दीपों का त्योहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। जो इस बार 27 अक्टूबर को है। इस पर्व को मनाने से संबंधित वैसे तो अनेकों कथाएं मिलती हैं। जिनमें सबसे ज्यादा प्रचलित है भगवान राम की इस दिन घर वापसी होना। दिवाली के दिन राम दरबार के साथ माता लक्ष्मी और गणेश जी की भी पूजा की जाती है। दिवाली पूजन प्रदोषकाल में किया जाता है। जानिए पूजा की सबसे सरल विधि और सामग्री…
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दिवाली पूजन मुहूर्त (Diwali Puja Muhurat) :
दिवाली लक्ष्मी पूजा रविवार, अक्टूबर 27, 2019 पर
पूजा मुहूर्त – 06:43 पी एम से 08:15 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 32 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:41 पी एम से 08:15 पी एम
वृषभ काल – 06:43 पी एम से 08:39 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 27, 2019 को 12:23 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 ए एम बजे
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दिवाली पूजा की सामग्री (Diwali Pujan Samagri) :
दिवाली पूजा के लिए रोली यानी टीका, चावल (अक्षत), पान-सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, घी, तेल, दीपक, कलावा, नारियल, गंगाजल, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, चंदन, मेवे, खील, बताशे, चौकी, कलश, फूलों की माला, शंख, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, थाली, चांदी का सिक्का, 11 दिए और इससे ज्यादा दिये अपनी श्रृद्धानुसार एकत्रित कर लें।
दिवाली पूजा विधि (Diwali Puja Vidhi) :
– दिवाली की शाम प्रदोषकाल में पूजन शुरू करें। पूजा शुरू करने से पहले सभी सामग्री एक जगह रख लें।
– एक पटरा या चौकी लें उसे अच्छे से साफ कर उस पर आटे की मदद से नवग्रह बनाएं।
– एक स्टील का कलश लें उसमें दूध, दही, शहद, गंगाजल, लौंग भरकर उस पर लाल कपड़ा बांध दें। इस कलश के ऊपर नारियल रखें।
दीपावली की पूरी पूजा विधि, मुहूर्त, सामग्री, कथा, आरती और सभी जरूरी जानकारी जानने के लिए बने रहिए इस ब्लॉग पर…
दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है। इसके लिए सबसे पहले शुभ मुहूर्त तक सभी पूजन सामग्री जुटा लें। गणेश लक्ष्मी के स्थान को रंगोली से सजाएं। आसन के चारों कोनों पर दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा जहां स्थापित करने वाले हैं वहां अक्षत रखें फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। अगर आप पूजा करने वाले हैं तो आपके बाईं ओर लक्ष्मी जी और दाएं हाथ पर गणपति जी को विराजमान करना चाहिए। लक्ष्मी, गणेश के अलावा कुबेर, मां सरस्वती और मां काली माता की भी पूजा होती है।
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दिवाली पूजन आरंभ करें पवित्री मंत्र सेः
ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥
इन मंत्रों से खुद को, आसन और पूजन सामग्री को गंगाजल या आजमन से पवित्र करें।
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करेंः
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
अंतरिक्ष को सजाने के लिए भी फूलों, रेंजोली और प्रकाश मिट्टी के दीपक या हरे या पीले रंग के रंग के हल्के बल्बों कर सकते हैं। इनके प्रयोग से घर को अच्छी तरह से सजा लें। इसके साथ ही आप इसके लिए हल्दी पेस्ट, वर्मीलियन, चावल, फूलों और मालाओं के ऊपर वर्णित सामग्री का उपयोग करके मूर्तियों और कलश को सजाएं। प्रवेश द्वार पर टोर या बंधनवार लटकाएं और फर्श पर देवी लक्ष्मी के पैरों के निशान जैसे सम्मानित प्रतीक प्रदर्शित करें।
पूजा स्थान बनाएं: यदि आपके पास एक अलग पूजा कक्ष नहीं है, तो अपने घर की पूर्वोत्तर दिशा में एक जगह चुनें। यह ईशान कोने है जो बुरी तरह के लिए आदर्श है। पवित्र, माना जाता है अन्य क्षेत्रों उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशाएं हैं।
