बंगाल में हुगली जिले के सिंगुर में टाटा परियोजना के लिए अधिग्रहीत जमीन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इलाके के किसानों के जीवन से रूठी खुशियां एक बार फिर लौट आई हैं। इस फैसले के बाद इलाके में लगभग आठ साल बाद एक नई सुबह हुई है। फैसले की जानकारी मिलते ही सिंगुर में उत्सव का ऐसा माहौल पैदा हो गया, मानो अबकी यहां दुर्गापूजा और दीवाली के त्योहार समय से पहले एक साथ ही आ गए हों। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे एक ऐतिहासिक फैसला बताते हुए कहा है कि किसानों की जमीन लौटाने के बाद अब वे चैन से मर सकती हैं।
अक्तूबर, 2008 में टाटा समूह के अपनी लखटिकया परियोजना के यहां से समेट कर गुजरात के साणंद ले जाने के बाद बीते लगभग आठ वर्षों में सिंगुर के किसानों के जीवन और आंगन में पहली बार खुशियां पसरी हैं। लंबे अरसे तक उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच जीने के बाद अब तो इन किसानों ने अपनी जमीन वापस पाने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। इस दौरान कई लोग दुनिया से ही चले गए। आज अपनी जमीन वापस मिलने की सूचना पाने के बाद सिंगुर के लोग सड़कों पर निकल कर ममता बनर्जी जिंदाबाद के नारे लगाते हुए शंख बजा कर अपनी खुशियों का इजहार करने लगे। उन्होंने ममता की तस्वीरें भी हाथों में ले रखी थीं। टाटा की परियोजना के लिए जमीन देने वाले देबू पाखिरा कहते हैं कि अबकी हमारे लिए अमावस की रात आठ साल लंबी थी। आज लंबे अरसे बाद सुबह का अहसास हो रहा है।
हुगली जिले का यह अनाम कस्बा कोई दस साल पहले उस समय अचानक सुखिर्यों में आया था जब टाटा समूह ने यहां अपनी नैनो परियोजना लगाने का फैसला किया था। उस परियोजना से जमीन की कीमत आसमान छूने लगी और लोगों के सपनों में कई रंग भरने लगे। लेकिन उसके बाद अनिच्छुक किसानों की जमीन वापस करने की मांग में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के नेतृत्व में चले लंबे आंदोलन ने वर्ष 2008 में टाटा को यह परियोजना समेटने पर मजबूर कर दिया। इसी सिंगुर आंदोलन ने वर्ष 2011 में ममता को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी। ममता ने सत्ता में आते ही किसानों को उनकी जमीन लौटाने का भरोसा दिया था। उन्होंने इसके लिए कानून भी बनाया था। लेकिन यह मामला तब से अदालती पचड़े में फंसा था।
किसानों की जमीन लौटाने के लिए ममता ने सत्ता में आने के बाद जो कानून बनाया था उसे कलकत्ता हाई कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया था। उसके बाद लोगों की बची-खुची उम्मीदें भी खत्म हो गई थीं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उनके जीवन में खुशियां लौटा दी हैं।अदालत के इस फैसले को बंगाल की पूर्व वाममोर्चा सरकार की जमीन अधिग्रहण नीति पर एक तमाचा माना जा रहा है। उसी नीति के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन के जरिए ही ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में जीतकर सत्ता में आई थी। अब अदालती फैसले ने जहां ममता बनर्जी का हौसला बुलंद किया है, वहीं उस जमीन के किसी अन्य परियोजना के लिए इस्तेमाल की टाटा समूह की भावी कोशिशों को भी झटका लगा है।
वैसे, जमीन मिलने के बाद भी फिलहाल यह किसानों के काम लायक नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि दस वर्षों में यह काफी हद तक रेतीली और बंजर हो चुकी है। बावजूद इसके लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है। लीना दास कहती है कि हमें अपने बाप-दादों की जमीन तो वापस मिल जाएगी। हम लोग अपनी मेहनत से एक बार फिर उसमें सोना उगाने लगेंगे।
