82 साल के जमीलुद्दीन को अब तक यह बात समझ में नहीं आ रही है कि आजादी के बाद से ही सांप्रदायिक सद्भाव और आपसी भाईचारे की मिसाल रहे बादुड़िया इलाके में अचानक ऐसा क्या हो गया कि दशकों से एक-दूसरे के सगे रहे दो तबके के लोग अचानक एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। यही सवाल 85 बरस के सुदीप मंडल को भी खाए जा रहा है।बीते सप्ताह एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के मुद्दे पर तीन दिन तक सांप्रदायिक हिंसा की आग में जलने वाले बांग्लादेश की सीमा से लगे इस इलाके के लोग अब एक-दूसरे से यही सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन किसी के पास इसका जवाब नहीं है। जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को भी हिंसा की वजह समझ में नहीं आ रही है। वे इस पर चिंता जताते हुए कहते हैं कि जिस बंगाल में सांप्रदायिक सद्भाव का लंबा इतिहास रहा है वहां ऐसी घटनाएं चिंताजनक हैं। सरकार को इसकी जड़ में जाना होगा।वैसे इस हिंसा के पीछे का सच भी छन कर बाहर आने लगा है। इससे यह भी बात सामने आ रही है कि फेसबुक पोस्ट की आड़ में जिन लोगों ने हिंदुओं के घरों और दुकानों में आग लगाई वे सब बाहरी थे। उसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली फर्जी तस्वीरों ने इस हिंसा की आग में घी डालने का काम किया। और यह कोई संयोग नहीं है कि ऐसी ज्यादातर पोस्ट सोशल मीडिया पर राजनीतिक दल के अकाउंट से ही पोस्ट की गईं। अब धीरे-धीरे खेल साफ होने लगा है। इलाके में हिंसा भड़कने से रोकने के लिए सरकार ने वहां इंटरनेट सेवाएं रोक दी थीं। लेकिन देश के विभिन्न कोनों से इस कथित दंगे और सांप्रदायिक हिंसा की फर्जी तस्वीरें सोशल मीडिया पर परोसी जाती रहीं। पुलिस ने यहां ऐसी एक तस्वीर भेजने के मामले में एक युवक को गिरफ्तार भी किया है।

कोलकाता से सटे उत्तर-24 परगना जिले के लोगों ने कभी सांप्रदायिक हिंसा का नाम नहीं सुना था। बादुड़िया के शाहजहां मंडल बताते हैं कि अचानक मोटरसाइकिल सवारों का एक काफिला इलाके में पहुंचा। उन्होंने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने वाले छात्र सौनिक सरकार के घर जाकर आगजनी शुरू कर दी। उसी गांव की जहांआरा बेगम भी बताती हैं कि बीते रविवार को अचानक दर्जनों लोग मोटरसाइकिलों पर यहां आए। वे सब बाहरी थे। यहां के लोग तो एक-दूसरे को पहचानते हैं, लेकिन वे तमाम चेहरे अपरिचित थे।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी आरोप लगाया है कि इलाके में हिंसा की शुरुआत करने वाली भीड़ सीमा पार से आई थी। उन्होंने इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश तो दे ही दिए हैं, अफवाहें फैलाने में मीडिया की भूमिका की भी जांच कराने की बात कही है। पुलिस ने दो राष्ट्रीय चैनलों के खिलाफ मामला दर्ज कर उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी है। ममता ने इस मामले में सीधे भाजपा को कठघरे में खड़ा किया है।मस्जिद के इमाम मौलाना यासीन साहब कहते हैं कि कुछ बाहरी लोगों ने यहां बरसों से कायम सांप्रदायिक सद्भाव को खत्म कर दिया। वे इसके लिए प्रशासन को भी जिम्मेदार मानते हैं।

उन्होंने कहा कि पुलिस ने बाहरी लोगों की भीड़ को रोकने का कोई प्रयास ही नहीं किया। इसी इलाके के मागुरखाली गांव में मस्जिद के ठीक बगल में ही एक कलाकार विश्वजित दे दुर्गा की प्रतिमाएं बनाने में जुटे हैं। दर्जीपाड़ा की रूकीना बेगम बताती हैं कि पांच जुलाई की शाम को 50 से ज्यादा लोगों की भीड़ ने छड़ों के साथ उनके घर पर धावा बोल दिया और लूटपाट मचाई। उस समय पड़ोसी महेश मंडल और उनकी पत्नी ने ही रूकीना और उनके बच्चे की जान बचाई। यही नहीं उन्होंने रूकीना को फौरी सहायता के तौर पर एक हजार रुपए भी दिए। इलाके में अब कई लोग ऐसे किस्से सुनाते मिलते हैं, लेकिन कोई भी अपनी फोटो नहीं खिंचाना चाहता। सबके मन में एक अनजान-सा डर समाया है। तीन दिन तक हिंसा जारी रहने के बाद दोनों तबके के लोगों ने रात को निगरानी करने के लिए संयुक्त समितियों का गठन किया। इसका मकसद धर्म के नाम पर उकसाने वाले बाहरी लोगों को इलाके में घुसने से रोकना था। इलाके में अचानक भड़की हिंसा की वजह से कई शादियां रुक गई थीं। अब नए सिरे से उनकी तैयारियां चल रही हैं।  बशीरहाट के पार्षद बाबू गाजी बताते हैं कि यहां दोनों तबके के लोग एक-दूसरे के घावों पर मरहम लगाने में जुटे हैं। यहां पहले कभी कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस हिंसा से उनको सबक मिला है। अब आगे से कोई ऐसे मंसूबों में कामयाब नहीं होगा। इलाके में सांप्रदायिक सद्भाव और आपसी भाईचारे के तार धीरे-धीरे मजबूत जरूर हो रहे हैं। लेकिन बादुड़िया, बशीरहाट और स्वरूपनगर इलाकों के लोगों के मन में समाई दहशत को खत्म होने में अभी कुछ वक्त लगेगा।