Delhi News: चार दिवसीय छठ उत्सव शनिवार को शुरू हो गया। शंकर मंडल और उनके 50 सदस्यों वाले परिवार के लिए, 3×3 फुट के एक छोटे से जमीन के टुकड़े ने बहुत अहमियत हासिल कर ली है। पिछले हफ्ते इन छोटे-छोटे चौकों की मांग में भारी इजाफा हुआ है और मंडल जैसे कई लोगों ने अपनी बेशकीमती जगह की रखवाली में घंटों बिताए। यहां से नदी का नजारा बिल्कुल साफ दिखाई देता है।

यह भूखंड दिल्ली के सोनिया विहार में यमुना के पूर्वी तट पर मौजूद है। यहां पर मंडल का परिवार और सैकड़ों अन्य लोग छठ पूजा के दौरान सूर्य देव की पूजा करेंगे। गुरुवार को शंकर मंडल अपने बेटे और पोते के साथ नदी के किनारे से कुछ ही फीट की दूरी पर बैठे हुए थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “आखिरकार हम मां यमुना जी में छठ मना पाएंगे। अब तक हम इसे सिर्फ नदी के किनारे खोदे गए गड्ढों में ही मना पाते थे।”

पिछले पांच सालों से श्रद्धालुओं को नदी की प्रदूषित स्थिति की वजह से एनजीटी और दिल्ली सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण कृत्रिम तालाबों में ही डुबकी लगानी पड़ रही है। इस साल सरकार ने श्रद्धालुओं को एक चेतावनी के साथ छठ के लिए यमुना में लौटने की अनुमति दी है। सरकार ने कहा, “केवल पूजा की अनुमति होगी और विसर्जन नहीं किया जाएगा।”

बीजेपी ने पूर्वांचली समुदाय तक पहुंच बनाने के लिए उठाए कदम

इस त्यौहार का राजनीतिक महत्व है क्योंकि इसे मुख्य रूप से पूर्वांचली समुदाय द्वारा मनाया जाता है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग हैं और शहर की आबादी का 30% से ज्यादा हिस्सा हैं। इस बार 6 और 11 नवंबर को होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी ने इस समुदाय तक पहुंच बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं।

इस साल तैयारियों के पैमाने ने भी इस उत्सव को सुर्खियों में ला दिया है। शहर भर में सरकार ने यमुना के किनारों को तैयार कर लिया है। 1000 से ज्यादा घाट विकसित किए जा रहे हैं। इनमें पल्ला से कालिंदी कुंज तक नदी के किनारे 17 प्रमुख जगह शामिल हैं। हर एक घाट पर टेंट, लाइट की व्यवस्था, साफ-सफाई और मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध हैं।

घाटों और नदी में सफाई अभियान शुरू कर दिए गए हैं। छठ से पहले वाले हफ्ते में हरियाणा के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग ने दिल्ली के अधिकारियों के साथ मिलकर हथिनीकुंड बैराज से लगभग पूरा पानी यमुना में मोड़ दिया, जबकि 26 अक्टूबर तक पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहरों में नहरों का प्रवाह तेजी से कम कर दिया। यह छठ पूजा के लिए साफ पानी सुनिश्चित करने का एक दुर्लभ कदम था।

गुरुवार की शाम को 10 नौकाओं ने कालिंदी कुंज के पास यमुना नदी में काम किया। वह दिल्ली जल बोर्ड के झाग दमन अभियान के तहत झाग हटाने वाले केमिकल का छिड़काव कर रहे थे। सरकार ने दावा किया था कि इस साल नदी में झाग-मुक्त छठ मनाया जाएगा। घाट के सामने नदी का ज्यादातर हिस्सा साफ दिख रहा था, हालांकि नोएडा-कालिंदी कुंज पुल के नीचे पानी में अभी भी कुछ झाग चिपका हुआ था।

सरकार इसे भव्य समारोह बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही- रोहित

सोनिया विहार में श्रद्धालु नदी के किनारे अपने छठ स्थल ढूंढ रहे थे। श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षित क्षेत्र चिह्नित करने के लिए नदी में कुछ मीटर की दूरी पर बांस के बैरिकेड लगाए गए थे, जबकि डीजेबी के कर्मचारी दिन भर नदी के किनारों को समतल करने और मलबा हटाने में लगे रहे। सोनिया विहार के रहने वाले रोहित यादव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ” मनोज तिवारी (भाजपा सांसद) कल (22 अक्टूबर को) यहां व्यवस्थाओं का जायजा लेने आए थे और सरकार इसे भव्य समारोह बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।”

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उन्होंने कहा, ” सबसे बड़ा त्यौहार हमारा है छठ पर्व। हम लोग तो बहुत खुश हैं कि इस बार यमुना मैया में छठ मनाएंगे।” आईटीओ घाट पर नदी के किनारे आधा दर्जन अर्थमूवर और कुछ पोकलेन मशीनें काम कर रही थीं, जबकि एक कचरा निकालने वाली मशीन पानी में तैरते कचरे और कीचड़ को साफ करने का काम कर रही थी। सफाई का काम देख रहे डीजेबी ठेकेदार काली चरण ने कहा, “जब हमने काम शुरू किया था, तो घाट की हालत बहुत खराब थी। हम यहां खड़े भी नहीं हो सकते थे। कीचड़ घुटनों तक आ गया था। इसे समतल करने के लिए पर्याप्त रूप से साफ करने में कई दिन लग गए।”

