उत्तराखंड सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। उत्तराखंड सरकार ने सोमवार को कहा कि जब तक भूमि कानून समिति अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप देती तब तक राज्य के बाहर के लोगों को कृषि और बागवानी के लिए जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देंगे। हालांकि इस फैसले से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। सरकार ने कहा है कि यह जनहित में है। सरकार का यह कदम दूसरे राज्यों के लोगों को बड़े पैमाने पर जमीन की बिक्री को रोकने के लिए एक सख्त भूमि कानून की बढ़ती मांग के बीच आया है।

सरकार ने अपने बयान में कहा, “इससे ​​पहले भी मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये थे कि जमीन खरीदने वाले की बैकग्राउंड की जांच के बाद ही जमीन बेची जाये।” मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भूमि कानून को लेकर एक हाई लेवल मीटिंग करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया था कि भूमि कानून के लिए गठित समिति द्वारा बड़े पैमाने पर जन सुनवाई की जाए और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों की बात सुनी जाए।”

राज्य के भूमि कानून में संशोधन के लिए सिफारिशें देने वाली 2022 ड्राफ्ट रिपोर्ट के विस्तृत अध्ययन के लिए पिछले महीने पांच सदस्यीय भूमि कानून समिति का गठन किया गया था। इस दौरान सीएम धामी ने पैनल से रिपोर्ट तैयार करने में तेजी लाने को कहा था।

पिछले कुछ वर्षों में भूमि कानून कैसे बदल गया?

2004 में एन डी तिवारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन किया, ताकि 12 सितंबर 2003 से पहले उत्तराखंड में अचल संपत्ति नहीं रखने वाले लोगों को कृषि करने के लिए जिला अधिकारी से जमीन खरीदने की अनुमति मिल सके। हालांकि सरकार ने निवेश आकर्षित करने के साथ-साथ स्थानीय पहचान को संरक्षित करने के उद्देश्य से 500 वर्ग मीटर की सीमा निर्धारित कर दी। इसके बाद बी सी खंडूरी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सीमा को और घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया।

2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आर्थिक विकास पर जोर देते हुए इन प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटा दिया। हालांकि इस कदम ने स्थानीय असंतोष बढ़ा और इसके कारण कड़े नियमों को बहाल करने की मांग की गई।

कांग्रेस ने कैसी प्रतिक्रिया दी है?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा ने सरकार पर भूमि कानून पर बार-बार कमेटियां बनाकर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होंने पुष्कर धामी से आग्रह किया कि अगर सरकार की मंशा सच्ची है तो जमींदारी उन्मूलन अधिनियम में किए गए बदलावों को रद्द करें। उन्होंने कहा, “त्रिवेंद्र रावत सरकार ने 2018 में उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन अधिनियम में संशोधन किया और भूमि लूट की खुली छूट दे दी, जिसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया। धामी सरकार को तुरंत संशोधन रद्द करना चाहिए था। भाजपा ने हमेशा झूठ का रास्ता अपनाया है। लोगों में गुस्सा इस बात को लेकर है कि मजबूत भूमि कानून के अभाव के कारण राज्य के बाहर के लोग बड़े पैमाने पर राज्य की जमीन खरीद रहे हैं और बाहरी लोग राज्य के संसाधनों पर हावी हो रहे हैं, जबकि मूल निवासी और भूमि मालिक भूमिहीन हो रहे हैं। यह पहाड़ी राज्य की संस्कृति, परंपरा और पहचान को प्रभावित कर रहा है।”

बीजेपी ने कैसे दी प्रतिक्रिया?

बीजेपी ने सरकार के इस कदम को महत्वपूर्ण बताते हुए इसकी सराहना की है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने जनता को भविष्य के कानूनों को जन भावनाओं के अनुरूप बनाने का आश्वासन दिया है और मजबूत भूमि कानून के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की बात कही है। उन्होंने कहा, “प्रतिबंध से पहले, पूर्व मुख्य सचिव (सुभाष कुमार) की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया गया था और रिपोर्ट की संवैधानिक, तकनीकी और कानूनी पहलुओं के आधार पर वरिष्ठ अधिकारियों की ड्राफ्टिंग कमेटी द्वारा जांच की जा रही है। जब सीएम को कृषि भूमि की खरीद में गड़बड़ी का पता चला तो उन्होंने डीएम के लिए इस पर रिपोर्ट देना जरूरी कर दिया। लेकिन अब जब भूमि कानून से संबंधित प्रक्रिया निर्णायक चरण में है, तो राज्य के बाहरी लोगों द्वारा खरीद पर प्रतिबंध सही कदम है और इससे लोगों के संदेह दूर हो जाएंगे।”