गुजरात के वडोदरा में महिसागर नदी पर बने गंभीरा पुल हादसे में 22 लोगों की मौत हुई थी। ये हादसा बीते महीने 9 जुलाई को हुआ था। इस हादसे में 21 मृतकों के शव तो बरामद कर लिए गए लेकिन एक व्यक्ति का शव अभी तक बरामद नहीं किया जा सका है। हालांकि प्रशासन ने पीड़ित परिवार के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र और मुआवजा भी जारी कर दिया है। इस हादसे में वडोदरा के पादरा तालुका के नरसिंहपुर गांव के निवासी विक्रमसिंह पधियार और राजेश चावड़ा की भी मौत हुई थी। राजेश चावड़ा का तो शव मिल गया लेकिन विक्रम का शव अभी तक नहीं मिल पाया है।

भूपेंद्रसिंह पधियार और विक्रमसिंह पधियार दो भाई थे और 9 जुलाई की सुबह लूना-रानू रोड पर स्थित एक मैग्नेटिक कंपोनेंट निर्माण कंपनी में काम पर जाने वाले थे। उनकी टिन की झोपड़ी थी, जो उनके एक बीघा खेत में दूर स्थित थी। खेतों से होकर उनके घर तक जाने वाला 500 मीटर लंबा घुमावदार रास्ता लगातार बारिश के कारण फिसलन भरा और गीला था। रास्ता पार करने का एकमात्र रास्ता उनका दोपहिया वाहन था, जिसे चलाने में भूपेंद्रसिंह और विक्रमसिंह दोनों ही माहिर थे। उस सुबह परिवार में एक मेहमान भी आया था जिसका नाम राजेश चावड़ा था और वो विक्रमसिंह का ममेरा भाई।

भाई के कपड़े लाने जा रहा था विक्रमसिंह

दोनों पधियार भाई (भूपेंद्रसिंह और विक्रमसिंह) और राजेश चावड़ा एक ही कंपनी में काम करते थे। विक्रमसिंह ने आणंद जिले में महिसागर नदी के उस पार देवपुरा में अपने चचेरे भाई के घर जल्दी से जाने का फैसला किया, ताकि राजेश चावड़ा काम पर पहनने के लिए एक जोड़ी नए कपड़े ले सकें। देवपुरा पहुंचने के लिए विक्रमसिंह ने मुजपुर-गंभीरा पुल वाला सामान्य रास्ता अपनाया। हालांकि रास्ते में ही हादसा हो गया और विक्रमसिंह और राजेश चावड़ा की इस त्रासदी में मौत हो गई। विक्रमसिंह एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका शव अभी तक नहीं मिला है।

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लगभग एक महीने बाद 6 अगस्त को विक्रमसिंह के पिता रमेश पधियार अपनी झोपड़ी के बाहर एक घिसी-पिटी चारपाई पर बैठे अपने अस्सी वर्षीय चाचा (जो उसी घर में रहते हैं) के साथ बीड़ी बना रहे थे और इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार उनसे बात करने के लिए पहुंचे। परिवार का माहौल अभी भी गमगीन है क्योंकि वे इस बात को स्वीकार करने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे उनकी ज़िंदगी एक पल में बदल गई। 9 जुलाई की त्रासदी से ठीक तीन हफ़्ते पहले विक्रमसिंह और पूरे परिवार ने पहली संतान निराली का पहला जन्मदिन मनाया था।

‘हमने कुछ ही मिनटों में सब कुछ खो दिया’

48 वर्षीय रमेश कहते हैं, “हमने कुछ ही मिनटों में सब कुछ खो दिया। विक्रम को राजेश को देवपुरा ले जाने के लिए निकले हुए सिर्फ़ 15 मिनट ही हुए थे ताकि वह कपड़े बदल सके और वे वापस आकर काम पर जा सकें। वरना उन्हें काम पर जाने के लिए पुल पार करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। मुझे नहीं पता कि इसे किस्मत कहें या बदकिस्मती। काम पर आने-जाने के लिए उन्हें कभी मुजपुर-गंभीरा पुल पार करने की जरूरत नहीं पड़ी।”

