मार्च 2017 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में भाजपा की 57 सीटें आई थीं। पहली बार किसी दल को इतनी अधिक सीटें मिली थीं। आलाकमान की पसंद बने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया परंतु एकाएक भाजपा आलाकमान ने चार साल पूरे होने से छह दिन पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर 10 मार्च को तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया।
भाजपा में यह राय बनी थी कि त्रिवेंद्र भाजपा को जिता नहीं पाएंगे, इसलिए उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को लाया गया। लेकिन उनके विवादित बयानों से अब यह धारणा बन रही है कि भाजपा आलाकमान से बड़ी चूक हुई है और तीरथ गले की हड्डी साबित हो रहे हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि भाजपा को हुए इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को फरवरी-मार्च 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव कि संचालन समिति का प्रमुख बनाकर भेजा जा सकता है ताकि नाराजे ब्राह्मण मतदाता को मनाया जा सके। फिलहाल पौड़ी से लोकसभा सांसद तीरथ सिंह को सितंबर तक विधानसभा का चुनाव लड़ना है। अभी तक यह तय नहीं है कि वे किस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। उनके लिए सुरक्षित सीट तलाशी जा रही है। इस तरह भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पहले विधानसभा और पौड़ी लोकसभा उपचुनाव का सामना करना पड़ेगा।
मैदानी क्षेत्र के मदन कौशिक को मंत्रिमंडल से हटा कर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है जिसका संदेश उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में गलत गया है कि यदि 2022 में भाजपा सत्ता में आती है तो मैदानी नेता मदन कौशिक राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। कोविड-19 लहर में राज्य सरकार लोगों को स्वास्थ सुविधा देने में नाकाम रही और राज्य में पहली बार मई के महीने में इस बीमार के कारण हजारों लोगों की मौत हो गई। लोगों को अस्पतालों में जगह नहीं मिली उससे जनता में गहरा असंतोष है।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए छप्पर फाड़ बहुमत आज पार्टी के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है क्योंकि वह भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, भुवन चंद खंडूरी, तीरथ सिंह रावत, अजय भट्ट, त्रिवेंद्र सिंह रावत,मदन कौशिक, विजय बहुगुणा, यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज के विभिन्न खेमों में बंटी हुई है। भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया हो परंतु उन्हें अब तक भाजपा के संघ पृष्ठभूमि के कार्यकर्ता और नेता नहीं पचा पा रहे हैं और ना ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नेता अपने को भाजपाई संस्कृति में खपा पा रहे हैं। भाजपा सरकार के 12 मंत्रियों में से 4 मंत्री कांग्रेस पृष्ठभूमि वाले हैं जिन्हें भाजपा का खांटी कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहा है इसलिए भाजपा कि संघ पृष्ठभूमि वाले और कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले मंत्रियों विधायकों और कार्यकतार्ओं में टकराव बना रहता है।