जल योद्धा उमा शंकर पांडेय
जल जीवन का आधार है। जल ही जीवन है, जल अनमोल है, जल विलक्षण है। जल सर्वव्यापी है, जल असाधारण है, जल राष्ट्रीय संपदा है, जल परमेश्वर है, जल शिव है, जल शंकर है, जल अमृत है, जल शक्ति है, ऊर्जा है। धर्म के आधार पर केवल पानी ही पवित्र करता है। भारतीय संस्कृति पूजा प्रधान है। पूजा पवित्रता के लिए जल आवश्यक है। जल में आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं। दुनिया की सभी पुरानी सभ्यताओं का जन्म जल के समीप अर्थात नदियों के किनारे हुआ है। दुनिया के जितने पुराने नगर हैं, वे सब नदियों किनारे बसे हैं। जल है तो कल है, बूंद-बूंद बचाएं।
भारत में 10360 नदियां हैं, एक अनुमान के मुताबिक जिनमें 30 वर्ष पहले लगभग एक करोड़ 1 किलोमीटर जल भंडारण क्षमता रहती थी। जल पाने के मुख्य चार स्रोत हैं- नदियां, झीलें, तालाब, कुआं। हर मर्ज की दवा पानी है। दुनिया के सामने जल संकट है। इस समस्या से कैसे निपटा जाए, क्या रणनीति बनें, यह सबको सोचना होगा। दुनिया में 200 करोड़ लोगों के सामने पेयजल संकट है, मनुष्य को प्रतिदिन 3 लीटर से अधिक पानी पीने के लिए चाहिए। शुद्ध पानी ना मिलने के कारण दुनिया में हजारों बच्चे प्रतिदिन मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। जल की कमी के कारण मनुष्य घातक, खतरनाक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।
जीव जीवन और जल तीनों का आपस में अंतरंग गहरा संबंध है। जल चक्र को बनाए रखने के लिए कोहरा ओले बर्फ और पाले की भूमिका महत्वपूर्ण है। पानी में यदि भाप बनने का गुण ना होता तो दुनिया को पानी ही ना मिलता। पानी को छोड़कर दुनिया की सभी चीजें सर्दी में सिकुड़ती है। लेकिन सर्दी में पानी फैलता है, जमने पर 10% अधिक हो जाता है। दुनिया के हर चीज का तापमान पानी के तापमान के मानक से नापा जाता है। समुद्र मंथन से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि जल के भीतर अमृत और विष दोनों हैं। दुनिया की अर्थव्यवस्था में जल का बहुत बड़ा योगदान है। पानी सदैव नीचे की ओर बहता है और अपना रास्ता बना स्वयं बना लेता है। मानव शरीर में 70% पानी होता है, दूध में 88 प्रतिशत पानी होता है, आलू में 80 प्रतिशत पानी होता है, हरी सब्जी पत्तेदार सब्जियों में 96% पानी होता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार जितने लोगों के पास मोबाइल है, उतने लीटर पीने के लिए शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। वेदों में, धर्म शास्त्रों में जल संरक्षण के बारे में पूर्व में सचेत किया गया है। पहली बार भारत में 1959 में अमेरिकी सरकार की मदद से भूजल की खोज शुरू की गई। पहली राष्ट्रीय जल नीति 1987 में, दूसरी जल नीति 2002 में, तीसरी जल नीति 2012 में, चौथी जलनीति 2019 में बनी। आज के युग का सर्वाधिक चर्चित शब्द जल है। जल राष्ट्रीय संपदा है, पानी हमें प्रकृति द्वारा अनमोल निशुल्क उपहार के रूप में मिला है। प्राणी और प्रकृति की कल्पना जल के बिना संभव नहीं है। पृथ्वी में जितने भी जीव हैं उनका जीवन जल पर निर्भर है पेड़ में, फलों में, अनाजों में, पत्तों में, जड़ों में, जो स्वाद है रस है, वह सब जल के कारण है।
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरितमानस में कहा है कि
‘क्षिति, जल पावक गगन समीरा।
पंच तत्व से बना शरीरा’।।
कबीर दास जी कहते हैं
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छिप जायेगा, ज्यों सारा परभात।।
रहीम दास जी कहते हैं
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
तो संसार में पानी अद्भुत पदार्थ है। वेदों में कहा गया है संसार में जल ही जीवन है, जल देवता है, जिनकी भक्ति सेवा से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं प्राचीन काल से हम स्तुति प्रार्थना करते चले आ रहे हैं-
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति!
नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
जल को स्वच्छ बनाए रखना जल देवता की पूजा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक पानी का हमारे जीवन में सबसे बड़ा स्थान है। पानी में ही सारे देवता रहते हैं, इसलिए जब कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है, तब उसमें सबसे पहले कलश की पूजा होती है या कलश यात्रा निकलती है। हमारे पूर्वज माता पिता जब चारों धाम की यात्रा अथवा गंगा जमुना दर्शन हेतु गए हैं, कुछ लाए हों या ना लाए हों, लेकिन तीर्थ से जल जरूर लाते हैं अर्थात जल सबसे पवित्र है। दुनिया भर में लगभग 2500000 लोग प्रतिवर्ष अशुद्ध जल पीने के कारण मरते हैं। इस पृथ्वी पर 71% पानी होने के बावजूद भी सिर्फ पीने लायक 2.5% पानी है। यदि जल संकट से निपटना है तो पानी को आदर देना होगा, सरकार की बजाए हर व्यक्ति को अपने स्तर से पानी बचाने की कोशिश करनी होगी।
जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है, पानी की मांग बढ़ रही है उस गति से जल स्रोत बढ़ने की वजह कम हो रहे हैं। पानी को जल माने हिमालय माने, समुद्र माने, बर्फ माने, नदी माने, लेकिन वह पानी है, पानी की पतली सी लकीर एक नई आशा की किरण देती है। पानी का महत्व सिर्फ हमारे जीवन में ही नहीं बल्कि संगीत में भी बहुत बड़ा महत्व है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत, तानसेन जी ने मेघ मल्हार जैसे रागों को चुनने में जल का सहारा लिया।
पृथ्वी पर लगभग जल की कृपा से 8000000 प्रजातियां जीवित हैं, समुद्र में खारे पानी में लगभग 2200000 प्रजातियां जीवित हैं। हिमालय हमारे देश के संपूर्ण जल का 63.1% जल देता है। प्रकृति ने जो पानी हमें मुफ्त में दिया है, हमने उसे बाजार में बिक्री की चीज बना दिया। बोतल बंद पानी आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। बोतल बंद पानी की शुरुआत व्यवसाय कर के रूप में 1767 में अमेरिका के बोस्टन शहर से शुरू हुई थी।
मिनरल वाटर तरीके का सबसे पहला पेटेंट 1809 में अमेरिका के जोसेफ हॉकिंस को हासिल हुआ था। बोतलबंद पेय का कारोबार भारत में 1949 में शुरू हुआ। 1965 में विश्व हरि ब्रांड भारत में बनने लगा। 1990 के दशक तक बोतलबंद पानी सरकारी मंचों और बैठकों में दिखाई देता था। बोतल बंद पानी की बिक्री 2002 में भारतीय रेल ने शुरू की। तब 1 लीटर बोतल पानी जो बाजार में 20 रुपये में मिलता है, उसकी कुल लागत सभी खर्च जोड़ने के बाद 3 रुपये से कम होती है। जाहिर तौर पर इतना मुनाफा अन्य किसी धंधे में नहीं है।
महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस बोतलबंद पानी की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। पहले स्टेशनों पर पानी पिलाने के लिए पानी पंडे की नियुक्ति होती थी, आजकल पानी बेचने के लिए स्टेशन पर वाटर पॉइंट खोले गए हैं। 1 लीटर 15 रुपये से लेकर 150 रुपये प्रति लीटर है। क्रिकेट के हमारे बड़े खिलाड़ी इवियन नामक जिस फ्रांसीसी ब्रांड का पानी पीते हैं, उसकी बाजार में कीमत 600 रुपये प्रति बोतल पड़ती है। जापान की एक कंपनी के एक बोतल पानी कीमत 2600 रुपये प्रति लीटर बड़े लोग पीते हैं।
भारत में पानी सभ्यता थी, संस्कृति थी, पानी आश्रय देता, तबाही भी करता है। पानी समाज को जोड़ता है, तोड़ता भी है, पानी की कमी के कारण भारत के गांव से 10 लाख लोग प्रतिमाह शहर की ओर पलायन करते हैं, आज मध्य एशिया और दक्षिण अफ्रीका के 40 देशों में कई करोड़ लोग पानी की कमी के कारण अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में चले गए हैं।