विक्रम के बड़े भाई 25 वर्षीय भूपेंद्र उस पल को याद करते हैं जब उनके भाइयों ने देवपुरा जाने का फैसला किया था। वे कहते हैं, “हम पुल पर सिर्फ़ तभी सफर करते थे जब हमें अपनी मौसी के परिवार से मिलने जाना होता था। विक्रम ने राजेश चावड़ा को देवपुरा ले जाने का फैसला सिर्फ़ इसलिए किया ताकि उसे नए कपड़े दिला सकें क्योंकि रात में वहां रुकने की योजना पहले से नहीं बनी थी। काश हमारे पास उसके साथ शेयर करने के लिए एक और जोड़ी कपड़े होते। विक्रम और राजेश को उस वक़्त उस पुल पर होने की ज़रूरत ही न पड़ती।”

हालांकि राजेश चावड़ा का शव बचाव अभियान के पहले 72 घंटों के दौरान मिल गया था, लेकिन परिवार ने विक्रम का भी अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला किया। ऐसा इसलिए अधिकारी पांचवे दिन भी शव नहीं निकाल पाए थे, जबकि बाकी सभी शव मिल चुके थे। रमेश इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताते हैं, “मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि प्रशासन ने शव ढूंढने की पूरी कोशिश की। उन्होंने विशेषज्ञों को बुलाया, पानी के अंदर काम करने वाले उपकरण मंगवाए और मोबाइल फ़ोन पर तस्वीरें मेरे साथ शेयर कीं ताकि पता चल सके कि नदी में फसे स्लैब के नीचे कोई शव नहीं था। हमें यह स्वीकार करना पड़ा कि नदी की देवी महिसागर माता ने हमारे बेटे को छीन लिया। यह उनकी इच्छा थी। हमने उसकी आत्मा की शांति और अपनी आत्मिक शांति के लिए नदी तट पर अंतिम संस्कार करने का फैसला किया।”

मायके चली गई बहु

विक्रम की पत्नी हीना निराली के साथ अपने मायके लौट आई हैं। रमेश कहते हैं, “मेरी बहू ने हमें बताया कि वह यहां नहीं रह पाएगी क्योंकि यह जगह उसे लगातार उसके दर्द की याद दिलाती रहेगी। हम उसकी बात समझ गए, इसलिए वह अपने माता-पिता के घर लौट आई है। लेकिन अगर वह हमसे कहती है कि वह वापस आना चाहती है, तो हम उसे अपनी बेटी की तरह रखेंगे क्योंकि विक्रम का परिवार ही हमारे लिए सब कुछ है।”

प्रशासन ने दिया मुआवजा और मृत्यु प्रमाणपत्र

इस मामले को एक अपवाद मानते हुए राज्य सरकार ने परिवार को मुआवजा और मृत्यु प्रमाण पत्र भी दे दिया है। हालांकि विक्रम का शव अभी तक नहीं मिला है। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वडोदरा के ज़िला कलेक्टर अनिल धमेलिया ने कहा कि उनकी अध्यक्षता में ज़िला-स्तरीय समिति (जिसमें जिला विकास अधिकारी (DDO), जिला पुलिस अधीक्षक और रेजिडेंट एडिशनल कलेक्टर शामिल थे) ने पधियार परिवार के मामले को गुमशुदा व्यक्तियों के नियम के अपवाद के रूप में मानने का फैसला किया था। बचाव दलों ने एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, अग्निशमन दलों की मदद से व्यापक खोज की और मुंबई, आणंद और कच्छ से सोनार नेविगेशन (जो पानी में साउंड वेव्स से खोज करने की अनुमति देता है) भी लाए, लेकिन उन्हें शव नहीं मिला। हमने परिवार के लिए दो फैसले लिए। हमने विक्रमसिंह पढियार को मृतकों में शामिल करने का फ़ैसला किया और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया। परिवार को सरकारी मुआवजा भी दिया गया।”

अनिल धमेलिया ने आगे कहा, “आपदा के मामले में जब कुछ घटित हुआ हो और हमें यकीन हो जाए कि लापता व्यक्ति आपदा का शिकार है, तो हम इस मामले को अन्य पीड़ितों के मामले की तरह मान सकते हैं और परिजनों को मुआवज़ा दे सकते हैं। सक्षम प्राधिकारी मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी कर सकता है।”