मुस्लिम समुदाय का त्योहार ईद उल-फितर रमजान महीने के खत्म होने के बाद मनाया जाता है। ईद-उल-फित्र शव्वल इस्लामी कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चांद के दिखने पर शुरू होता है। ईद के दिन मुस्लिम समुदाय को लोग लजीज पकवान बनाते हैं। इस दिन लोग नए कपड़े पहनकर मस्जिद नमाज पढ़ने जाते हैं। नमाज के बाद सभी लोग गिले-शिकवे भूल कर एक दूसरे के गले लगते हैं और ईद की बधाई देते हैं। अगर 25 जून को शाम को चांद दिख जाता है तो ईद 26 जून को मनाई जाएगी, वहीं अगर चांद 26 जून को दिखाई देता है तो ईद 27 तारीख को मनाई जाएगी। कई बार ऐसा भी होता है कि अलग-अलग जगह अलग-अलग दिन भी ईद मनाई जाती है।

ईद 30 के रमजान खत्म होने के बाद मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे एक महीने रोजे रखते हैं, इस दौरान ये लोग कुछ भी नहीं खाते-पीते। सुबह सहरी से पहले जो खाना होता है वह खा लेते हैं और उसके बाद फिर शाम को इफ्तार के बाद खाया जाता है। इसके साथ ही कहा गया है कि रमजान के दौरान नेकी के काम ज्यादा से ज्यादा करने होते हैं। कहा गया है कि इस दौरान कोई भी अच्छा काम करता है तो उसका 70 गुना सबाब(पुण्य) मिलता है। ईद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग जकात-फितरा(दान) भी देते हैं। यह पैसा गरीबों में बांटा जाता है। दान इंसान की इंकम के मुताबिक तय होता है।

एक साल में दो ईद मनाई जाती हैं। पहली ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है तो वहीं दूसरी को ईद-उल-अजहा(बकरीद) कहा जाता है। बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग जानवर की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी का गोश्त बांटा जाता है। इसके अलावा इस दिन भी गरीबों को दान दिया जाता है।