सुरधनी बर्मन की उम्र 103 साल की है। उन्होंने अपने लंबे जीवन में बहुत कुछ देखा है। लेकिन एक बात का उनको हमेशा मलाल था कि वे कभी किसी मतदान केंद्र के भीतर जाकर अपना वोट नहीं डाल सकी थीं। लेकिन अबकी पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के आखिरी दौर में उनका यह मलाल भी दूर हो जाएगा। बाईस साल के जयनाल आबेदिन की भी खुशी का ठिकाना नहीं है। वह अपने 104 साल के दादा जी असगर अली के साथ पांच मई को पहली बार वोट डालेगा। उसके खानदान की तीन पीढ़ियां उस दिन एक साथ मतदान केंद्र तक जाएगी। उनकी तरह कम से कम दस हजार लोग जीवन में पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।

बीते साल भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते के बाद ये लोग भारतीय नागरिक बने थे। उससे पहले वे भारत से घिरे बांग्लादेशी भूखंडों में रहते थे। कहने को तो वे बांग्लादेशी थे। लेकिन उनके पास कोई लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकार नहीं था। अब भूखंडों के आदान-प्रदान के बाद पिछले साल उन सबको भारतीय नागरिकता मिली है। अभी पिछले महीने ही सबको पहली बार मतदाता पहचान-पत्र मिले हैं। उनको बेसब्री से उस दिन का इंतजार है जब वे पहली बार इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का बटन दबाकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देंगे।

बीते साल ऐतिहासक जमीन सीमा समझौते के तहत इन भूखंडों की अदला-बदली के बाद इनमें रहने वाले 14,864 लोगों को भारतीय नागरिकता मिली थी। इसके अलावा बांग्लादेश स्थित भारतीय भूखंडों में रहने वाले 922 लोगों ने भी सीमा पार कर भारतीय नागरिक बनने का फैसला किया था। इनमें से 18 साल से ऊपर वाले 9,776 लोगों को वोटर कार्ड भी मिल गया है। इन लोगों को चार विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिया गया है। दिनहाटा, मेखलीगंज, शीतलकुची और सिताई विधानसभा क्षेत्रों में इन नए नागरिकों के लिए 41 नए मतदान केंद्र बनाए गए हैं।

इन नए वोटरों में चुनाव को लेकर भारी उत्साह है। मशालडांगा के रोशन सरकार कहते हैं, हमें आजादी के कोई सात दशकों बाद वोट देने का अधिकार मिला है। ऐसे में हमारी खुशी स्वाभाविक है। नए वोटरों में कई काफी उम्रदराज हैं। मिसाल के तौर पर चार लोगों की उम्र सौ साल से ऊपर है। इसके अलावा 90 से 100 साल की उम्र वाले नौ वोटर हैं और 80 से 99 की उम्र वाले चार। हाल में जिला प्रशासन ने इन भूखंडों में शिविर लगाकर नए वोटरों को वोटर कार्ड बांटे थे। कूचबिहार के जिला प्रशासक पी उलंगनाथन बताते हैं, लोगों में भारी उत्साह है। पहली बार मतदान करने के नाम पर सौ साल के बुजुर्ग भी बच्चों की तरह खुश हैं।

सबसे ज्यादा लगभग पांच हजार वोटर दिनहाटा विधानसभा क्षेत्र में मतदान करेंगे और यह लोग किसी भी उम्मीदवार की किस्मत तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इस सीट पर फारवर्ड ब्लाक और तृणमूल कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है। इलाके में बरसों तक दिनहाटा सीट से जीतने वाले फारवर्ड ब्लाक के वरिष्ठ नेता दिवंगत कमल गुहा के पुत्र उदयन गुहा ने पिछली बार यह सीट जीती थी। वह अबकी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।

उदयन कहते हैं, इलाके के नए वोटर मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं। तृणमूल कांग्रेस सरकार इन भूखंडों में रहने वालों के हित में शुरू की गई योजनाएं और तेज करेगी। तमाम राजनीतिक दलों के उम्मीदवार इन भूखंडों के चक्कर काट रहे हैं। एक वोटर मोहम्मद असगर अली कहते हैं, यह हमारे लिए एक नया और अनूठा अनुभव है। सात दशकों तक किसी ने हमारी सुध नहीं ली थी और अब हर राजनीतिक दल हमारा सबसे बड़ा शुभचिंतक होने का दावा कर रहा है। हमारी अहमियत अचानक बढ़ गई है।

वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने कूचबिहार संसदीय क्षेत्र में स्थित सात में से तीन सीटें जीती थीं। बाकी चार पर फारवर्ड ब्लाक का कब्जा रहा था। अबकी तृणमूल कांग्रेस का प्रचार इसी मुद्दे पर केंद्रित रहा है कि इन भूखंडों की अदला-बदली और इनमें रहने वाले बेघर लोगों को एक नई पहचान और नागरिकता दिलाने में उसकी सरकार की अहम भूमिका रही है। इलाके में जहां-तहां लगे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पोस्टरों में इस बात का प्रमुखता से जिक्र किया गया है।