Muslim Voters: पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम (AIMIM) ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की है। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। जो समुदाय की उन क्षेत्रों में अपने विकल्पों में विविधता लाने की इच्छा को दर्शाती हैं जहां उन्हें लगता है कि इस प्रयोग से भाजपा को लाभ नहीं होगा।

बिहार चुनाव के नतीजे बताते हैं कि एआईएमआईएम (AIMIM) ने 40% से ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाली नौ सीटों में से पांच पर जीत हासिल की। जहां उसके उम्मीदवारों ने निर्णायक जीत हासिल की है। उन्होंने महागठबंधन या जेडीयू द्वारा उतारे गए चार मुस्लिम उम्मीदवारों को हराया, और एक सीट पर पार्टी ने भाजपा के एक हिंदू उम्मीदवार को हराया। पांच में से तीन सीटों पर एआईएमआईएम ने एनडीए के उम्मीदवारों को हराया, जिनमें जेडीयू के दो उम्मीदवार भी शामिल थे। एआईएमआईएम द्वारा जीती गई पांच सीटें बैसी, जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन और अमौर हैं।

AIMIM ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में भी सात उम्मीदवार उतारे जहां मुस्लिम आबादी 25% से 40% के बीच है, लेकिन वह इनमें से कोई भी सीट नहीं जीत पाई और ये सीटें एनडीए के खाते में चली गईं। कांग्रेस को छोड़कर, जिसने किशनगंज सीट जीती, न तो राजद और न ही भाकपा-माले-लिबरेशन ने इस क्षेत्र में जीत दर्ज की, जो दशकों से चली आ रही मुस्लिमों द्वारा राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन का समर्थन करने की परंपरा में बदलाव का संकेत है। यह परिणाम एक बड़ी बात की ओर इशारा करता है- हिंदू-नेतृत्व वाली पार्टियों से आगे देखने की इच्छा और एक ऐसे संगठन को प्राथमिकता देना जो उनका “अपना” माना जाता है, भले ही इससे भाजपा और उसके सहयोगियों को मदद मिलने का जोखिम हो।

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यह पैटर्न पहली बार 2020 के चुनावों में सामने आया, जब सीमांचल के मुसलमानों ने ओवैसी को वोट दिया, जबकि राजद और कांग्रेस उन पर भाजपा की “बी-टीम” होने का आरोप लगा रहे थे। एआईएमआईएम ने तब पांच सीटें जीती थीं, हालांकि बाद में चार सीटें राजद में चली गईं। फिर भी पार्टी का आधार कम होता नहीं दिख रहा है।

ओवैसी ने समुदाय की “आहत भावना” का फायदा उठाया है, जिसे राजनीतिक वैज्ञानिक “अदृश्यता” (Political Scientists Term Invisibilisation)कहते हैं, और इस ओर इशारा किया है कि कैसे धर्मनिरपेक्ष दल मुस्लिम वोट तो चाहते हैं लेकिन “उचित” प्रतिनिधित्व देने से हिचकिचाते हैं। नतीजे बताते हैं कि समुदाय के कई लोग उनकी बात सुन रहे हैं। ऐसा कुछ जो भविष्य में धर्मनिरपेक्ष दलों को अधिक मुस्लिम प्रतिनिधित्व के लिए कठिन विकल्पों का सामना करने के लिए मजबूर कर सकता है।

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