उसके चारों ओर मजदूर रेत को छान रहे थे और कचरा इकट्ठा कर रहे थे। शहर का आईटीओ घाट सबसे व्यस्त स्थलों में से एक था। छठ पूजा समिति के ओर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी बरिस्टीर सिंह ने कहा कि समुदाय की बेहतर सुविधाओं की मांग लंबे समय से चली आ रही थी। उन्होंने कहा, “अगर कांवड़ियों को ये मिल सकती हैं, तो हमारे लिए व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती।”

सदस्यों ने बताया कि पानी में कुछ मीटर की दूरी पर चटाई बिछाई जाएगी ताकि व्रत रखने वाले फिसलन भरी मिट्टी की बजाय ठोस, समतल रेत पर खड़े हो सकें। सिंह ने बताया कि व्रत रखने वालों के लिए विशेष सुविधाओं का भी प्रबंध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि समिति के लगभग 50-80 वॉलंटियर भीड़ का प्रबंधन करेंगे। समिति के सदस्यों के अनुसार, इस साल लगभग एक लाख लोगों के आने की उम्मीद है।

कितनी साफ है नदी?

हालांकि, विशेषज्ञों ने बड़े पैमाने पर छठ की तैयारियों से नदी और जन स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के भीम सिंह रावत ने बताया कि यमुना के किनारों पर अर्थमूवर्स और बड़ी मशीनों के इस्तेमाल से और ज्यादा नुकसान हो रहा है। नदी तल की मिट्टी स्वाभाविक रूप से मुलायम और स्पंजी होती है, लेकिन अस्थायी ढांचों के लिए इसे सख्त करने की कोशिश करके, हम पानी के रिसाव को बाधित कर रहे हैं और गाद को ऊपर उठा रहे हैं, जो वापस नदी में बह जाती है। यह दिल्ली सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे गाद हटाने के अभियानों के लिए प्रतिकूल होगा।”

जनवरी 2015 में मनोज मिश्रा बनाम भारत संघ मामले में एनजीटी के फैसले के अनुसार, “सक्रिय बाढ़ के मैदानों में नए बांधों, सड़कों और गाइड बांधों का निर्माण, मौजूदा बांधों, स्पर और गाइड बांधों का चौड़ीकरण रोका जाना चाहिए और उन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।” इसमें यह भी कहा गया है, “घाटों के विकास और नवीनीकरण के नाम पर बाढ़ के मैदानों-नदी तलों को भरने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “नदी के किनारे भारी भीड़ को प्रोत्साहित करने के बजाय, स्थानीय प्रशासन को अनुष्ठानों के लिए कृत्रिम तालाब बनाने चाहिए। अगर सरकार और नागरिक सचमुच नदी और अपने स्वास्थ्य की परवाह करते हैं, तो उन्हें नदी के प्राकृतिक परिदृश्य में बदलाव करना बंद करना चाहिए।” यमुना एक्टिविस्ट पंकज कुमार ने कहा, “डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, स्नान के मानक केवल पल्ला में ही पूरे किए जाते हैं, अन्य किसी स्थान पर नहीं। हम (सरकार) एक स्वास्थ्य संकट को आमंत्रित कर रहे हैं।”

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लोगों को पानी पीने के लिए प्रोत्साहित ना करें- पंकज कुमार

उन्होंने आगे कहा, “कृपया लोगों को यह पानी पीने के लिए प्रोत्साहित न करें। मैं भी बिहार से हूं, छठ तो मनाया ही जाना चाहिए, लेकिन क्या कोई विकल्प नहीं है? जब यमुना का पानी नहाने लायक भी नहीं है, तो उसमें घंटों बिताना अतार्किक और अवैज्ञानिक है।” दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के सितंबर 2025 के वॉटर क्वालिटी एनालासिस के अनुसार, 2013 से उपलब्ध रिकार्ड के बाद से यमुना की स्थिति अपने सबसे स्वच्छ स्तर पर पहुंच गई है।

आईटीओ ब्रिज पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड घटकर 4 मिलीग्राम/लीटर रह गई। वहीं घुली हुई ऑक्सीजन आईटीओ से ओखला तक 3.7 और 5.1 मिलीग्राम/लीटर के बीच रही। वांछित न्यूनतम सीमा 5 मिलीग्राम/लीटर है। यह पहली बार था कि बाढ़ की स्थिति के बीच सैंपलिंग की गई थी। हालांकि, पिछले महीने की तुलना में पानी की क्वालिटी में गिरावट आई है। 20 अक्टूबर को नमूना लेने के बाद डीपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, कई मापदंडों में गिरावट आई है। आईटीओ ब्रिज पर, डीओ का लेवल 1.6 मिग्रा/लीटर था, जबकि बीओडी बढ़कर 20 मिग्रा/लीटर हो गया। आगे की ओर हालात और बिगड़ गए। ओखला बैराज पर, डीओ घटकर 1.0 मि.ग्रा./ली. रह गया और असगरपुर में, यह घटकर 0.8 मि.ग्रा./ली. रह गया।

लोगों के स्वास्थ्य को लेकर रावत ने भी जताई चिंता

नहाने के लिए अमोनियाकल नाइट्रोजन 1.2 मिलीग्राम/लीटर के बराबर या उससे कम होना चाहिए। हालांकि, असगरपुर में यह 1.4 मिलीग्राम/लीटर था। रावत ने यह भी कहा कि पूजा सामग्री भी नदी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। पंकज की तरह उन्होंने भी श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, “झाग हटाने वाले केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, फिर भी नदी की वर्तमान स्थिति सेफ नहीं है। केमिलकल के इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल पर कोई स्वतंत्र अध्ययन भी नहीं हुआ है। श्रद्धालुओं को स्किन पर चकत्ते, खुजली और आंखों में जलन हो सकती है। लोगों को किसी भी कीमत पर आचमन करने से बचना चाहिए, चाहे वह भक्ति के लिए हो या किसी नौटंकी के लिए।”