पैगंबर मोहम्मद को लेकर भाजपा के दो नेताओं की टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में हिंसा की घटनाएं हुईं। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया और आगजनी की। इस मामले में पुलिस ने हिंसा के आरोपियों के खिलाफ सख्ती दिखाते हुए अलग-अलग जिलों से करीब 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और इस सप्ताह की शुरुआत में प्रयागराज में एक कारोबारी के घर को तोड़ दिया गया। हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार लोगों के परिजन अपने घरों को तोड़े जाने के बारे में कारण बताओ नोटिस को लेकर डरे हुए हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
प्रशासन की कार्रवाई को लेकर एक तरफ सोशल मीडिया पर बहस देखने को मिली, वहीं दूसरी तरफ, सपा-बसपा और कांग्रेस ने भाजपा सरकार की आलोचना तो की है लेकिन उनके कार्यकर्ता बुलडोजर एक्शन या फिर सरकार की अग्निपथ भर्ती योजना के विरोध में सड़कों पर नहीं उतरे हैं। अग्निपथ योजना को लेकर पिछले दो दिनों से राज्य में प्रदर्शन हो रहा है।
समाजवादी पार्टी 2017 से राज्य में मुख्य विपक्षी दल रही है और आखिरी बार मार्च, 2011 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन में सड़कों पर उतरी थी। यह सूबे में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने से एक साल पहले की बात है। उस समय तत्कालीन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोगों का ध्यान खींचा। तब, पुलिस का सामना करती उनकी तस्वीरें खूब वायरल हो रही थीं। उनकी गिरफ्तारी और खींचकर पुलिस वैन में बिठाना सुर्खियों में रहा था। सपा का कहना था कि कार्यकर्ताओं ने राज्य भर में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के एक लाख से अधिक पुतले जलाए थे। उस दौरान, 317 सपा कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए थे।
पिछले साल, लखीमपुर खीरी जाने की अनुमति नहीं दिए जाने पर अपने आवास के बाहर प्रदर्शन करने पर पुलिस ने अखिलेश यादव को हिरासत में लिया था, जिसके बाद सपा कार्यकर्ता लखनऊ में जमा हुए थे। यह पूछे जाने पर कि पार्टी इतने लंबे समय से सड़कों पर क्यों नहीं उतरी, सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना था, “इसके लिए रणनीति और तैयारी की आवश्यकता है। हम इस पर काम कर रहे हैं।”
सपा की तरह बसपा भी सड़कों पर नहीं दिखाई दी है। 27 मार्च को विधानसभा चुनाव में अपनी हार के बाद पहली संगठनात्मक बैठक में मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं को अत्याचार के शिकार लोगों की मदद करते रहने का निर्देश दिया था। हालांकि, उन्होंने कहा, “लेकिन आपको इसके लिए धरना और प्रदर्शन करने की ज़रूरत नहीं है।”
बसपा भी सड़कों पर नहीं उतरी: बसपा आखिरी बार जुलाई 2016 में सड़कों पर उतरी थी, जब पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पार्टी प्रमुख मायावती के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर लखनऊ में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था।