ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी इन दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। ओवैसी अपनी हर रैली में सिर्फ योगी पर नहीं बल्कि साथ में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर भी निशाना साधते हैं। साफ है कि उनकी कोशिश मुस्लिम वोट बैंक को साधने की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता की नब्ज टटोलने के लिए ओवैसी दिल्ली से निकले तो गाजियाबाद, हापुड़, संभल होते हुए मुरादाबाद पहुंचे। वह सड़क के रास्ते गए तो दौरे के दौरान कई जगहों पर रुक कर नेताओं से मुलाकात की। सभाओं को संबोधित किया और सभी जगह ओवैसी का जोरदार स्वागत भी देखने को मिला। गाजियाबाद में तो स्थिति ऐसी बन गई कि ओवैसी को बिना भाषण दिए ही जाना पड़ा।
मुस्लिम वोट बैंक: उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के सियासी मिजाज को समझें तो अब तक उनकी पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही रही है। प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। जो कि 143 से ज्यादा सीटों पर अपना सीधा प्रभाव रखते हैं। इनमें से भी 70 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी के करीब है लेकिन 73 सीटें ऐसी हैं जहां आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है। जाहिर है ओवैसी इन 143 सीटों पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ओवैसी मुसलमानों के दिल में जगह बना पाएंगे।
अखिलेश यादव पर पूरा फोकस: मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर लोगों के दिल उतरने के लिए AIMIM प्रमुख सबसे पहले उनके दिलों में बसे अखिलेश यादव को निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी की रैलियों में ऐसा देखा गया है कि उनका ज्यादा ध्यान अखिलेश पर निशाना साधने पर रहा है। वह अपने भाषणों में सपा द्वारा कोरोना काल में किए गए कामों का हिसाब मांग रहे हैं, अखिलेश को AC कमरों से बाहर निकलने की हिदायत दे रहे हैं। जिससे साफ होता है कि वह अखिलेश के खिलाफ जनता की नब्ज टटोल चुके हैं और उन मुद्दों को ही सिलसिलेवार तरीके से उठा रहे हैं।
वाराणसी में झटका: ऐसा नहीं है कि ओवैसी ने बीजेपी की मजबूत सीटों वाली जगहों पर अपनी टीम नहीं खड़ी की। ऐसा करने की कोशिश जरूर की थी लेकिन कुछ खास कामयाबी नहीं मिली। मिसाल के लिए वाराणसी का किस्सा ले लीजिए। चुनावी मौसम के आगाज के साथ ही AIMIM की पूरी जिला कार्यकारणी ही कांग्रेस में शामिल हो गई।
बीजेपी को सीधा फायदा: उत्तर प्रदेश में ताल ठोकने के लिए ओवैसी अकेले नहीं आए बल्कि अपने साथ सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) को भी लेकर आए हैं। सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश का राजभर जाति में मजबूत वोट बैंक है. ऐसा करने से न सिर्फ मुस्लिम बल्कि दलित वोटों में भी बंटवारा हो गया है। इधर अखिलेश और मायावती पहले ही अकेले लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। वोटों के इस तरह के बिखराव का सबसे ज्यादा फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही मिलेगा।