MP News: मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में एक प्राइवेट फर्म की तरफ से माइनिंग प्रोजेक्ट हासिल करने के बाद मुआवजा का दावा करने के लिए सैंकड़ों भूत घर या खाली ढांचे बनाए थे। ये घर अब जिला प्रशासन की निगरानी में है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से कई घरों में दरवाजे या खिड़कियां नहीं हैं। कई मामलों में टूटी हुई ईंटें और गाय का गोबर नींव के तौर पर काम आता है। कुछ को 10 लाख रुपये से भी कम की लागत से जल्दबाजी में बनाया गया था।

वहीं कई लोगों ने कहा कि मकान मालिक होने के बाद भी उन पर मुआवजा पाने के लिए निर्माण कार्य करने का गलत आरोप लगाया गया है। स्थानीय प्रधान देवेंद्र पाठक ने कहा कि उन्होंने पुनर्वास के प्रोसेस को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि कंपनी हमें सही मुआवजा नहीं देना चाहती है।

पूरी टाइमलाइन

आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड 3 नवंबर 2020 को सिंगरौली में बांधा कोयला ब्लॉक के लिए पसंदीदा बोलीदाता के रूप में उभरी। 14 जून 2021 को अधिसूचना के बाद किए गए पहले जनसंख्या अनुमान से पता चला कि कोयला ब्लॉक के लिए निर्धारित क्षेत्र में 550 परिवार हैं। 12 मई 2022 को जिला कलेक्टर ने धारा 11 लागू कर दी। इसके बाद क्षेत्र में नए निर्माण पर रोक लग गई। 11 अप्रैल 2023 को 4,784 संरचनाओं को पुनर्वास के लिए आधिकारिक तौर पर मंजूरी दे दी गई। इससे वह मुआवजे के पात्र हो गए। 2,300 करोड़ रुपये की ग्रीनफील्ड कमर्शियल कोल माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए लोगों को ट्रांसफर किया जाना था।

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28 जून 2024 को EMIL ने सिंगरौली जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर कंपनी द्वारा किए गए सर्वेक्षण में विसंगतियों का आरोप लगाया। इसमें कहा गया है, ‘बंधा गांव में मौजूद संपत्तियों में कई तरह की विसंगतियां पाई गईं। रिकॉर्ड में सूचीबद्ध कुछ घर साइट पर नहीं पाए गए और अधूरे निर्माणाधीन घरों पर सर्वे किया गया।’ 8 नवंबर 2024 को कलेक्टर ने इन आवासों के निर्माण में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए 20 सदस्यीय टीम का गठन किया।

जिला प्रशासन की निगरानी

इंडियन एक्सप्रेस ने पाया कि 3,491 स्ट्रक्चर में से 200 का दौरा किया। यह सभी अब जिला प्रशासन की निगरानी में है। ऐसे ही एक स्ट्रक्चर के अंदर खड़े किसान प्रमोद कुमार ने बताया कि उन्होंने इसे बनाने में 10 लाख रुपये खर्च किए हैं। घर में दरवाजे, खिड़कियां, साज-सज्जा या पानी की आपूर्ति नहीं है और यह लगभग दो साल पहले बना था। कुमार ने कहा, ‘मैंने अपने बच्चों के लिए यह घर इस उम्मीद में बनाया था कि मुझे कुछ मुआवजा मिलेगा। किसी ने मुझे नहीं बताया कि यह अवैध है।

पिछले दो सालों में 30 से ज्यादा घर बने – स्थानीय बिल्डर

स्थानीय बिल्डर कमलेश प्रसाद का दावा है कि उन्होंने पिछले दो सालों में 30 से ज्यादा घर बनाए हैं। प्रसाद ने बताया, ‘बिना दरवाजे और खिड़कियों वाला एक कमरे वाला घर एक हफ्ते में 1 लाख रुपए में बन जाता है, तीन कमरों वाला घर 5 लाख रुपए में और कई कमरों वाला एक एकड़ का बड़ा घर जिसे ‘वीआईपी घर’ कहते हैं, उसे बनाने में 15 लाख रुपए से ज्यादा लगते हैं और इसे बनने में एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है।’

लाला सिंह का पुश्तैनी घर इलाके के सबसे बड़े घरों में से एक है। सिंह ने कहा, ‘हमने सिंगरौली से बिल्डरों को काम पर रखने के लिए 1 लाख रुपये खर्च किए। मुआवजे के लिए घर बनाने का यह क्रेज बाहरी लोगों द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने लगभग 10 लाख रुपये में 1-2 एकड़ जमीन पर घर बनाए। स्थानीय लोगों ने अपनी जमीन बाहरी लोगों को बेच दी और कुछ पैसे कमाए, इसका इस्तेमाल छोटे घर बनाने के लिए इंवेस्ट के तौर पर किया। अब हर कोई डरता है कि उनका निवेश बेकार चला गया है।’

अधिकारियों के लिए चैलेंज

बांधा के प्रधान देवेंद्र पाठक ने कहा कि गांव के लोगों के लिए अहम मुद्दा सही मुआवजा है। उन्होंने कहा, ‘हमने प्रशासन द्वारा पुनर्वास के प्रोसेस को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने नए अधिनियम के अनुसार नियमों का पालन नहीं किया है। हमने कंपनी की आपत्तियों को भी चुनौती दी है। कंपनी हमें सही मुआवजा नहीं देना चाहती हैं।’ सिंगरौली के एक अधिकारी राजेश शुक्ला ने कहा कि भूतहा घरों पर नजर रखना अधिकारियों के लिए एक मुश्किल काम क्यों है।’

सिंगरौली कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला ने कहा, ‘जांच में समय लगेगा क्योंकि कई पक्षों ने जांच के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। 20 सदस्यों वाली जांच दल का नेतृत्व कर रहे सिंगरौली सब डिविजनल मजिस्ट्रेट अखिलेश सिंह ने कहा कि टीम 3,491 घरों की जांच करेगी। उन्होंने कहा कि हम मुआवजे के सही घरों की सही संख्या की जांच करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कंपनी को बहुत पहले ही आपत्ति जता देनी चाहिए थी। ईएमआईएल के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमें समय-समय पर आपत्तियां उठाने का अधिकार है। हमने हर चार-पांच महीने में इन घरों की संख्या में बढ़ोतरी देखी। यही वजह है कि हमने अधिकारियों को सतर्क कर दिया।’ मुफ्त सुविधाएं और सेवाएं मुहैया कराने का क्या है औचित्य?

(Anand Mohan J की रिपोर्ट)