मार्च का महीना एक तरह से छात्रों के लिए परीक्षा-काल होता है। बच्चे अपनी साल भर की मेहनत को अच्छे परिणाम में बदल कर माता-पिता के ख्वाबों को पूरा करने में जुट जाते हैं। ख्वाब को कैसे पूरा किया जाए उसके लिए अनेक साधनों का उपयोग होता है। माता-पिता भी इस कार्य में हर स्तर से सहयोग करते हैं। इनमें से एक नकल भी है। कहते हैं कि नकल में अकल लगानी होती है, सही भी है। केवल नकल करने के लिए ही अकल की जरूरत नहीं होती, वरन् नकल कराने के लिए भी बहुत अकल लगाना होती है। यह भी एक चुनौती और होशियारी के साथ हिम्मत का काम है।

हाल ही में आपने देखा होगा कि नकल कराने के लिए लोग तीसरी चौथी मंजिल तक स्पाइडरमैन की तरह दीवारों पर चले जाते हैं। दृश्य देख याद आता है गीत कि चाहे लाख दीवारें तुम बनवा दो या लाख बिठा दो पहरे। नकल कराना भी किसी इम्तिहान से कम नहीं है। यह जो देखा वह तो परदे के सामने के करतब थे,परदे के पीछे इससे भी बड़े करतब होते होंगे।
परीक्षा पूर्व कई स्तर पर बाकायदा तैयारियां प्रारंभ होती हैं। विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर केंद्र अनुसार नकल कराने वालों की उनके मसल्स के अनुसार ड्यूटी लगाई जाती है। कौन पहली, दूसरी या पांचवीं मंजिल पर रहेगा, ये सब दही हांडी फोड़ कार्यक्रम में प्रैक्टिस कर फाइनल कर लिया जाता है।

नकल में चिट का अहम रोल होता है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे फर्रे, पर्ची, कारतूस, प्रेम पत्र. चिट्ठी आदि। चिट को बारीक शब्दों में तैयार किया जाता है ताकि गागर में सागर समा जाए। आजकल तो यह कुंजी के रूप में रेडीमेड भी पाई जाती है। कौन से प्रश्न का उत्तर किस चिट में है ये उनके रंग और आकार से तय होता है, क्योंकि चिट परीक्षार्थी तक पहुंचाने वाले पढ़े लिखे तो होते नहीं बस कबूतर का काम करते हैं। वैसे इसे समझने के लिए चिट वैसी ही होती है जैसे प्रदेश के प्रवेश द्वार पर चैकपोस्ट द्वारा जारी मुर्गा, घोड़े, गधे जैसे संकेत चिह्नोंवाले कार्ड होते है।
नकल का पूरा एक पैकेज होता है। मेरिट में आना हो, प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना हो या केवल उत्तीर्ण होना हो। इस पैकेज में परीक्षा केंद्र के आवंटन, कक्ष का निर्धारण, ड्यूटी पर तैनात होने वाले का चयन, ड्यूटी पर तेज चलने वालों का सार्वजनिक सम्मान, उत्तरपुस्तिकाओं की अदला बदली, परिणामों में हेरा-फेरी और अंत में अंकसूची में विशेष योग्यताओं वाले अंकों का अंकन शामिल होता है।
लोग नकल कर केवल परीक्षाओं में ही उत्तीर्ण नहीं होते वरन पीएचडी जैसी उपाधि से भी सुशोभित हो जाते है। आज नकल के कई उम्दा तरीके उपयोग में आ रहे है। शार्ट में इसे सीपी कॉपी-पेस्ट कहते हैं।

अब वह दिन दूर नहीं जब नकल पर शोध प्रारंभ हो जाए। पीएचडी उपाधि धारक डॉक्टर के साथ कोष्ठक में लिखेगा-नकल विशेषज्ञ। यह भी संभव है नकल विषय को पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया जाए। इस पर राष्ट्रीय सेमिनार, संगोष्ठी और सेमिनार कर चिंतन किया जाए और बड़ी-बडी रिपोर्ट अलग-अलग तरीकों से नकल कर प्रस्तुत की जाए। लेकिन, यकीन मानिए ये व्यंग्य शत-प्रतिशत मौलिक हैं कहीं का नकल किया हुआ नहीं। ०