जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार को कहा कि पिछले साल की तरह ही इस साल भी मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी और सभी रीत-रिवाज संबंधित इमामबाड़ों में होंगे। सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि प्रशासन पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए जुलूस निकालने की इजाजत नहीं देगी ताकि कोई असामाजिक तत्व सुरक्षा बलों के साथ झड़प भड़काने के लिए उसका इस्तेमाल ना कर सकें।
दस दिन का मनाया जाता है शोकः उन्होंने बताया कि शिया समुदाय के सभी सम्मानित सदस्यों को सूचित कर दिया गया है कि वे इन 10 दिनों में अपने सभी रीत-रिवाज संबंधित इमामबाड़ों में करें। मुहर्रम में शिया समुदाय 10 दिन का शोक मनाता है। यह एक सितंबर से शुरू हुआ है। जानकारी के मुताबिक साल 2018 में भी जम्मू-कश्मीर में मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी गई थी।
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शिया मुस्लिम कश्मीर में अल्पसंख्यक हैं। इस समुदाय के लोग इसे गम का महीना मानते हैं। मुहर्रम में 10वां दिन ज्यादा विशेष माना जाता है। इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। मुहर्रम पर चांद दिखते ही सभी शिया मुस्लिमों के घरों और इमामबाड़े में मजलिसों का दौर शुरू हो जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 10 सितंबर को मुहर्रम के मौके पर जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों और उनके पनाहगारों द्वारा बड़ी हिंसा फैलाने की साजिश का प्लान है। सूत्रों के मुताबिक कश्मीर में मस्जिदों और जियारत पर हमले के जरिए हिंसा फैलाने और माहौल खराब करने की साजिश रची गई है।