लालू प्रसाद यादव के लिए भारत रत्न की मांग करने से लेकर सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाने तक, बिहार के तेली समुदाय और अन्य गैर-यादव पिछड़ी जातियों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए राजद (RJD) ने पिछले एक साल में काफी कोशिशें की हैं। समय-समय पर अति पिछड़ी जाति से आने वाले कर्पूरी ठाकुर का उल्लेख कर भी राजद ने यह प्रयास किया है कि वह गैर-यादव, गैर-ओबीसी वोटरों में भी पैठ बना सके।
इस बार के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने ‘नौकरी’ को सबसे अहम मुद्दा बनाया है। लेकिन इसी के साथ एक नई रणनीति के तहत पार्टी यह कोशिश कर रही है कि यादव-मुस्लिम वोट बैंक से आगे बढ़कर नई सामाजिक समीकरण तैयार किया जाए। इस बार राजद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) जैसी छोटी जातियों की पार्टियों के साथ भी तालमेल साधा है।
हालांकि, जमीनी हकीकत देखकर लगता है कि राजद को अपने वोट बेस को विस्तार देने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जब चंपारण, मध्य बिहार, शाहाबाद और सीमांचल जैसे इलाकों का दौरा किया गया तो गैर-यादव ओबीसी और ईबीसी वोटरों जैसे कुशवाहा, तेली, निषाद आदि में अब भी महागठबंधन के प्रति सीमित समर्थन देखा गया।
शाहाबाद जैसे इलाकों में 2020 के चुनाव में महागठबंधन का प्रदर्शन ठीक रहा था, लेकिन गैर-यादव वोटरों में अब भी ‘जंगलराज’ की यादें गहरी हैं।
इन जातियों में यादवों की बढ़ती राजनीतिक ताकत को लेकर असहजता और अविश्वास दोनों मौजूद हैं। विपक्ष को अब तक ऐसा कोई भरोसेमंद चेहरा नहीं मिला जो नीतीश कुमार को गंभीर चुनौती दे सके। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव भी इन जातियों में अभी मजबूत है।
पश्चिमी चंपारण के नूतन बाजार में पान बेचने वाले कृष्ण प्रसाद कहते हैं, “मैं नीतीश कुमार की राजनीति से थक चुका हूं। 2010 के बाद से विकास की बातें तो भूल ही गए हैं। स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ा है, और वह बार-बार पलटी मारते हैं।”
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या वे महागठबंधन को वोट देंगे, तो वे हंसते हुए कहते हैं, “आप चाहते हैं कि मैं घर पहुंचने से पहले ही लूट जाऊं? मुझे किसी पार्टी से कुछ नहीं मिला, लेकिन कम से कम अब शांति तो है।”
जयनगर गांव के कुशवाहा किसान निर्मल वर्मा कहते हैं, “हमने लालू राज देखा है। तब तो शाम के बाद कोई घर से बाहर नहीं निकलता था। अब हालात पहले से बेहतर हैं।” शंभूगंज के रमेश मंडल भी यही कहते हैं, “नीतीश ने भले ज्यादा नौकरियां न दी हों, लेकिन अब शांति है। यादवों की दादागिरी खत्म हो चुकी है।”
कुशवाहा समुदाय के केशव मेहता इस बार भी भाजपा में भरोसा जता रहे हैं। उनका कहना है, “डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी हमारे जिले से हैं। 2020 में तेजस्वी का 10 लाख नौकरियों वाला वादा असरदार था, लेकिन इस बार तभी वोट देंगे जब आरजेडी हमारी जाति से किसी को मौका देगी।
गोपालगंज के शिवशंकर चौहान शराबबंदी की आलोचना करते हैं और उनके बेटे बेरोजगारी पर सवाल उठाते हैं, लेकिन वे भी राजद को वोट देने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है, “तेजस्वी पर भरोसा नहीं है। उनके पिता के समय में तो बिहार से कानून-व्यवस्था ही गायब थी।”
सिवान जिले के दुकानदार अमरनाथ भगत कहते हैं, “नीतीश कुमार की उम्र बढ़ रही है, लेकिन अगर कोई अच्छा काम कर रहा है तो वह और 50 साल भी रह सकता है।”
दक्षिण बिहार में, जहां पिछले कुछ बार से राजद का प्रदर्शन ठीक रहा है, वहां भी माहौल कुछ बदला है। अरवल के संजय कुमार कहते हैं, “लालू जी से दिक्कत नहीं है, लेकिन यादवों के दबदबे से है। हरे गमछे का राज नहीं चाहिए।”
हालांकि, उम्मीद की किरण अब भी बाकी है। रामगढ़ के बेचन भगत कहते हैं, “हम लंबे समय से यहां सुरक्षित महसूस करते हैं। इसलिए हम आरजेडी को वोट देते हैं। हम स्थानीय समीकरण देखते हैं, बाकी जगह क्या चल रहा है, हमे मतलब नहीं।
पश्चिमी चंपारण में मुसहर जाति के प्रेम कुमार कहते हैं कि लालू ने हमें आवाज दी है, जमीन दी है। इसी तरह जैननगर के मोहन राम बोलते हैं- यह ज़रूरी नहीं है कि डाकू का बेटा भी डाकू ही निकले।
