बसंत पंचमी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थी। आपको बता दें कि मां सरस्वती का वाहन हंस है। साथ ही मां कमल के फूल में विराजमान हैं। इनके हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे हाथ में माला हैं। वहीं हर साल बसंत पंचमी का पर्व माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 14 फरवरी को है। इस दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं हम यहां आपको ऐसे मंत्र और श्लोकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका जाप करने से आपके जीवन में सुख- समृद्धि का वास रहेगा। साथ ही मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होगा। आइए जानते हैं इन मंत्र और श्लोकों के बारे में…
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मां सरस्वती के इन मंत्रों का करें जाप
1- इस मंत्र से दूर होगी करियर में बाधा
ॐ शारदा माता ईश्वरी मैं नित सुमरि तोय हाथ जोड़ अरजी करूं विद्या वर दे मोय।
2- इस मंत्र से कारोबार में होगी वृद्धि
शारदा शारदांभौजवदना, वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकमं सन्निधिमं सन्निधिमं क्रियात्।
3- इस मंत्र से संकट होते हैं दूर
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:।।
4- ज्ञान में वृद्धि के लिए
ऎं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।
सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।
5- स्मरण शक्ति मजबूत करने के लिए
शारदायै नमस्तुभ्यं, मम ह्रदय प्रवेशिनी,
परीक्षायां समुत्तीर्णं, सर्व विषय नाम यथा।।
6- पद्माक्षी ॐ पद्मा क्ष्रैय नमः
मां सरस्वती के इस गुप्त मंत्र का बसंत पंचमी पर 108 बार जाप करने से करियर में कोई बाधा नहीं आती।
सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
इस स्त्रोत का करें पाठ
रविरुद्रपितामहविष्णुनुतं हरिचन्दनकुङ्कुमपङ्कयुतम्। मुनिवृन्दगजेन्द्रसमानयुतं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥1॥
शशिशुद्धसुधाहिमधामयुतं शरदम्बरबिम्बसमानकरम्। बहुरत्नमनोहरकान्तियुतं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥2॥
कनकाब्जविभूषितभूतिभवं भवभावविभाषितभिन्नपदम्। प्रभुचित्तसमाहितसाधुपदं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥3॥
भवसागरमज्जनभीतिनुतं प्रतिपादितसन्ततिकारमिदम्। विमलादिकशुद्धविशुद्धपदं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥4॥
मतिहीनजनाश्रयपादमिदं सकलागमभाषितभिन्नपदम्। परिपूरितविश्वमनेकभवं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥5॥
परिपूर्णमनोरथधामनिधिं परमार्थविचारविवेकविधिम्। सुरयोषितसेवितपादतलं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥6॥
सुरमौलिमणिद्युतिशुभ्रकरं विषयादिमहाभयवर्णहरम्। निजकान्तिविलोपितचन्द्रशिवं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥7॥
गुणनैककुलं स्थितिभीतपदं गुणगौरवगर्वितसत्यपदम्। कमलोदरकोमलपादतलं तव नौमि सरस्वति पादयुगम्॥8॥