Who is Priya Saroj: लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी ने मछलीशहर सीट से से प्रिया सरोज को अपना उम्मीदवार बनाया था। उनकी उम्र उस वक्त महज 25 साल ही थी और वह लॉ की पढ़ाई के साथ ही न्यायिक परीक्षा की तैयारी कर रही थी। उनके पिता तुफानी सरोज तीन बार सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में विधायक के पद पर हैं। राजनीतिक बैकग्राउंड वह सक्रिय राजनीति में आने के बारे में नहीं सोच रही थीं। सरोज को लगा कि एक न्यायाधीश की कुर्सी उनके समुदाय: दलितों को न्याय दिलाने में अधिक प्रभावी हो सकती है।

4 जून को जब उन्हें अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र यानी मछलीशहर से लोकसभा चुनाव में जीत मिली तो वह कानून की पढ़ाई करके जज बनने का सपना छोड़, कानून बनाने की भूमिका में आ गईं थीं। प्रिया सरोज ने बातचीत में कहा कि मेरे पिता एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं और 1999 से 2014 के बीच लगातार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन मैंने कभी भी राजनीति में आने का नहीं सोचा था। कानून में स्नातक करने के बाद मैंने जजशिप परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी है।

जब मिला टिकट तो ले रहीं थी ऑनलाइन क्लासेज

प्रिया सरोज ने कहा है कि COVID-19 महामारी के दौरान भी मैं अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई थी। पहली बार सांसद बनीं सरोज ने बताया कि जब मेरा टिकट घोषित हुआ, तब भी मैं परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन क्लासेज ले रही थी। सरोज राजनीतिक रूप से पहली बार सक्रिय तब हुईं थीं, जब उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान केराकत में अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार किया था। सरोज ने कहा कि लोगों को यह बात पसंद आई कि दिल्ली में रहने के बावजूद मैं स्थानीय भाषा बोल सकती थी, मुद्दों को समझ सकती थी और आत्मविश्वास से भरी होने के साथ-साथ सरल भी थी।

जनता ने किया राजनीतिक एंट्री के लिए प्रेरित

लोगों ने मेरे पिता से कहा कि मुझे राजनीति में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही गांवों में दलितों के खिलाफ लगातार भेदभाव ने मुझे राजनीति को करियर के तौर पर सोचने के लिए प्रेरित किया। पिता के राजनीति से जुड़े होने के चलते उन पर वंशवाद की राजनीति के आरोप भी लगते हैं। इसको लेकर उन्होंने कहा कि मेरे दादा एक किसान थे, जिन्हें अपने गांव में दलित होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा था। इसके कारण उन्हें अपना गांव छोड़ना पड़ा और अपने समुदाय के अन्य लोगों के साथ बंजर जमीन पर बसना पड़ा, जो बाद में कटहरवा बन गया, जो मेरा पैतृक गांव है।

प्रिया सरोज ने बताया कि उनके पिता मुंबई में काम करते थे, लेकिन 1970 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन में भाग लेने के लिए उत्तर प्रदेश वापस आ गईं। उन्होंने कहा कि मेरे पिता जमीन से उठे हैं और उन्होंने बहुत गरीबी देखी है। मुझे भाई-भतीजावाद का शिकार कहना आसान है, लेकिन मैं जानती हूं कि हमारे पिता और दादा ने हमें यहां तक ​​लाने के लिए कितने संघर्ष किए हैं।

दिल्ली से की पढ़ाई

सांसद होने और सपा में महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने के बावजूद वह और उनके चार भाई-बहन मध्यम वर्गीय माहौल में पले-बढ़े। वह दिल्ली में अपने पिता को सांसद के तौर पर मुहैया कराए गए आवास में रही थीं और शहर के एयर फोर्स गोल्डन जुबली स्कूल में पढ़ीं। 2014 के लोकसभा चुनावों में मछलीशहर में अपने पिता की हार के बाद परिवार दिल्ली के द्वारका इलाके में एक अपार्टमेंट में रहने चला गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज और फिर एमिटी विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की।

उन्होंने बताया कि जब हम दिल्ली में रहते थे, तो मेरे पिता अपना ज़्यादातर समय अपने निर्वाचन क्षेत्र में बिताते थे लेकिन जब भी वे हमसे मिलते थे, तो हमें अपने जीवन के संघर्ष की कहानियां सुनाते थे। ये कहानियां मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं। उन्होंने आगे बताया कि उन्हें मछलीशहर का बीआरडी उनके पिता के निर्वाचन क्षेत्र में किए गए काम, पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और उनकी साफ़ छवि के कारण मिला था।

जनप्रतिनिधि होना कितना मुश्किल और जिम्मेदारी भरा काम है, यह अब 25 वर्षीय प्रिया सरोज को समझ आने लगा है। उन्होंने कहा कि मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र में हर दिन सुबह 9 बजे तीन घंटे की जनसुनवाई करती हूं। यहां हर तरह की शिकायतें लेकर आने वाले लोगों का तांता लगा रहता है, जिनमें से ज़्यादातर ज़मीन से जुड़े मुद्दे होते हैं और प्रशासन उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देता। मुझे एहसास हुआ कि पूरी व्यवस्था भ्रष्ट है। लोगों को थाने जाने के बजाय जनप्रतिनिधियों के दरवाज़े खटखटाने पड़ते हैं, जो कि आलोचनात्मक है।