Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में पुलिस ट्रेनिंग स्कूल आस-पास के गावों को गोद ले रहे हैं। यहां पर पुलिस के जवान पुलिसिंग की ट्रेनिंग कर सकते हैं और लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल सकते हैं। पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के अधिकारियों ने बताया कि हर एक पुलिस ट्रेनिंग सेंटर ने आस-पास के आठ गांवों को गोद लिया है।
अधिकारियों ने बताया कि इसका मकसद रंगरूटों को ग्रामीण जीवन के बुनियादी मुद्दो को समझने, गांवों से जुड़ने और उनकी समस्याओं के प्रति सहानुभूति रखने में मदद करना है। एडीजी (ट्रेनिंग) राजा बाबू सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जब अंग्रेज यहां आए, तो उनके गृह मंत्री रॉबर्ट पील ने पुलिस व्यवस्था के दो मॉडल बनाए निहत्थे नागरिक शैली और कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए आयरिश कांस्टेबुलरी पैटर्न। आजादी के बाद, हमने पुलिस का भारतीयकरण करने और उसे ज्यादा मानवीय बनाने की कोशिश की। लेकिन आज भी लोग वर्दी देखकर डर जाते हैं।”
सिंह ने बताया कि पहले पुरानी व्यवस्था के तहत रंगरूटों को नौ महीने की ट्रेनिंग अपने पीटीएस के अंदर, आम लोगों से किसी भी तरह के संपर्क से दूर कर दिया जाता था। उन्होंने कहा, “उन्हें बेरहम, क्रूर सैनिकों की तरह ढाला जाता था और ‘हम बनाम वो’ की मानसिकता में ढाला जाता था।” सिंह ने नए रंगरूटों के लिए गांवों का दौरा करने की जरूरत पर बल दिया।
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एडीजी सिंह ने कहा, “एक कांस्टेबल नौ महीने की ट्रेनिंग से गुजरता है, जहां उसे ट्रेनिंग कराई जाती है, फोरेंसिक और साइबर स्किल सिखाई जाती हैं और उसे एक कांस्टेबल के तौर पर ढाला जाता है। लेकिन किसलिए? उसका असली काम जनता से निपटना, प्रभावी ढंग से गश्त करना और लोगों से जुड़ना है। वह गांव में कैसे एंट्री करता है? वह कैसे बातचीत करता है? इसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसलिए, हमने इसे बदलने का फैसला किया। सिर्फ क्लास और ट्रेनिंग देने के बजाय अब हम ट्रेनी को गांवों में भेज रहे हैं।”
रंगरूटों को दी गई चेकलिस्ट
नई पॉलिसी के मुताबिक, रंगरूटों को आठ-आठ के ग्रुप में कामों की एक लिस्ट के साथ, गोद लिए गए गांव का दौरा करने का काम दिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि इसमें गांव के सरपंच और अन्य ग्राम पंचायत अधिकारियं से संपर्क करना, गांव में रहने वाले मुख्य समुदाय, वहां उगाई जाने वाली मुख्य फसलों, जल निकासी और जल व्यवस्था, सभी धार्मिक संस्थानों और पिछले पांच सालों के आपराधिक रिकॉर्ड का विश्लेषण करना शामिल है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह पहल एक तरह से बर्फ तोड़ने वाला प्रोसेस है। हफ्ते में एक बार ट्रेनी गांवों में जाएंगे और ट्रेनिंग के दौरान साइबर सिक्योरिटी, नए क्रिमिनल कानून और रणनीति सहित 12 विषयों पर भी चर्चा करेंगे। वे अपनी चेकलिस्ट पर भी काम करेंगे। अपने शुरुआती सालों में कांस्टेबलों को इस तरह से कभी जागरूक नहीं किया गया था। अब, हम इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं।”
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