जिन प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य हो गया है, जहां महंगाई के सवालों से तमाम सियासी समीकरणों को धता बताने का दांव चला जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी और इस कारण बढ़ती महंगाई को सियासी मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। बंगाल को ‘सोनार बांग्ला’ बनाने के वादों के साथ मैदान में उतरी भारतीय जनता पार्टी वहां ‘असली परिवर्तन’ लाने के दावे कर रही है।
भाजपा को वहां धार्मिक और जातिगत आधार पर नए ध्रुवीकरण एवं समीकरण बनने की उम्मीद है। अब तक दो-ध्रुवीय सियासी मुकाबले का अखाड़ा रहे बंगाल में वाममोर्चा-कांग्रेस और नवगठित इंडियन सेकुलर फ्रंट का गठबंधन युवाओं का मुद्दा उठा रहा है। इस गठबंधन ने रोजगार और राज्य में औद्योगिकरण की बात उठाकर अपने कैडरों को सड़क पर सक्रिय कर दिया है, जिससे मुकाबला तितरफा बन रहा है। वाममोर्चा और कांग्रेस अपने उस मतदाता वर्ग का समर्थन वापस पाने की जुगत में हैं, जिन्हें उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में गंवाया था। अपने कैडर-कार्यकर्ताओं की ताकत इस गठबंधन ने ब्रिगेड मैदान में रैली कर दिखाई है।
इस दफा चुनावी जनसभाओं के साथ ही लोगों से सीधे संवाद पर अधिकांश नेता और उम्मीदवार जोर दे रहे हैं। भाजपा ने परिवर्तन यात्राएं निकालीं और सोनार बांग्ला के अपने एजंडे को गिनाया। बंगाल की 70 फीसद अनुसूचित जाति वाले वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए मतुआ समुदाय को रिझाने की कोशिश की। हिंदू मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जय श्रीराम के नारे को बंगाल में भी आजमाने की कोशिश की है। भाजपा के नेता ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के साथ दिखने की कोशिश कर रहे हैं। जवाब में तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी और उनके तमाम नेताओं ने पदयात्राएं निकालीं और तमाम मुद्दे उछाले। इस बीच, उन्हें महंगाई का मुद्दा हाथ लगा है, जो सीधे महिलाओं को मध्य वर्ग को प्रभावित करता है।
सिलीगुड़ी और फिर कोलकाता में महिलाओं को साथ लेकर पांच-छह किलोमीटर की पदयात्राएं निकालकर ममता बनर्जी ने रसोई गैस, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का मुद्दा सरगर्म कर दिया है। बंगाल में 49 फीसद महिला मतदाता हैं, जिनको ध्यान में रखकर भाजपा ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा उठाया। जवाब में तृणमूल ने महिलाओं की पदयात्राएं निकालकर महिला शक्ति दिखानी शुरू कर दी।
भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों का मुद्दा उठा दिया। बंगाल में कुल 7.18 करोड़ मतदाताओं में 3.15 करोड़ महिलाएं हैं। इन्हें ध्यान में रखकर तृणमूल ने 50 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वे केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना को लेकर तंज करती नजर आ रही हैं। खुद को इस बार बंगाल की बेटी के तौर पर ममता बनर्जी पेश कर ही हैं। नारा दिया है- ‘बांग्ला निजेर मेये के चाए’ यानी बंगाल अपनी बेटी को चाहता है। बंगाल की बेटी की बहस में वे भाजपा को उलझाने की कोशिश में हैं। जवाब में भाजपा के नेता बुआ (ममता) और भतीजे (अभिषेक बनजी) के सिंडिकेट की बात उठा रहे हैं।
भाजपा की ब्रिगेड रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुआ-भतीजा तंज किया। इस मुद्दे पर महिलाओं की भावनाओं को भुनाने में जुट गई हैं ममता। वे महिलाओं के लिए अपनी सरकार की योजनाएं गिना रही हैं- कन्याश्री योजना (13 से लेकर 18 साल की स्कूल जाने वाली लड़कियों को एक हजार रुपए की छात्रवृत्ति), रूपाश्री योजना (18 साल से ज्यादा उम्र की गरीब लड़कियों को शादी के लिए 25 हजार रुपए), सबुज साथी (जरूरतमंद गरीब लड़कियों को मुफ्त में साइकिल देने की व्यवस्था), मातृत्व शिशु देखभाल योजना (सरकारी नौकरी करने वाली महिलाओं को दो साल तक की छुट्टी का प्रावधान)। इसके अलावा पांच रुपए में भरपेट भोजन और स्वास्थ्य कार्ड योजना है, जिसके जरिए तृणमूल कांग्रेस को लोगों से जुड़ने में सहूलियत हो रही है।
सत्ताविरोधी वोटों का गणित
सत्ताविरोधी नाराजगी मतों से बदलने की आशंका से तृणमूल कांग्रेस जूझ रही है। इसकी बानगी 2019 के चुनाव में दिख चुकी है, जब भाजपा ने लोकसभा की 18 सीटें जीत लीं और अपने मतों का प्रतिशत बढ़ाकर 40.64 फीसद कर लिया। इसके मद्देनजर भाजपा ने मेहनत बढ़ा दी। लेकिन सियासी मैदान में वाममोर्चा-कांग्रेस-आइएसएफ की चुनौती से मतों के हेरफेर की गुंजाइश बनी है। वामो-कांग्रेस ने लोकसभा में अपने 29 फीसद वोट खोए, जो भाजपा के साथ गए। लेकिन इस दफा उनके कार्यकर्ता सड़कों पर सक्रिय हैं और अपनी जमीन वापस पाने की जुगत में हैं। माना जा रहा है कि अगर गठबंधन ने अपना वोट फीसद बढ़ाया तो फायदा तृणमूल को होगा। ममता के खिलाफ सत्ताविरोधी वोट ये लोग खींच सकते हैं।
सामुदायिक समीकरण
बंगाल की राजनीति में मतुआ संप्रदाय अहम है और भाजपा आदिवासी और अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय के लोगों पर फोकस कर अपना मिशन-200 पूरा करना चाहती है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 1.84 करोड़ है और इसमें 50 फीसद मतुआ संप्रदाय के लोग हैं। इसके अलावा कूचबिहार में भाजपा ने राजबंशी समुदाय को अपने साथ जोड़ने के लिए कई घोषणाएं की हैं।
जातिगत और सामुदायिक पहचान की इस राजनीति की काट के लिए ममता बनर्जी ने ‘बंगाल की अपनी बेटी’ और महंगाई के खिलाफ अभियान का दांव चला है। अगर जनता से जुड़े मुद्दों की बात करें तो उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन धन योजनाओं को भाजपा के नेता गिना रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई जगहों की सफलता में भाजपा केंद्र की इन योजनाओं की अहम भूमिका मानती है।