Uttarakhand Schools: एक बच्चे के पालन-पोषण के लिए जहां एक गांव की जरूरत होती है, वहीं उत्तराखंड के टिहरी जिले के भटोली गांव के गवर्नमेंट प्राइमेरी स्कूल में एकमात्र छात्रा अंसिका को पढ़ाने के लिए एक हेडमास्टर बिजयानंद बिजल्वाण, आंगनवाड़ी कर्मचारी गुलाबी देवी और भोजन माता दर्शनी देवी की जरूरत होती है।

उत्तराखंड में अंसिका जैसे स्कूल कोई असामान्य बात नहीं हैं। यह मामला 20 फरवरी को विधानसभा में उठा, जब राज्य के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने एकल-छात्र स्कूलों और शिक्षकों की तैनाती पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि 7,073 स्कूल ऐसे हैं जिनमें 20 से कम नामांकन हैं और 1,740 स्कूलों में सिर्फ एक टीचर है।

राज्य में 146 सिंगल चाइल्ड स्कूल

इस समय राज्य में 146 सिंगल चाइल्ड स्कूल हैं। इनमें से 131 सरकारी हैं व 1,379 सरकारी स्कूलों में औसतन तीन स्टूडेंट्स हैं। उत्तराखंड 20 से कम नामांकन वाले स्कूलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या वाला राज्य है। यह अरुणाचल प्रदेश के बाद में दूसरा है। राज्य शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि 2021 में उत्तराखंड को 255 प्राइमरी, 46 अपर प्राइमरी और 23 माध्यमिक सरकारी स्कूलों को जीरो नामांकन के कारण बंद करना पड़ा। 2022-23 में राज्य के सरकारी स्कूलों में से नौ प्राइमरी, दो अपर प्राइमरी और तीन सेकेंडरी स्कूलों में जीरो नामांकन था। 2011 की जनगणना के अनुसार, मात्र 113 लोगों की आबादी वाले भटोली गांव में क्लास 3 में पढ़ने वाली अंसिका 5-10 साल आयु वर्ग की एकमात्र बच्ची है।

घिसे हुए जूते और रोजाना पैदल यात्रा

हर रोज सुबह 8.30 बजे एक नीला ट्रैक सूट और एक जोड़ी फटे काले जूते पहनकर अंसिका अपने घर से उस जगह तक 1 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल पड़ती है, जहां हेडमास्टर हर रोज उसे स्कूल ले जाने और वापस लाने के लिए इंतजार करते हैं। हेडमास्टर बिजलवान कहते हैं कि जब 1959 में स्कूल बना था, तब इसमें 50 छात्र थे। वे कहते हैं, “पिछले कुछ सालों में ज्यादातर युवा काम के लिए दिल्ली या देहरादून चले गए हैं। कुछ दशक पहले यहां रहने वाले 30 परिवारों में से आज सिर्फ 18 ही बचे हैं।”

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उनका कहना है कि उनके कार्यभार संभालने के बाद से छात्रों की संख्या में कमी आई है। उन्होंने कहा, “जब मैंने 2004 में प्रधानाध्यापक का पद संभाला था, तब स्कूल में 18 बच्चे थे। 2016 में हमारे पास 10 छात्र थे। 2023 में, हमारे तीन छात्रों में से दो मिडिल स्कूल में स्नातक हो गए और सिर्फ अंसिका ही बची।”

प्राइमरी स्कूल पांच किलोमीटर दूर

बिजलवान कहते हैं कि उनके स्कूल के सबसे नजदीकी प्राइमरी स्कूल कम से कम 5 किलोमीटर दूर है। यहां तक कि सबसे नजदीकी कक्षा 5-8 के लिए स्कूल भी भटोली से 3 किलोमीटर दूर है और उस दायरे में कोई प्राइवेट स्कूल भी नहीं है। बिजलवान ने कहा, “अंसिका दो साल में अपर प्राइमरी स्कूल में जाएगी। तब तक, बगल की आंगनवाड़ी में चार साल की बच्ची भी स्कूल में शामिल हो जाएगी। जब तक कोई छात्र रहेगा, हम उसे पढ़ाते रहेंगे।”

