Eid al-Adha (Bakrid) 2019 Date India: भारत में बकरीद 11 और 12 अगस्त को मनाई जायेगी। मीठी ईद के करीब 2 महीने बाद बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद को ईद-उल-अज़हा और ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। इस्लाम धर्म का यह मुख्य त्योहार है। इस त्योहार को मुख्य रूप से कुर्बानी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। रमजान महीना खत्म होने के करीब 70 दिन बाद बकरीद आती है। इस्लाम में इस दिन अल्लाह के नाम कुर्बानी देने की परंपरा रही है। मुसलमान इस दिन नामज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत में बकरे की कुर्बानी देते हैं और उनके गोश्त को तीन भाग में बांटकर इसे जरूरतमंदों और गरीबों को देते हैं। लेकिन बकरीद का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्व है जानिए इससे जुड़ी एक पौराणिक कहानी…
इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में एक हजरत इब्राहिम से कुर्बानी देने की यह परंपरा शुरू हुई। हजरत इब्राहिम अलैय सलाम को कोई भी संतान नहीं थी। अल्लाह से औलाद की काफी मिन्नतों के बाद इन्हें एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम स्माइल रखा गया। इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने इब्राहिम के सपनें में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। अल्लाह के आदेश को मानते हुए उन्होंने अपने ऊंट की कुर्बानी दे दी। उन्हें फिर से यह सपना आया जिसमें सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी की बात कही गयी। इस पर इब्राहिम ने अपने सभी जानवर कुर्बान कर दिए। लेकिन उन्हें सपना आना बंद नहीं हुआ और एक बार फिर से उन्हें उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला।

इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में वह अल्लाह पर भरोसे के साथ अपने बेटे की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए। बेटे की कुर्बानी देते वक्त उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने अपनी आंखे खोली तो अपने बेटे को उन्होंने जीवित और खेलता हुआ पाया। अल्लाह ने इब्राहिम की निष्ठा को देख बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया। इब्राहिम के विश्वास और कुर्बानी से खुश होकर अल्लाह ने उन्हें पैगंबर भी बना दिया। कहा जाता है कि इसी दिन से कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद जिलहिज्ज के महीने में मनाई जाती है।