Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि में भक्तगण मां दुर्गा की विशेष पूजा- अर्चना करते हैं। आपको बता दें कि चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हुई हैं और वह 30 मार्च तक रहेंगी। वहीं नवरात्रि में लोग दुर्गा सप्तशती का भी पाठ करते हैं। मान्यता है दुर्गा सप्तशती के पाठ से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।

आपको बता दें कि अगर श्रीदुर्गा सप्तशती कठिन लग रहा है तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। साथ ही सिद्ध कुंजिका स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद के नाम से उदधृत है। वहीं इसके मंत्र स्वंय में सिद्ध हैं, इनको अलग से सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। साथ ही मात्र कुंजिका स्तोत्र के पाठ से सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है। आइए जानते हैं पाठ करने के लाभ और नियम…

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करने के लाभ

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। साथ ही  इस पाठ को करने से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। साथ ही उसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जीवन में धन समृद्धि बढ़ती है। साथ ही मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे शत्रु और भय का नाश होता है।

पाठ करने का नियम

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करने से लिए शाम के बाद का समय सबसे शुभ माना गया है। इसलिए सबसे पहले नवदुर्गा का एक चित्र रखें और फिर एक घी का दीपक जलाएं। इसके बाद लाल आसन पर बैठ जाएं। वहीं  लाल या पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। इसके बाद स्त्रोत करने का संकल्प लें। फिर कुंजिका स्त्रोत का पाठ आरंभ करें। इस पाठ को करने वाले व्यक्ति तो तन और मन दोनों से शुद्ध रहना चाहिए। 

श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।

अथ मंत्र :-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।