अंग्रेजी की क्लास के दौरान अंसिका को किताबों से जोर से पढ़ने के लिए कहा जाता है। अपना होमवर्क दिखाने के लिए कहने पर वह माफी मांगती है और कहती है, “जब मैं घर पहुंची तो बिजली चली गई थी। यह आज सुबह ही बहाल हुई।” इस पर उसे थोड़ी देर के लिए समय दिया जाता है। सुबह 11.30 बजे छुट्टी के दौरान आंगनवाड़ी कक्ष में एक कटोरी नाश्ता खाते हुए, अंसिका कहती है, “मैं बड़ी होकर एक टीचर बनना चाहती हूं, लेकिन ऐसे स्कूल में जहां बच्चे हों।”

पहले पढ़ते थे 45 स्टूडेंट्स

अंसिका के पिता विक्रम सिंह रावत ने कहा जब हम उस स्कूल में पढ़ते थे तो करीब 45 छात्र थे। उन्होंने कहा कि मेरे तीनों बच्चे इसी स्कूल में पढ़े हैं। अपनी बेटी को एकल-बाल विद्यालय में क्यों भेजना जारी रखते हैं, इस पर वे कहते हैं, “गांव सुरक्षित जगह है। साथ ही, मेरे पास उसे प्राइवेट स्कूल में भेजने के लिए पैसे नहीं हैं। हेडमास्टर उसे लेने और छोड़ने जाते हैं। अगर वे व्यस्त हैं, तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता यह काम करती हैं। पिछले हफ्ते 12 विद्यालयों के बीच हुई प्रतियोगिता में अंसिका दूसरे नंबर पर रही। ऐसा लगता है कि एकमात्र छात्रा होने का फायदा यह हुआ कि सभी का ध्यान उस पर केंद्रित है।”

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अंसिका होनहार छात्रा- हेडमास्टर

बिजलवान भी अंसिका की तारीफ करते हैं। उन्होंने कहा कि वह एक अच्छी और होनहार छात्रा है। उत्तराखंड ने अंसिका की पढ़ाई के लिए धन आवंटित किया है। यह एक जोड़ी जूते और बैग के लिए 318 रुपये, दो जोड़ी यूनिफॉर्म के लिए 600 रुपये, उसके मिड डे मील के लिए रोजाना 6.97 रुपये और हर हफ्ते खाने के लिए 5 रुपये। हालांकि दोपहर का खाना आम तौर पर गरम दाल, चावल और एक सब्जी होता है, लेकिन अंसिका गुरुवार का बेसब्री से इंतजार करती है, जब उसे खाने के साथ एक अंडा मिलता है।

हेडमास्टर ने कहा, ‘यह राशि तब काम आती है जब स्कूल में एक नहीं बल्कि 20 छात्र होते हैं।’ यह तब है जब सरकार एक बच्चे वाले स्कूल पर सालाना करीब 10 लाख रुपए खर्च करती है। इस खर्च में किताबें, फर्नीचर, बिजली और हेडमास्टर का वेतन आदि शामिल हैं। दो टीचरों का मतलब है सालाना 6 लाख रुपए का अतिरिक्त खर्च। टिहरी की डीईई हेलमता भट्ट ने कहा कि भले ही स्कूल में एक भी बच्चा हो, हमे उन्हें पढ़ाई से वंचित नहीं कर सकते।’

क्लस्टर स्कूलों का विधानसभा में उठा मुद्दा

विधानसभा में बोलते हुए मंत्री रावत ने भी क्लस्टर स्कूलों का मुद्दा उठाते हुए कहा, “सरकार ने फैसला किया है कि अगर कोई बच्चा क्लस्टर स्कूल योजना का हिस्सा बनना चाहता है, तो उसे प्रति ट्रिप (एक तरफ) 22 रुपये दिए जाएंगे।” भटोली के लोगों के लिए स्कूल तक की लंबी पैदल यात्रा अक्सर गांव की कठिन जिंदगी से बाहर निकलने का एक रास्ता बन जाती है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद उत्तराखंड में पहला लिव-इन रिलेशनशिप रजिस्टर