Bihar Vidhan Sabha Elections: मोदी सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर यानी कि जीएसटी का सरलीकरण कर आम जनता को एक बड़ी राहत देने का काम किया है। पहले जहां जीएसटी के तहत चार टैक्स स्लैब रहते थे, अब घटाकर सिर्फ दो कर दिए गए हैं। वहीं कुछ खास वस्तुओं पर 40 फीसदी टैक्स रहेगा। सवाल यह उठ रहा है कि आम जनता को मिली राहत का क्या बिहार चुनाव पर भी कोई असर पड़ने वाला है? सभी जानना चाहते हैं कि क्या बिहार चुनाव के लिहाज से मोदी सरकार का यह कोई मास्टर स्ट्रोक है? अब इस सवाल का स्पष्ट जवाब है- हां।
जीएसटी मुद्दे का बिहार चुनाव पर असर?
बिहार चुनाव में एनडीए को इस दांव का फायदा मिल सकता है। इसका कारण यह है कि बिहार में भी बड़ी आबादी निम्न और मध्यम वर्ग की है। इस आबादी की जरूरतों में दूध, दाल, तेल, दवा और पैकेज्ड खाद्य पदार्थ के सामान सबसे प्रमुख रहते हैं। अब इन्हीं वस्तुओं पर जीएसटी की दर कम कर दी गई हैं, ऐसे में इस वर्ग को सीधा फायदा पहुचेगा। इसके अलावा होटल, रेस्टोरेंट, फ्लाइट टिकट और कई घरेलू सामान की दरों में भी कमी आने जा रही है, ऐसे में इससे भी इसी वर्ग को राहत मिलेगी।
मिडिल क्लास को साधेगी बीजेपी?
आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि बिहार में निम्न और मध्यम वर्ग की आबादी सबसे ज्यादा है। बिहार सरकार ने सभी स्पष्ट रूप से तो मिडिल क्लास की परिभाषा नहीं बताई है, लेकिन 2022 का जाति-आधारित सर्वेक्षण इस मुद्दे पर कुछ प्रकाश जरूर डालता है। उस सर्वे के मुताबिक बिहार में 34.13% परिवार (लगभग एक तिहाई) ऐसे हैं जिनकी महीने की औसतन कमाई 6000 या उससे कम चल रही है। इन्हें गरीबी रेखा के अंतर्गत माना जा सकता है। वहीं बिहार की करीब चार फीसदी आबादी ऐसी है जो इस समय मासिक 50 हजार या उससे ज्यादा कमा रही है। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 18 फीसदी परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आय 10,000 – ₹20,000 चल रही है।
अब बिहार जैसे राज्य में जहां पर मध्यम वर्ग की आबादी इतनी ज्यादा हो, वहां अगर जीएसटी सरलीकरण से उसके महीने कुछ रुपये बचने शुरू हो जाएं, तो यह बड़ी राहत के रूप में देखा जाएगा। नौकरी करने वाले इंसान के लिए तो इसके मायने और ज्यादा बढ़ जाते हैं।
नेरेटिव की जंग, बीजेपी या राजद- किसे फायदा?