घर की साफ-सफाई के बाद पूजा की बारी आती है। अब आप पूजन सामग्रियों में- थाली, फूलों, तेल लैंप, लाल कपड़ा, कालाश, नारियल, सूअर नट, गुलाब का पानी, रंगोली, चांदी और सोने के सिक्के, कपूर, धूप की छड़ें, सूखे फल, लाल वर्मिलियन, पूरे हल्दी, आम पत्तियां, बेकार चावल और मिठाई जुटा कर अपने पास रख लें। एक और मत्वपूर्ण चीज, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियों को सावधानी पूर्वक पूजा चौकी पर स्थापित करें। कुछ लोग वेदी पर खाता किताबें, उपकरण और शैक्षणिक पुस्तकें भी रखते हैं।
जब आप लक्ष्मी पूजा करने की तैयार हो इन वास्तु युक्तियों को ध्यान में रखना चाहिए। पहली बार कि देवी लक्ष्मी घर की यात्रा करती है इसलिए घर की सफाई पहले जरूरी है। पूजा के पहले बेकार की वस्तुओं को हटाकर और फर्श को मिटकर पूरे घर की पूरी तरह से सफाई करें। वायुमंडल को शुद्ध करने के लिए नमक पानी स्प्रे करें।
धनतेरस वाले दिन लाए गए नए बही खातों की दिवाली पर पूजा करनी चाहिए। इसके लिए शुभ मुहूर्त जरूर देख लें। नवीन खाता पुस्तकों में लाल चंदन या कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए। इसके बाद स्वास्तिक के ऊपर श्री गणेशाय नमः लिखना चाहिए। इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए।
प्राचीन हिंदू ग्रंथ रामायण के मुताबिक दिवाली को 14 वर्ष के राम के वनवास के पश्चात उनकी वापसी के सम्मान के रूप में सेलिब्रेट करते हैं वहीं महाभारत के अनुसार दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। तो कई हिंदू दिवाली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। धनतेरस से शुरू हुए पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से के रूप में भी मनाते हैं। दिवाली की रात ही लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना था। इस दिन देवी लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं
महालक्ष्मी मंत्रः श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
दिवाली के दिन प्रात:काल उठकर स्नान आदि कार्य से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें। दिन भर भोजन ना करें। घर में शाम को पूजा स्थल का अच्छी तरह से साफ करें लें। इसके बाद वहां पर एक चौकी पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा स्थल पर एक जल से भरा कलश रखें, इस कलश में थोड़ा गंगाजल भी डालें। इसके बाद मूर्तियों के सामने बैठकर दूर्वा से गंगाजल के पानी से मूर्तियां का शुद्धिकरण करें। इस दौरान आप घर के सदस्यों पर भी जल छिड़क सकते हैं। पूजा स्थल पर गुड़, फल, फूल, मिठाई, दूर्वा, घी, चंदन, पंचामृत, मेवे, खील , बतासे, चौकी, कलश, फूलों की माला आदि सामग्री शामिल करें। और इन सबका प्रयोग करते हुए पूरे विधि-विधान से मां लक्ष्मी और गणेष की पूजा करें। इसके साथ-साथ आप देवी सरस्वती, विष्णु देव, कुबेर देव की आराधना करें। पूजा करते समय 11 दीएं और एक बड़ा दीपक जलाएं। पूजा के बाद इन दीपक को घर के अलग-अलग कोने में रखें दें। पूजा के बाद घर के सभी हिस्सों में कलश के जल से छिड़काव करें।
दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों के रूप में हिंदू, जैन सहित सिखों द्वारा मनायी जाती है। लेकिन सबमें एक ही संदेश छिपा होता है-बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय।
हिंदू दर्शन में योग, वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।
लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करने के बाद सारी चीजें खत्म नहीं हो जातीं। लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना है तो पूजा के बाद सभी कमरों में शंख और घंटी बजाएं ताकि घर की सारी नकारात्मक दूर हो जाए इसके बाद पूजा में पीली कौड़ियां रखें। पीली कौड़ी रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। वहीं शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। साथ में हल्दी की गांठ जरूरी रखें और पूजा के बाद इसे अपनी तिजोरी में रखें। इस दिन पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं इससे शनि का दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाते हैं।
लक्ष्मी-गणेश पूजा शुरू करने से पहले पूजा स्थल को साफ कर वहां सुंदर रंगोली बनाएं। प्रतिमा स्थापित करने वाली चौकी के चारों तरफ दीए जलाएं। इसके साथ ही कच्चे चावल ऱखें जिसपर प्रतिमा को स्थापित की जानी है। मान्यता के अनुसार दिवाली के दिन सिर्फ लक्ष्मी-गणेश की पूजा का ही विधान नहीं है बल्कि इस दिन सरस्वती और कुबेर की भी पूजा का भी महत्व कम नहीं है। वहीं मां काली की भी पूजा होती है।
भारत साझी संस्कृति का देश माना जाता है साथ ही इसे कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है क्योंकि देश के बहुसंख्यक समाज गांवों में बसता है। तब दिवाली का रूप कुछ और होता था। तब कृषि और अन्न उत्पादन ही व्यक्ति की सम्पन्नता का पैमाना हुआ करता था। शरद ऋतु में ही खरीफ की फसल तैयार हो कर घरों में आ रही होती है और अगली फसल लगाने की तैयारी किसान कर रहे होते है। तब किसान इसकी खुशियां मनाते थे। खुशी में लोग घर-आंगन, खेत-खलिहान यहां तक कि घूर (यह स्थान लक्ष्मी का वास माना जाता है ) पर भी दीप जला कर लक्ष्मी का स्वागत करते थे। रात के अंतिम पहर में घर की श्रेष्ठ महिला द्वारा डगरा (सूप) बजा कर घर के चारों ओर घूम कर दारिद्र को भगाने और लक्ष्मी के आह्वान का अनुष्ठान की परंपरा है। गांव की महिलाएं यह अनुष्ठान आज भी करती हैं।
लक्ष्मी की पूजा दिवाली के दिन काफी अहम मानी जाती है। अगर आप विधिपूर्वक और जरूरी पूजन सामग्रियों का उपयोग नहीं करते हैं तो पूजा का फल नहीं मिलेगा। इसलिए पूजा के लिए इन सामग्रियों को पहले जुटा लें- कलावा, रोली, सिंदूर, एक नारियल, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली। कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन।
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करेंः ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
दीपावली को लेकर देश के कई जगहों पर अलग अलग परंपराएं सुनने या देखने को मिलती हैं। ग्रामीण अंचल में कहीं कच्ची मिट्टी से तैयार काजल लगाने की परंपरा है तो कहीं इस रात सूप पीटने का भी चलन है। एक और परंपरा अलाय-बलाय निकालने की है। शाम के समय तारा देखकर अलाय-बलाय (जलती हुईं सन की टहनियां) घर से निकाली जाती हैं। कुछ जगहों पर कम उम्र के बच्चों को दिवाली रात जादू की माला भी पहनाई जाती है। सबसे ज्यादा जो परंपरा है वह दिवाली रात को जुआ खेलने की है।
अष्टालक्ष्मी की पूजा बहुत महत्व रखता है। दिवाली के दिन इनकी पूजा विशेष मानी जाती है। इस पूजा विधि विधान के दौरान सबसे पहले अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ये रहा मंत्र- ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:। इस मंत्र के बाद अक्षत को समर्पित कर दें।
बौद्ध मान्यताओं के अनुसार दिवाली का जिक्र बौद्ध के प्राकृत जातक में है। इसका आयोजन कार्तिक महीने में किया जाता है। वहीं जैन लोग इस दिन को महावीर स्वामी के निर्वाण से जोड़कर भी देखते हैं। जाता है कि करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात में पावा नगरी में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ।
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
किसी भी पूजा विधि में कलश की महत्ता काफी मानी जाती है। जिस प्रकार दवियों-देवताओं की पूजा का एक विधान होता है वैसे ही कलश की भी होती है। कलश पूजा के लिए सबसे पहले कलश पर मोली बांधें इसके बाद उसपर आम का पल्लव रखें। पल्लव रखने से पहले कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखना ना भूलें। हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण देवता का कलश में आवाहन करें। और इस मंत्र का उच्चारण करें- ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥
