रसगुल्ले का आविष्कार पश्चिम बंगाल में होने का दावा करते हुए राज्य सरकार ने इस पर अपना औपचारिक दावा करने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है। पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के विज्ञान व प्रोद्योगिकी विभाग ने अपने केंद्रीय समकक्षों के साथ रसगुल्ले का भौगोलिक उपदर्शन प्रमाणीकरण कराने की कोशिश जारी कर दी है ताकि इसकी पहचान को बंगाल के साथ जोड़ा जा सके।
‘पश्चिम बंगो मिष्ठानो व्यवसायी समिति’ के प्रवक्ता और नॉर्थ कोलकाता में प्रसिद्ध मिठाई की दुकान के मालिक जगन्नाथ घोष ने कहा कि इस संबंध में सोमवार को राज्य की महिला व बाल कल्याण राज्य मंत्री शशि पांजा ने उनके प्रतिनिधिमंडल को इस बात से अवगत कराया है।
इस पर मंत्री ने कहा, ‘हमारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हमसे कहा कि रसगुल्ले के आविष्कारक के तौर पर बंगाल को उसका सही स्थान दिलाने के लिए सभी आवश्यक काम किए जाएं। साल 1868 में नवीन चंद्र दास ने इस मिठाई से प्रदेशवासियों का परिचय कराया था और यह सही बात है कि हम हमारी विरासत को किसी और को नहीं हड़पने दे सकते’।
केसी दास प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और नवीन चंद्र दास की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य संजय दास ने कहा कि यह ऐतिहासिक रूप से जाना जाता है कि घरेलू पनीर को चाशनी में डुबोकर रसगुल्ला बनाने में दास परिवार शीर्ष पर है। संजय दास ने कहा, ‘रसगुल्ले का आविष्कार शहर में ही होने पर जब कानूनी मुहर लग जाएगी तो इसे वैश्विक पहचान दिलाई जा सकेगी। फिर इस क्षेत्र में और अधिक शोध व विकास कार्य किए जा सकेंगे। यदि रसगुल्ले के बंगाल में ही बनाए जाने की मान्यता मिल जाती है तो फिर भविष्य में हम इसके लिए पेटेंट भी ले सकेंगे’।
भौगोलिक उपदर्शन एक तरह की पहचान प्रणाली है। इसके तहत किसी वस्तु के नाम या निशान को उसके उत्पन्न होने की भौगोलिक स्थिति जैसे कि शहर, क्षेत्र या देश के नाम से पहचानबद्ध किया जाता है। यह उत्पादों के प्रमाणीकरण में भी काम आता है और यह बताता है कि किसी उत्पाद का निर्माण पारंपरिक विधि से हुआ है और यह किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में ही उत्पन्न हुआ है।
पांजा ने कहा कि कारोबारियों की ओर से यदि कोई आधिकारिक प्रस्ताव आता है तो सरकार इस पर विचार करेगी। पूरा उत्तरी कोलकाता विरासतीय स्थलों से भरा हुआ है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हमेशा विरासत को सहेजने के लिए प्रयासरत रहती हैं फिर वह चाहे मिठाई हो या इमारत।
दास का कहना है कि उनका ओड़ीशा के साथ कोई झगड़ा नहीं है। हर कोई जानता है कि रसगुल्ला बंगाल का उत्पाद है जैसे कि ‘छैनापोड़ा’ ओड़ीशा का। क्षेत्र के सभी राज्यों को अपने मूल स्वाद की रक्षा के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए और केक और पेस्ट्री के साथ मुकाबला करना चाहिए।
वहीं ओड़ीशा का दावा है कि रसगुल्ले का आविष्कार 12वीं सदी में जगन्नाथ पुरी में हुआ था। ओड़ीशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान (जीआइ) से जोड़ने में लगा हुआ है। दस्तावेज इकट्ठा किए जा रहे हैं जो साबित करने की कोशिश है कि ‘पहला रसगुल्ला’ भुवनेश्वर और कटक के बीच अस्तित्व में आया था।
पश्चिम बंगाल भौगोलिक उपदर्शन के माध्यम से इस मिठाई पर करेगा दावा
जीआइ के लिए जंग:
भौगोलिक उपदर्शन (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) एक तरह की पहचान प्रणाली है। इसके तहत किसी वस्तु के नाम या निशान को उसके उत्पन्न होने की भौगोलिक स्थिति जैसे कि शहर, क्षेत्र या देश के नाम से पहचानबद्ध किया जाता है। यह उत्पादों के प्रमाणीकरण में भी काम आता है। पश्चिम बंगाल रसगुल्ले पर अपना जीआइ निशान चाहता है।
‘पहला रसगुल्ला’ कहां?
* कोलकाता में केसी दास प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक और नवीन चंद्र दास की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य संजय दास ने कहा कि यह ऐतिहासिक रूप से जाना जाता है कि घरेलू पनीर को चाशनी में डुबोकर रसगुल्ला बनाने में दास परिवार शीर्ष पर है।
* वहीं ओड़ीशा का दावा है कि रसगुल्ले का आविष्कार 12वीं सदी में जगन्नाथ पुरी में हुआ था। ओड़ीशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान (जीआइ) से जोड़ने में लगा हुआ है। दस्तावेज इकट्ठा किए जा रहे हैं जो साबित करें कि ‘पहला रसगुल्ला’ भुवनेश्वर और कटक के बीच अस्तित्व में आया था।