कानपुर के बिकरू गांव में हुए एनकाउंटर में पुलिस के 8 जवानों को शहीद करने वाले विकास दुबे का आज यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर कर दिया। बिकरू कांड के बाद पुलिस ने विकास दुबे समेत उसके गैंग के 6 आदमियों को ढेर कर दिया है। हालांकि अब इन एनकाउंटर्स पर सवाल उठ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पुलिस एनकाउंटर्स की संख्या में भी तेजी आयी है। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने एक बयान में कहा है कि पुलिस ने हाल के सालों में करीब 3000 एनकाउंटर किए हैं, जिनमें 60 हिस्ट्रीशीटर की मौत हुई है।

गौरतलब है कि पुलिस कस्टडी में एनकाउंटर कई सालों से विवाद का विषय रहे हैं। जिसके चलते साल 2010 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस एनकाउंटर्स को लेकर एक गाइडलाइंस जारी की थी। इन गाइडलाइंस को साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट से भी मंजूरी मिल गई थी। इन गाइडलाइंस के तहत पुलिस दो मामलों में किसी अपराधी का एनकाउंटर कर सकती है।

पहली स्थिति ये होगी, जब कोई संदिग्ध अपराधी किसी पुलिसकर्मी पर हमला करेगा तो उस स्थिति में एनकाउंटर किया जा सकता है। वहीं दूसरी स्थिति ये होगी कि किसी दुर्दांत अपराधी को पकड़ने में फोर्स के इस्तेमाल के दौरान अपराधी की मौत हो जाती है तो वह एनकाउंटर माना जाता है। इन दोनों मामलों को ही न्यायिक प्रक्रिया से छूट मिली हुई है, इनके अलावा यदि पुलिसकर्मी एनकाउंटर के दोषी पाए जाते हैं तो उसके खिलाफ हत्या के मामले में कार्रवाई की जा सकती है।

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि एनकाउंटर में शामिल रहने वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और घटना की जांच किसी बाहरी जांच एजेंसी से करायी जानी चाहिए। इसके साथ ही मजिस्ट्रेट इंक्वायरी भी करायी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी दिए थे कि एनकाउंटर में शामिल रहे पुलिसकर्मियों को एनकाउंटर के तुरंत बाद वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता और ना ही उन्हें कोई पदोन्नति दी जा सकती है। यदि एनकाउंटर को लेकर कोई संदेह नहीं है तभी पुलिसकर्मियों को वीरता पुरस्कार दिया जा सकता है। नियमों के अनुसार, फर्जी एनकाउंटर में दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों को 10 साल की सजा से लेकर उम्र कैद तक की सजा सुनायी जा सकती है।