मां लक्ष्मी की जब आप पूजा करें तो सभी सामग्रियों के जुटा लें। पूजा शुरू करने के दौरान सबसे पहले हाथ में अक्षत लें। हाथ में अक्षत लेने के बाद बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ इस मंत्रोंच्चारण के बाद प्रतिमा पर पुष्प और फिर मालाल्यार्पण करें। इसके बाद देवी लक्ष्मी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
मां लक्ष्मी की पूजा शुरू करने के दौरान आचमन प्राणायाम करके संकल्प के अंत में− स्थिरलक्ष्मीप्राप्त्र्यथं श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्र्यथं सर्वारिष्टनिवृत्तिपूर्वकसर्वाभीष्टफलप्राप्त्र्यथम् आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धर्यथं व्यापारे लाभार्थं च गणपति नवग्रह कलशादि पूजनपूर्वकं श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती लेखनी कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये मंत्र का जाप करके जल छोड़ें। यह क्रिया करने के बाद गणपति, कलश और नवग्रह आदि का विधिपूर्वक पूजन करें इसके बाद महालक्ष्मी का पूजन करें। लक्ष्मी पूजन के दौरान भगवान विष्णु की भी तस्वीर साथ में रखें क्योंकि बिना अपने पति विष्णु के मां लक्ष्मी कहीं नहीं रहती। इसलिए लक्ष्मी की पूजा के दौरान भगवान विष्णु की भी तस्वीर बगल में स्थापित करना ना भूलें।
सूर्योदय - 06:30 ए एमसूर्यास्त - 05:41 पी एमचन्द्रोदय - 06:24 ए एम, अक्टूबर 28चन्द्रास्त - 05:28 पी एम शक सम्वत - 1941 विकारीविक्रम सम्वत - 2076 परिधावीगुजराती सम्वत - 2075 साधारणअमांत महीना - आश्विनपूर्णिमांत महीना - कार्तिक वार - रविवारपक्ष - कृष्ण पक्ष तिथि - चतुर्दशी - 12:23 पी एम तकनक्षत्र चित्रा - 03:18 ए एम, अक्टूबर 28 तकयोग विष्कम्भ - 10:12 पी एम तककरण शकुनि - 12:23 पी एम तकद्वितीय करण चतुष्पाद - 10:44 पी एम तकसूर्य राशि - तुलाचन्द्र राशि - कन्या - 04:33 पी एम तकराहुकाल - 04:17 पी एम से 05:41 पी एमगुलिक काल - 02:53 पी एम से 04:17 पी एमयमगण्ड - 12:06 पी एम से 01:30 पी एमअभिजित मुहूर्त - 11:43 ए एम से 12:28 पी एमदुर्मुहूर्त - 04:12 पी एम से 04:57 पी एमअमृत काल - 09:34 पी एम से 11:00 पी एमवर्ज्य - 12:59 पी एम से 02:25 पी एम
लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ, लक्ष्मी सूचक सोने अथवा चाँदी का सिक्का, लक्ष्मी स्नान के लिए स्वच्छ कपड़ा, लक्ष्मी सूचक सिक्के को स्नान के बाद पोंछने के लिए एक बड़ी व दो छोटी तौलिया। बहीखाते, सिक्कों की थैली, लेखनी, काली स्याही से भरी दवात, तीन थालियाँ, एक साफ कपड़ा, धूप, अगरबत्ती, मिट्टी के बड़े व छोटे दीपक, रुई, माचिस, सरसों का तेल, शुद्ध घी, दूध, दही, शहद, शुद्ध जल। पंचामृत, मधुपर्क, हल्दी व चूने का पावडर, रोली, चन्दन का चूरा, कलावा, आधा किलो साबुत चावल, कलश, दो मीटर सफेद वस्त्र, दो मीटर लाल वस्त्र, हाथ पोंछने के लिए कपड़ा, कपूर, नारियल, गोला, मेवा, फूल, गुलाब अथवा गेंदे की माला, दुर्वा, पान के पत्ते, सुपारी, बताशे, खांड के खिलौने, मिठाई, फल, वस्त्र, साड़ी आदि, सूखा मेवा, खील, लौंग, छोटी इलायची, केसर, सिन्दूर, कुंकुम, गिलास, चम्मच, प्लेट, कड़छुल, कटोरी, तीन गोल प्लेट, द्वार पर टाँगने के लिए वन्दनवार। याद रहे लक्ष्मीजी की पूजा में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। धान की खील, दो कमल। लक्ष्मीजी के हवन में कमलगट्टों को घी में भिगोकर अवश्य अर्पित करना चाहिए। कमलगट्टों की माला द्वारा किए गए माँ लक्ष्मीजी के जप का विशेष महत्व बताया गया है।
