोड़कर गई थीं। शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वतीजी बोलीं मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध-भात खाने और ठहरने का आग्रह किया। इसलिए देर हो गई। तभी से शंकर-पार्वती के रूप में इसर-गौरी की पूजा की जाती है।