Dev Deepawali 2023 Date: हर मास के कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। बता दें कि ये पर्व दिवाली के ठीक 15 दिनों के बाद मनाया जाता है। इस दिन दिवाली की तरह की दीपक जलाने की परंपरा है। माना जाता है कि देव दिवाली के दिन काशी मे देवी-देवता आते हैं और दिवाली का पर्व मनाते हैं। आपको बता दें कि देव दीपावली आज यानी 26 अक्टूबर को है, आज के दिन स्नान, दान के साथ दीपदान का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं देव दीपावली का महत्व, मुहूर्त, दीपदान का समय…

देव दीपावली 2023 तिथि? (Dev Deepawali 2023 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 53 मिनट से शुरू हो रही है, जो 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 46 मिनट को समाप्त हो रही है। इसलिए देशभर में देव दिवाली का पर्व 26 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा।

देव दीपावली पर शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2023 Shubh Muhurat)

हिंदू पंचांग के अनुसार, देव दिवाली के दिन प्रदोष काल शाम को 5 बजकर 8 मिनट से 7 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। इस दौरान दीपदान करना शुभ माना जाता है।

देव दीपावली पर ऐसे करें दीपदान (Dev Deepawali 2023 Deepdaan Vidhi )

देव दीपावली की शाम को प्रदोष काल में 5, 11, 21, 51 या फिर 108 दीपकों में घी या फिर सरसों के भर दें। इसके बाद नदी के घाट में जाकर देवी-देवताओं का स्मरण करें। फिर दीपक में सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, फूल, मिठाई आदि चढ़ाने के बाद दीपक जला दें। इसके बाद आप चाहे, तो नदी में भी प्रवाहित कर सकते हैं।  

देव दीपावली 2023 पूजा विधि (Dev Deepawali 2023 Puja Vidhi)

देव दीपावली के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। हो सके,तो गंगा स्नान करें। अगर आप गंगा स्नान के लिए नहीं जा पा रहे हैं, तो स्नान के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डाल लें। ऐसा करने से गंगा स्नान करने के बराबर फलों की प्राप्ति होगी। इसके बाद सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, अक्षत, लाल फूल डालकर अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव के साथ अन्य देवी देवता पूजा करें। भगवान शिव को फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, आक का फूल, बेलपत्र चढ़ाने के साथ भोग लाएं। अंत में घी का दीपक और धूर जलाकर चालीसा, स्तुत, मंत्र का पाठ करके विधिवत आरती कर लें।

कार्तिक पूर्णिमा को क्यों मनाते हैं देव दिवाली?

शास्त्रों के अनुसार, एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने आतंक मचा रखा था, जिससे ऋषि-मुनियों के साथ देवता भी काफी परेशान हो गए थे। ऐसे में सभी देवतागण भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा। इसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध कर दिया था और फिर सभी देवी-देवता खुशी होकर काशी पहुंचे थे। जहां जाकर उन्होंने दीप प्रज्वलित करके खुशी मनाई थी। इसी के कारण हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस प4व को मनाया जाता है।

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