1. पूजा के दिन सबसे पहले एक बड़ी और साफ चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछा कर उसके ऊपर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां स्थापित रख दें। 2. लक्ष्मी जी के पास एक जल से भरा कलश जरूर रखें। कलश के ऊपर एक नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेट कर रखें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे।3. कलश के पास दो बड़े दीपक रखें जिसमें एक घी का और दूसरा तेल का दीपक हो। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें और दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक दीपक गणेश जी के पास रखें।4. गणेशजी की ओर चावल की सोलह प्रतीक बनाएं जिन्हें मातृका का प्रतीक माना जाता हैं। नवग्रह और षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।6. अब इसके बीच में सुपारी रखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली और जल भरकर कलश रखें।7. थालियों में पूजा की इन जरूरी चीजों को रखें- ग्यारह या इक्कीस दीपक, खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।8. अब पूरे विधि-विधान से महालक्ष्मी और गणेश कर पूजन करें।9. पूजा के बाद पूरे घर में कपूर की धूप दिखाएं और गंगाजल छिड़कें।
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है। प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
- दिवाली वाले दिन लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की सारी निगेटिविटी दूर हो जाएगी।- दिवाली पर महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां रखें। इससे धन संबंधी सभी परेशानियां दूर होंगी।- दिवाली वाले दिन शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं।- लक्ष्मी पूजन में हल्दी की गांठ जरूरी रखें और पूजा के बाद इसे अपनी तिजोरी में रखें।
एक साफ थाली में रोली, मोली, चावल, केसर, इत्र, कपूर, धूप, शुद्ध धृत का दीपक, धान की खील, बताशे, खांड के खिलौने, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, लाल फूलों की माला विशेषकर कमल का फूल, कुछ खुले फूलों की जरूरत होती है। एक सुंदर चौकी या पाटे पर मिट्टी के गणेशजी के दाईं ओर लक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर दें। साथ ही नए-पुराने श्री यंत्र, कुबेर यंत्र और चांदी के सिक्के आदि भी रख लें।
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) - 01:30 पी एम से 02:53 पी एमसायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - 05:41 पी एम से 10:30 पी एमरात्रि मुहूर्त (लाभ) - 01:42 ए एम से 03:18 ए एम, अक्टूबर 28उषाकाल मुहूर्त (शुभ) - 04:54 ए एम से 06:30 ए एम, अक्टूबर 28
- दिवाली की शाम प्रदोषकाल में पूजन शुरू करें। पूजा शुरू करने से पहले सभी सामग्री एक जगह रख लें।
- एक पटरा या चौकी लें उसे अच्छे से साफ कर उस पर आटे की मदद से नवग्रह बनाएं।
- एक स्टील का कलश लें उसमें दूध, दही, शहद, गंगाजल, लौंग भरकर उस पर लाल कपड़ा बांध दें। इस कलश के ऊपर नारियल रखें।
- अब बनाए हुए नवग्रह यंत्र पर चांदी का सिक्का रखें। और लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा स्थापित करें और उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं।
- अब भगवान के बाईं तरफ देसी घी का दीपक जलाएं।
- फिर अपने दाहिने हाथ से उन्हें इत्र, फूल, अक्षत, मिठाई, फूल और जल अर्पित करें।
- इसके बाद 11 या 21 सरसों के तेल के दीपक जलाकर रखें। सरसों के तेल के अलावा घी के 1, 5 या 7 दीपक रखें।
- माता लक्ष्मी को श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। हाथ में फूल और अक्षत लेकर सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें।
- मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, श्री कृष्ण और राम दरबार की विधि विधान पूजा करने के बाद उनकी आरती उतार कर प्रसाद चढ़ाएं और जलाएं गए दीपकों को घर के सभी स्थानों के कोनों पर रख दें।