ऐसे में जानकार मानते हैं कि बिहार जैसे राज्य में जीएसटी सरलीकरण का यह फैसला काफी प्रभाव रखने वाला है। लोगों के जब पैसे बचेंगे, उनका बजट सुधरेगा, बजट सुधरेगा तो जीवन में संघर्ष कम होगा। ऐसे में इसका फायदा चुनाव में एनडीए को मिल सकता है। वैसे समझने वाली बात यह भी है कि कोई भी चुनाव सिर्फ मुद्दों के आधार पर नहीं जीता जा सकता, नेरेटिव क्या बनाया जा रहा है, इसके भी मायने अलग रहते हैं। इसका एक उदाहरण पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान दिख चुका है जब विपक्ष ने कहा था कि मोदी सरकार अगर फिर जीती तो संविधान में बदलाव कर दिया जाएगा, इसका असर रहा कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत तक नहीं पहुंच पाई और उसकी सीटें 240 पर सिमट गई।
ऐसे में नेरेटिव मायने रखता और अब जीएसटी सरलीकरण को मुद्दा बना बीजेपी भी कुछ ऐसा ही करने वाली है। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया है कि उनके कार्यकाल में महंगाई बढ़ी है, मिडिल क्लास को कुछ खास फायदा नहीं हुआ, ऐसे में अब उसी आरोप की काट यह जीएसटी फैसला बन सकता है। बीजेपी तो इसे अभी से ही एक ‘त्योहारी तोहफे’ के रूप में पेश कर रही है, वो मानकर चल रही है कि उसे शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में इसका फायदा हो सकता है।
दिल्ली चुनाव वाली रणनीति बिहार में आएगी काम?
वैसे मोदी सरकार का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड भी बताने के लिए काफी है कि ऐसे ‘लुभावने’ फैसले चुनावी मौसम में फायदा दे जाते हैं। इस साल संपन्न हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव इसका अच्छा उदाहरण है जब सरकार ने ’12 लाख तक की आय पर नो टैक्स’ मुद्दे को अच्छे से भुनाया था। उस समय राजधानी में मिडिल क्लास आबादी में एक सीधा संदेश गया कि उनके हित में कोई बड़ा फैसला हुआ है, ऐसे में बीजेपी को उस वर्ग का वोट भी मिला। अब बिहार में पार्टी उस रणनीति पर आगे बढ़ सकती है।
जीएसटी मुद्दे से विपक्ष को कुछ हासिल?
अब अगर बीजेपी अपने लिए फायदा देख रही है, एक अवसर विपक्ष के लिए भी बन सकता है। असल में जानकार बता रहे हैं कि जीएसटी में जो सरलीकरण का फैसला हुआ है, इससे राज्यों को अपने राजस्व में नुकसान होगा। PRS Legislative Research के एक आंकड़े के मुताबिक बिहार के अपने कर-राजस्व में SGST की हिस्सेदारी 63 फीसदी के करीब बैठती है, ऐसे में इन कम दरों की वजह से इस पर असर पड़ना तय है। विपक्ष इसे एक मुद्दा बना सकता है, लेकिन यहां पर एनडीए भी उसे ‘जनता विरोधी’ बता सकती है क्योंकि लड़ाई फिर सीधे-सीधे राजस्व बनाम महंगाई की छिड़ जाएगी।
मास्टर स्ट्रोक किसके लिए- सरकार या विपक्ष?
विपक्ष के लिए एक मुद्दा छोटे व्यापारियों का भी हो सकता है। कुछ जानकारों का मानना है कि जीएसटी में जो ये व्यापक बदलाव हो रहे हैं, कुछ समय के लिए ई-इनवॉइस/रिटर्न/बिलिंग में कुछ समस्याएं आ सकती हैं, ऐसे में उस वर्ग में आक्रोश भर सकता है। अब उस आक्रोश को विपक्ष भुनाने की कोशिश कर सकता है। इसके अलावा विपक्ष इस पूरे मामले में श्रेय लेने का प्रयास भी कर सकता है। असल में जीएसटी दरें कम करने की अपील तो विपक्षी पार्टियां भी लगातार कर रही हैं, ऐसे में राजद और कांग्रेस जनता के सामने कह सकती है- हमने दबाव बनाया तब जाकर सरकार झुकी और जीएसटी दरों में कटौती की गई। ऐसे में चुनावी मौसम में जीएसटी सरलीकरण एक बड़ा मुद्दा तो जरूर बनने जा रहा है, मास्टर स्ट्रोक किसके लिए साबित होगा- एनडीए या फिर महागठबंधन, ये आने वाले दिनों में साफ होगा।
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