हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास काफी चर्चा में है। मुखी गुरिंदर सिंह ढिल्लों के ज़रिए  45 साल के जसदीप सिंह गिल को अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की खबर सामने आई थी, यह खबर चुनावी राज्य हरियाणा में राजनीतिक दलों को बैचेन कर सकती है। डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास वो जगह है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी अपनी हाजिरी देते रहे हैं। 

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों से पहले, यहां आने वाले उम्मीदवारों में कांग्रेस और भाजपा से लेकर शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और आम आदमी पार्टी (आप) तक के सभी राजनीतिक दल शामिल थे। इसलिए चुनाव से ठीक पहले हुए इस डवलपमेंट पर राजनीतिक दलों की नजरें हैं। 

हालांकि कुछ ही घंटों के भीतर दूसरी खबर आई कि जसदीप सिंह गिल नए प्रमुख नहीं होंगे बल्कि वह  मुखी गुरिंदर सिंह ढिल्लों के साथ बैठेंगे, बाकि सब वैसा ही रहेगा, जैसा था। यह ऐलान प्रेस विज्ञप्ति  के जरिए  किए गए, जैसा की आमतौर पर डेरा से जुड़े मामलों में होता नहीं है।  मंगलवार को गुरिंदर सिंह ढिल्लों और जसदीप सिंह गिल ने डेरा में एक संयुक्त समागम आयोजित किया। यह भी इससे पहले कभी नहीं हुआ है।

क्यों राजनीतिक दल हो सकते हैं बैचेन?

 सोशल मीडिया पर जसदीप सिंह गिल की प्रभावशाली साख के बारे में चर्चा है। लिखा जा रहा है कि वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से केमिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री और उसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर चुके हैं। 

हालांकि, इस दौरान एक पक्ष ऐसा भी रहा जो इस  घटनाक्रम को आशंका के साथ देख रहा था। क्योंकि इस तरह का फैसला होना वो भी हरियाणा चुनावों के इतने करीब, समझ से परे था। 

इस दौरान यह भी चर्चा में है कि  डेरा कभी भी किसी राजनीतिक मोर्चे के पक्ष में सार्वजनिक बयान जारी नहीं करता है, लेकिन इस बार भाजपा को बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है। इसकी वजह उन  वित्तीय घोटालों से जुड़ी है जिसकी आंच  गुरिंदर सिंह के दरवाजे तक पहुंची थी।  

अन्य दलों के नेताओं ने भी डेरा नेतृत्व के साथ संबंध बनाए हैं और नए संत सतगुरु का मतलब है कि उन सभी को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी, ऐसे में यह खबर राजनीतिक दलों के लिए कान खड़े कर देने वाली थी।

काफी प्रभावशाली है डेरा? 

डेरा का पंजाब और हरियाणा दोनों में उच्च जाति के पंजाबी हिंदू और सिखों के बीच एक खासा प्रभाव है और इसका प्रभाव कुछ हद तक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान और जम्मू तक फैला हुआ है।

जब गुरिंदर सिंह के पद छोड़ने की खबर आई तो डेरा के अनुयायियों में निराशा बढ़ गई और कई लोगों ने संत सतगुरु के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताई । डेरा को इस निराशा को दूर करने के लिए एक बयान जारी करना पड़ा। राजनीतिक दल डेरा के घटनाक्रम पर अभी भी चुप्पी साधे हुए हैं, कांग्रेस और भाजपा ने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।