Ayodhya Ram Temple Inauguration: अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर लगभग तैयार हो गया है और राम लला 22 जनवरी को मंदिर में विराजेंगे। रामलला की ये मूर्ति बाल स्वरूप की होगी। वहीं उससे पहले रामलला की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होगी। वहीं गर्भगृह में श्रीराम की जिस मूर्ति को प्रतिष्ठित (स्थापित) किया जाएगा, उसकी ऊंचाई 51 इंच यानी 129.54 सेंटीमीटर होगी। आपको बता दें कि राम लला की मूर्ति के लिए विशेष मुहूर्त निकाला गया है। वहीं प्राण प्रतिष्ठा के दौरान गर्भगृह में केवल 5 लोग मौजूद रहेंगे। पीएम मोदी के अलावा उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, संघ प्रमुख मोहन भागवत और राम मंदिर के मुख्य आचार्य सत्येंद्र मौजूद रहेंगे। आइए जानते हैं विशेष मुहूर्त और मूर्तियों की क्यों की जाती है प्राण प्रतिष्ठा…
इस शुभ मुहूर्त में विराजमान होंगे रामलला
किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पंचांग में विशेष मुहूर्त दिए जाते हैं। वहीं रामलला की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा देने के लिए 22 जनवरी 2024 पौष माह के द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न और वृश्चिक नवांश को चुना गया है जो दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक अर्थात 84 सेकंड का होगा। इसी समय में प्रभु श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। रामलला की मूर्ति स्थापित करने के बाद ‘प्रतितिष्ठत परमेश्वर’ मंत्र का उच्चारण किया जाएगा। इसका अर्थ होता है परमेश्वर आप विराजमान हो।
ज्योतिष के दृष्टिकोण से शुभ मुहूर्त
ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखें तो प्राण प्रतिष्ठा के लिए नक्षत्र मृगशिरा शुभ है वार सोमवार भी शुभ है। सोमवार के दिन मृगशिरा नक्षत्र का योग शुभ योग है। वहीं इस दिन 6 ग्रह एक साथ होंगे। यह योग सालों बाद बन रहा है। वहीं अभिजीत मुहूर्त के साथ नवांश लग्न से नवम भाव में उच्च के गुरु महाराज कि उपस्थित से जो शुभता मिल रही है। जो मुहूर्त को विशेष बना रही है। वहीं लग्न के स्वामी मंगल और भाग्य भाव के स्वामी गुरु का परिवर्तन योग भी बन रहा है, जो कि बेहद शुभ है। साथ ही मुहूर्त कुंडली से दशम भाव में ग्रहों के राजा सूर्य का दिग्बली होकर उपचय भाव में बैठा होना भी अच्छा है। वहीं इंद्र योग का होना भी ज्योतिष में बेहद शुभ माना जाता है।
जानिए क्यों जरूरी है मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा
वैदिक काल से यह परंपरा चली आ रहै कि जब भी किसी भगवान की मूर्ति मंदिर में स्थापित होती है। तो सबसे पहले विधि- विधान से उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। मतलब किसी भी मूर्ति में जब वैदिक मत्रों के उच्चारण और खास विधि द्वारा उसमें प्राण को प्रतिष्ठित (स्थापित) किया जाता है तो उसे प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। वहीं यह प्रक्रिया उस मूर्ति को प्रार्थना स्वीकार करने और वरदान देने की क्षमता देती है। प्राण प्रतिष्ठा में कई चरण होते हैं, जिसे अधिवास कहते हैं। जिसमें कुछ समय के लिए मूर्तियों को जल में डुबाया जाता है, जिसे जलाधिवास कहते हैं। वहीं फिर मूर्तियों को अन्न से ढ़का जाता है जिसे अन्नाधिवास कहते हैं। वहीं फलाधिवास और घृताधिवास भी होता है। प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन मस्त्य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण आदि में विस्तार पूर्वक मिलता है।