भारत की बात करें, तो जल समस्या का समाधान ना होते देख सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने की योजना बनाकर काम शुरू कर दिया है। जन समस्या के समाधान के लिए सरकार ने बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई, लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाएं कब दिखाई देंगे देखना होगा। पानी को लेकर भारत के राज्यों में आपसी झगड़े होते रहते हैं।
कावेरी, जमुना, सतलज, व्यास, कृष्णा नदी के बंटवारे का निपटारा भारत की न्याय व्यवस्था की आधी है। पानी को लेकर भविष्य में हम नहीं चेते तो विश्व युद्ध निश्चित है। हमने जल की नदियों को बांधों में बांधा है। अगर बांधों में जाए तो गंगा में 56 बड़े बांध, यमुना में 26 बड़े बांध, नर्मदा में 5 बड़े बांध, मझोले 30 बांध, 130 छोटे बांध बने देश की छोटी-बड़ी नदियों में 5592 लगभग बन चुके हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मार्च 2017 में गंगा यमुना को मानव का दर्जा प्रदान किया है। पानी की समस्या ग्रामीण क्षेत्र में 1960 के बाद आई, जब हमने कुएं से पानी पीना छोड़ दिया, नल के पानी का उपयोग हम करने लगे भूजल का अत्यधिक दोहन होने के कारण गुणवत्ता में कमी आई भू जल संकट बढ़ा नदी घाटी जल परियोजना के अंतर्गत देश में विभिन्न राज्यों में नदियों को बांधकर 24 बड़ी परियोजना चल रही है। सूखा और बाढ़ से देश को बचाने के लिए नदियों को जोड़ने का विचार 1972 में इंजीनियर के एल राव ने दिया था। सन 1982 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी गठित हुई। भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण जलस्तर दिन दिन नीचे चला जा रहा है।
मध्यप्रदेश के इंदौर में 430 फीट, उज्जैन में 550 फीट पर भी पानी नहीं मिल रहा है। पांच नदियों के पंजाब में लोग बोतल बंद पानी पीने के लिए विवश हैं। उत्तर प्रदेश के 97134 गांव में से 6,000 से अधिक गांव में पीने का पानी नहीं है। यह गंगा यमुना का प्रदेश है। सौराष्ट्र के कच्छ क्षेत्र में खोदे गए 10 नलकूपों में से 6 नलकूपों को 1260 फिट गहराई पर पानी नहीं मिला। राजस्थान के पाली इलाके में रेलगाड़ी द्वारा जोधपुर से रेगिस्तानी क्षेत्रों में 12 शहरों और 128 गांव में पानी भेजने की बात सामने आई है। भारत के चार महानगरों में रोजाना 90 करोड़ लीटर गंदा पानी निकलता है।
हमारे देश में आजादी के पहले कई लाख तालाब कुंएं जिंदा थे। तालाबों कुंओं को कोई अनुदान सरकार से नहीं मिलता था। समाज साफ सफाई रखवाली समुदाय के आधार पर करता था। आजादी के बाद परंपरागत जल स्रोत खत्म हुए। 60% तालाब केवल कागज में, 90% कुंओं में पानी नहीं है। मृत स्थिति में है। इसका जिम्मेदार कौन है। देश में पानी के लिए नदियां जुड़नी चाहिए। बांध बनने चाहिए, लेकिन गांव के कुआं तालाब फिर कैसे जिंदा हों, यह एक योजना नहीं, आवश्यकता है। राज्य, समाज, सरकार के जिम्मेदार जनों को जमीन पर योजनाओं को उतारने के लिए सोचना पड़ेगा। भारत में सामुदायिक स्तर पर जल संरक्षण की एक प्राचीन परंपरा रही है, जिसके अंतर्गत छोटे-बड़े तालाब जलाशय बीहड़, झील कुएं बनाए जाते थे समुदाय द्वारा इसकी देखरेख होती थी।
खेत का पानी खेत में रहे, इसके लिए मेड़ बनाई जाती थी, मेड़ के ऊपर पेड़ लगाए जाते थे, जखनी जल ग्राम के किसानों ने बगैर सरकार की सहायता के समुदाय के साथ एक पहल की। पहल छोटी ही सही, नारा दिया भू जल संरक्षण के लिए ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ ऐसे कई उदाहरण है।
