पश्चिम बंगाल में प्रथम और द्वितीय चरण में जिन 60 सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे, उनमें से छह जिलों की 44 सीटों पर मुकाबला अहम बन रहा है। छह जिलों की ये सीटें बंगाल का ‘जंगलमहल’ कहे जाने वाले इलाकों में पड़ती हैं। इन सीटों पर ‘बाहरी’ बनाम ‘बंगाल का डीएनए’ का दांव मतदाताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। भाजपा के लिए ‘बाहरी’ का नारा तृणमूल कांग्रेस ने उछाला है। ताजातरीन निशाना तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के चुनाव घोषणापत्र जारी करने के कार्यक्रम को बनाया है। बाहरी जवाब में भाजपा के शीर्ष नेताओं ने खुद को ‘बंगाल के डीएनए’ में शामिल बताना शुरू किया है।

इसके लिए हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल के झारखंड से सटे सीमावर्ती जिलों में हुई जनसभाओं में श्यामाप्रसाद मुखर्जी व उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी का जिक्र करते हुए डीएनए की बात उठा दी। इस तरह की कवायद बंगाल का ‘जंगलमहल’ कहे जाने वाले इलाकों में चरम पर है। जंगलमहल में विधानसभा की 44 सीटें आती हैं। इनमें बांकुड़ा जिले में 12, पुरुलिया में नौ, पश्चिम मेदिनीपुर में 19 और झारग्राम में चार सीटें हैं। तीन दशक तक यह इलाका वाममोर्चा का गढ़ रहा। बंगाल में वामदुर्ग ढहने के बाद यह तृणमूल कांग्रेस का गढ़ बना और पिछले लोकसभा चुनाव में इस आदिवासी बहुल इलाके से भाजपा को आठ में से पांच सीटें मिल गईं।

यहां भाजपा की उम्मीदें उठान पर हैं। यह पिछड़ा आदिवासी इलाका कभी माओवादियों का गढ़ रहा था। ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद यहां से माओवादी हिंसा खत्म हुई, लेकिन विकास को लेकर सवाल उठते रहे। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में विकास के सवाल उठाए थे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इस इलाके में भाजपा का वोट फीसद 20 रहा। 2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा को 27 फीसद और 2019 में सीधे 47 फीसद वोट मिल गए। यही कारण है कि भाजपा ने जंगलमहल को अपना ‘मछली की आंख’ बना रखा है।

झारखंड और बिहार की सीमाओं से सटा बंगाल का यह दक्षिण-पश्चिमी भाग उग्रवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गढ़ रहा। साल 2008 और 2011 के बीच यहां जबरन भूमि अधिग्रहण और सूदखोरी के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन चला। ये इलाका पिछले कुछ दशकों में कई राजनीतिक विचारधाराओं का गवाह रहा। यहां के लोगों पर कांग्रेस के तिरंगे से लेकर माओवादियों के लाल और फिर तृणमूल कांग्रेस के हरे और सफेद रंग तक का प्रभाव पड़ता रहा। पिछले पंचायत चुनाव में यहां आदिवासी समुदाय के कई निर्दलीय उम्मीदवारों ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को हराया।

भाजपा को पुरुलिया और झाड़ग्राम जिलों में एक तिहाई से अधिक ग्राम पंचायत सीटों पर जीत मिली। यही कारण है कि जंगलमहल के इलाकों में भाजपा की मेहनत ज्यादा दिख रही है। दरअसल, यहां सरस्वती शिशु मंदिर स्कूलों, वनवासी कल्याण केंद्र के अलावा एकल विद्यालयों के नेटवर्क से भाजपा को लाभ जरूर मिल रहा है। भाजपा के नेता दिलीप घोष से लेकर केंद्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय तक तम्2019 में इस इलाके में पकड़ कमजोर होने के बाद से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने लोगों तक सीधा संवाद कायम किया। कुछ दिन पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन ने ममता बनर्जी को अपना समर्थन देने का एलान किया, इससे तृणमूल कांग्रेस अपने वोट बैंक में सुधार की उम्मीद कर रही है। सत्ता में आने के बाद ममता बनर्जी ने इस इलाके में कई काम किए, लेकिन अभी भी गरीबी और बेरोजगारी यहां बड़ा मुद्दा है।

लालगढ़ में माओवादी गतिविधियों के आरोप में जेल भेजे गए नेता छत्रधर महतो को रिहा होने के बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल किया। उन्हें तृणमूल कांग्रेस में महासचिव बनाया गया है। छत्रधर महतो को सामने रखकर जंगलमहल इलाके में बंगाल सरकार की दुआरे सरकार योजना लागू की गई, जमीन के विवादों को खत्म करने पर जोर दिया गया, जाति प्रमाण पत्र जारी किए गए, राशन कार्ड दिए गए। यहां मुफ्त राशन योजना चलाई जा रही है। पूर्णबंदी के दौर में घर लौटने वालों के लिए राज्य की 100 दिन योजना के तहत रोजगार दिया गया। इन वजहों से 2019 के समीकरण में बदलाव की बात कही जा रही है।

कभी था वाम का गढ़
नेताओं की इस इलाके में सक्रियता बढ़ी है। वर्ष 2006 में वाममोर्चा को इस इलाके से 36 सीटों पर जीत मिली थी, जो 2016 में तीन तक सिमट गई। 2006 में शून्य के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस 2016 के विधानसभा चुनाव में 30 पर पहुंच गई। 2018 के पंचायत चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। लोगों को वोट डालने नहीं देने के आरोप लगे। इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखा।

जनसंघ के जन्मदाता श्यामाप्रसाद मुखर्जी हैं। इस लिहाज से भाजपा ही बंगाल की मूल पार्टी है। भाजपा के डीएनए में आशुतोष मुखोपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुखोपाध्याय के आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार हैं।
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, खड़गपुर की जनसभा में

बंगालियों के हाथ में ही बंगाल रहेगा। बाहरी और बंगाल विरोधी तत्वों के हाथों में बंगाल को नहीं जाने देंगे।
– ममता बनर्जी, बांकुड़ा समेत कई जनसभाओं में