Varanasi Blast: धमाके के 16 साल बाद वाराणसी सीरियल ब्लास्ट मामले में गाजियाबाद जिला एवं सत्र न्यायालय का फैसला आया है। अदालत ने मुफ़्ती वजीउल्लाह को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है। फैसला आने के साथ ही जमीअत उलमा-ए-हिन्द इसको चुनौती देने की तैयारी में जुट गया है। जमीअत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने ऐलान किया है कि वो वजीउल्लाह की फांसी को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।
मौलाना मदनी की दलील- इस मामले में जमीअत उलमा-ए-हिन्द पिछले 10 सालों से वजीउल्लाह को कानूनी सहायता दे रहा था। मदनी का कहना है कि, कई उदाहरण हैं जब ऐसे मामलों में निचली अदालतों ने सजा सुनाई लेकिन हाईकोर्ट जाने पर पूरा न्याय मिला। अक्षरधाम मंदिर हमले का हवाला देते हुए मदनी ने याद दिलाया कि उस मामले में भी निचली अदालत ने मुफ़्ती अब्दुल कय्यूम समेत तीन लोगों को फांसी और चार लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। गुजरात हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। लेकिन देश के सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए न सिर्फ सभी को सम्मानपूर्वक बरी किया था। बल्कि गुजरात पुलिस को फटकार भी लगाई थी। मदनी को उम्मीद है कि वाराणसी ब्लास्ट मामले में आए फैसले को भी हाईकोर्ट पलट देगा।
धमाके का दिन- 7 मार्च, 2006 को वाराणसी के संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर सीरियल ब्लास्ट हुआ था। इस धमाके में 20 लोगों की जान गयी थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इसी शाम दशाश्वमेध घाट पर कुकर बम भी मिला था। इस मामले में वाराणसी पुलिस ने 5 अप्रैल 2006 को वलीउल्लाह को लखनऊ के गोसाईंगंज इलाके से गिरफ्तार किया था। वलीउल्लाह मूलरूप से इलाहाबाद के फूलपुर का रहने वाला है।
अदालती कार्यवाही- पुलिस की पकड़ में आने के बाद भी कोर्ट की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ पा रही थी। दरअसल वाराणसी के वकीलों ने वलीउल्लाह का केस लड़ने से इनकार कर दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट को यह केस गाजियाबाद जिला जज की अदालत में ट्रांसफर करना पड़ा। लम्बी चली कार्यवाही और सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद गाजियाबाद की विशेष सेशन कोर्ट के जज जितिंद्र कुमार सिन्हा ने वजीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाई। हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में खुद ही कहा है कि जब तक इस मामले में उच्च न्यायालय से कोई आदेश प्राप्त नहीं हो जाता तब तक वलीउल्लाह को फांसी न दी जाए।