आदिकाल से ही परंपरागत सावा, कोदो, कुटकी आदि खाद्यान्न पानी में ही पैदा होते आ रहे हैं। पानी पर हमेशा से व्यापार होता आ रहा है, व्यापार करने के लिए दुनिया भर के व्यापारी पानी के रास्ते ही आए-गए, लेकिन अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए पानी का ही व्यापार शुरू कर दिया। नदियों से नहर काटकर पानी बेचने लगे। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ था। राजाओं-महाराजाओं के समय पानी बेचा नहीं गया। हमारे यहां किसान हमेशा से पानी की खेती करते आ रहे हैं। यह सुनकर अचरज लग सकता है, लेकिन यह सच है। पानी में ही सिंघाड़ा उत्पादन होता है, मोती उत्पादन होता है, मछली की खेती होती है, मखाना पैदा किया जाता है। यह कोई नई बात नहीं है, आदिकाल से यह होता आ रहा है, लेकिन जब पानी ही नहीं रहेगा तो पानी पर खेती कैसे होगी?
अंग्रेजों ने पानी का दोहन किया। शहरीकरण से पर्यावरण प्रभावित हुआ। वन खत्म होने लगे तो बारिश कम होने लगी। पहले 4 माह बारिश होती थी, लेकिन आजकल वर्षा का औसत 35 दिन तो कहीं 15 दिन ही हो रही है। इससे नदियां सूखने लगीं, तालाब खत्म हो गए। कुंए का जलस्तर नीचे चला गया। जमीन के नीचे का पानी बोरिंग के माध्यम से शहरी गटक गए। पाताल में पानी ही नहीं रह गया। नतीजा खेती घट गई।
बुंदेलखंड के जल योद्धाओं ने इसको समझा और दो दशक पहले इस ओर काम करना शुरू किया तो परिणाम चकित कर देने वाला रहा। जिस बुंदेलखंड में जमीन पत्थर की तरह जल रहे थे, वहां खेत पानी से लबालब हैं। यह जादू ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ की परंपरागत पुरखों वाली विधि के कारण साकार हुआ। नीति आयोग के सलाहकार अविनाश मिश्र के मार्गदर्शन में बुंदेलखंड के जखनी गांव के जल योद्धाओं ने उमा शंकर पांडे के नेतृत्व में बुंदेलखंड के हर गांव में पानी पैदा कर दिया। मेड़बंदी से खेतों में पानी भर गया, कुंओं का जलस्तर ऊपर आ गया। तालाबों में नदी जैसा दृश्य दिख रहा है तो खेतों में बासमती धान की फसल से हरियाली छाई हुई है।

जखनी के जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय के संकल्प का असर यह हुआ कि नीति आयोग ने इस आंदोलन को देश के हर गांव के लिए उपयुक्त माना और लागू करने जा रहा है। कई गांवों में इसकी शुरुआत हो चुकी है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जलशक्ति योजना कारगर साबित हो रही है। पहले की सरकारों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इससे देश में पानी का संकट गहरा गया था। लेकिन अब हालात में बदलाव दिख रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परंपरागत तरीके से वर्षा जल को रोकने के लिए देशभर के प्रधानों को पत्र लिखा था। जखनी की भू जल संरक्षण विधि को प्रधानमंत्री के पत्र ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। बगैर सरकार की सहायता के समुदाय के आधार पर जल संरक्षण की हमारी प्राचीन परंपरा रही है। कुंआ तालाब जलाशय के निर्माण के लिए सरकार से पहले कभी कोई अनुदान नहीं मिलता था। पुरानी सरकारों ने अनुदान देकर इन सर्वजनिक कुंआ तालाब जल स्रोतों से समाज को दूर कर दिया। अब यह केवल ग्राम पंचायत की संपत्ति बन कर रह गए हैं। सर्वजनिक तालाबों के पेड़ तो गायब हैं। मोदी मंत्र से कुंए और जलाशय बचे रहेंगे, ऐसी उम्मीद है। मेड़बंदी यज्ञ से किसान के खेत पानीदार हो रहे हैं। पुरखों की यह विधि आज भी कारगर है।
क्या है मेड़बंदी…
पीएम मोदी ने देश भर के दो लाख ग्राम प्रधानों को पत्र लिखा था। पत्र में सबसे पहले पुरखों की बताई जल संरक्षण विधि को अपनाने की सलाह दी थी। यह विधि परंपरागत है, सामुदायिक है, प्रमाणित है। यह कार्य किसी प्रशिक्षण और मशीन के बिना किया जाती है। इस विधि का नाम मेड़बंदी है। इसमें खेत पर मेड़ बनाकर मेड़ों पर पेड़ रोपे जाते हैं। इस तरह मेड़ को बांधा जाता है। यह जल संरक्षण की सबसे कारगर विधि है।
खेत को पानीदार बनाने के लिए खेत में नमी लाने के लिए अधिक उपज के लिए जलस्तर उपर लाने के लिए स्वयं अपने श्रम से किसान इस काम को करता है। पुरखों ने जब कभी भी खाने के लिए अन्न पैदा करने का आविष्कार किया होगा, तब से यह विधि अपनाई जा रही है। पीएम की अपील पर डेढ़ लाख किसानों ने इसको अपनाया। बांदा जनपद के जखनी गांव के किसानों, नौजवानों, मजदूरों ने जल योद्धा उमाशंकर पांडेय के नेतृत्व में मेड़बदी यज्ञ शुरू किया। जो धीरे-धीरे पूरे बुंदेलखंड में फैल गया।