पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर 24-परगना जिला के बशीरहाट इलाके में दो साल पहले बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। उसके बाद से ही इलाके में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई चौड़ी हो गई थी। अब तृणमूल कांग्रेस के सामने इस खाई को पाटना ही सबसे बड़ी चुनौती है। पार्टी दो बार बशीरहाट सीट जीत चुकी है। लेकिन अबकी उसकी राह आसान नहीं है। इस हालात से निपटने के लिए ही ममता बनर्जी ने यहां नए चेहरे को मैदान में उतारा है। तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार नुसरत आठ साल से बांग्ला फिल्मों की शीर्ष अभिनेत्री हैं। ममता को उम्मीद है कि उनके ग्लैमर से सांप्रदायिक खाई को पाटने में सहूलियत होगी। लेकिन साथ ही सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या फिल्मों की तरह राजनीति में भी नुसरत का जादू चलेगा?
दूसरी ओर, दो साल पहले की सांप्रदायिक खाई को हथियार बना कर भाजपा भी नागरिकता (संशोधन विधेयक और नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) के सहारे अबकी तृणमूल कांग्रेस से यह सीट छीनने का दावा कर रही है। इसके लिए पार्टी ने प्रदेश महासचिव सायंतन बसु को यहां मैदान में उतारा है। इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ और पिछड़ापन ही सबसे बड़ा मुद्दा है। भारी गर्मी के बीच दूर-दराज के इलाके में प्रचार करतीं नुसरत कहती हैं कि वे प्यार व मानवता के सहारे यहां दो समुदायों के बीच की खाई को पाटना चाहती हैं। हर तबके के लोग उनको प्यार करते हैं। नुसरत के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस की ओर से शुरू की गई विकास योजनाएं ही उनका प्रमुख हथियार हैं। वर्ष 2017 में मुसलिम-बहुल बशीरहाट में एक फेसबुक पोस्ट के बाद इलाके में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। इलाके में उस हिंसा के निशान अब भी देखे जा सकते हैं। नुसरत जहां अपने भाषण में लोगों से कहती हैं कि वे दीदी के लिए वोट दें। वे (नुसरत) उनके प्रतिनिधि के तौर पर काम करेंगी। नुसरत की सभाओं में हर तबके के लोगों की भीड़ उमड़ती है। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका ग्लैमर है। तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि यह भीड़ वोटों में बदलेगी और नुसरत आसानी से जीत जाएंगी।
बशीरहाट संसदीय सीट लगभग तीन दशक तक भाकपा का गढ़ रही है और इंद्रजित गुप्त भी यहां से सांसद रह चुके हैं। वर्ष 2009 में तृणमूल उम्मीदवार शेख नुरूल इस्ताम ने भाकपा के अजय चक्रवर्ती को 60 हजार वोटों से हराया था। तब भाजपा उम्मीदवार स्वपन कुमार दास को महज 6.51 फीसद वोट मिले थे। वर्ष 2019 में तृणमूल उम्मीदवार इदरीस अली की जीत का अंतर तो बढ़ कर 1.10 लाख तक पहुंच गया। लेकिन भाजपा को मिलने वाले वोट भी बढ़ कर 18.36 फीसद तक पहुंच गए। अबकी तृणमूल की नुसरत जहां के अलावा भाकपा के पल्लब सेनगुप्ता, भाजपा के सायंतन बसु और कांग्रेस के काजी अब्दुर रहमान यहां मैदान में हैं।
नुसरत कहती हैं कि दीदी यानी ममता बनर्जी उनको दो समुदायों की खाई पाटने के लिए एक पुल की भूमिका में देखती हैं। एक मुसलिम होने के बावजूद उन्होंने फिल्मों में हिंदू भूमिकाएं भी निभाई हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि दो साल पहले हुई सांप्रयादिक हिंसा और उस बहाने इलाके में भाजपा की बढ़ती पैठ को ध्यान में रखते हुए ममता इस सीट के लिए कोई गैर-राजनीतिक चेहरा तलाश रही थीं और नुसरत उनके मापदंडों पर खरी उतरी।
राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि इलाके में तृणमूल को अल्पसंख्यकों का समर्थन तो पहले से ही हासिल है। अब नुसरत अगर अपनी फिल्मी छवि के सहारे हिंदू वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहती हैं तो उनकी जीत तय है। किसी राजनीतिक चेहरे के मैदान में उतारने की स्थिति में ऐसा संभव नहीं होता।
दूसरी ओर, भाजपा भी यहां अपनी जीत के दावे कर रही है। पार्टी उम्मीदवार सायंतन बसु कहते हैं कि ममता की तुष्टीकरण की नीति से इलाके के हिंदुओं में भारी नाराजगी है। इसी वजह से लोगों का समर्थन भाजपा के साथ है।