उत्तराखंड कांग्रेस में पार्टी आलाकमान ने राज्य नेतृत्व में जो ताबड़तोड़ बदलाव किया है, उससे पार्टी की फूट खुलकर सामने आ गई है। पार्टी आलाकमान ने एक ही झटके में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रीतम सिंह को किनारे लगा दिया है। जहां हरीश रावत ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है, वहीं प्रीतम सिंह पहली बार पार्टी आलाकमान के दो नेताओं को लेकर जबरदस्त तरीके से मुखर हुए हैं और उन्होंने विधायकी छोड़ने तक की धमकी दे डाली है। इससे पार्टी में हंगामा मचा हुआ है।

उत्तराखंड कांग्रेस में प्रीतम सिंह सबसे मिलनसार साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं। उत्तराखंड राज्य की पहली निर्वाचित विधानसभा 2002 से वे अब तक लगातार चकराता विधानसभा सीट से विधायक बनते चले आ रहे हैं। मोदी लहर भी उन्हें चुनाव नहीं हरा पाई। 2022 के विधानसभा चुनाव में वे मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार थे। वे उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष रहे। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी बखूबी संभाली। वे एक जमाने में हरीश रावत के विश्वासपात्र थे, परंतु 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद से हरीश रावत और उनकी राहें अलग-अलग हैं।

प्रीतम सिंह हमेशा कांग्रेस पार्टी के वफादार सिपाही रहे हैं परंतु पार्टी आलाकमान ने उनके साथ इस बार जो बर्ताव किया और उनकी वफादारी का उन्हें कोई तोहफा नहीं दिया, उससे पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में जबरदस्त आक्रोश है। पार्टी आलाकमान ने 2016 में कांग्रेस पार्टी को तोड़ने वाले यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बना दिया जबकि प्रीतम सिंह इस पद के प्रबल दावेदार थे। यशपाल आर्य इस बार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में लौटे थे।

पार्टी आलाकमान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खटीमा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हराने वाले युवा नेता और ब्राह्मण समुदाय से जुड़े भुवन चंद्र कापड़ी को उपनेता बनाया है और उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस पार्टी की कमान रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारे राजपूत समुदाय के करण माहरा को सौंपी है। करण माहरा पिछली विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष रहे हैं। दरअसल कांग्रेस आलाकमान ने इस बार बदलाव में क्षेत्रीय संतुलन पर ध्यान नहीं दिया है। उससे राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं में घोर निराशा है। पार्टी आलाकमान राज्य में पदाधिकारी बनाते समय क्षेत्रीय और जातीय संतुलन को कायम रखता है। जातीय समीकरण तो पार्टी ने बनाए रखा परंतु क्षेत्रीय संतुलन को दरकिनार कर दिया।

कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष व उपनेता के तीनों पद कुमाऊं के खाते में डाल दिए। विधानसभा चुनाव से पूर्व तक गढ़वाल से प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल व नेता विपक्ष प्रीतम सिंह अपनी भूमिका निभा रहे थे। लेकिन हार की समीक्षा के बाद हुए बदलाव में गढ़वाल को पूरी तरह साफ कर दिया गया। यशपाल आर्य को नेता विपक्ष की जिम्मेदारी सौंपना पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की जीत मानी जा रही है। आर्य को आगे कर हरीश रावत ने प्रीतम सिंह को किनारे कर दिया। पार्टी आलाकमान ने करण माहरा को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप अप्रत्याशित फैसला किया है। करण हरीश रावत के विरोधी हैं। उन्हें पार्टी की कमान सौंपकर आलाकमान ने हरीश रावत को भी झटका दिया है। विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष बनाए गए कापड़ी अभी तक पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका में थे।

प्रीतम सिंह ने पहली बार पार्टी आलाकमान के खिलाफ खुलकर बोला। वे इस बदलाव से खुश नजर नहीं आए। उन्होंने विधायकी छोड़ने की धमकी दी और कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन केसी वेणुगोपाल और उत्तराखंड कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी देवेंद्र यादव ने पार्टी के उच्च नेतृत्व को उत्तराखंड के बारे में गलत जानकारियां दी।

देवेंद्र यादव ने वेणुगोपाल को कहा कि पार्टी उत्तराखंड में गुटबाजी की वजह से हारी है। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। हमने आज तक कभी भी विधानसभा चुनाव में गुटबाजी को तवज्जो नहीं दी। सबने सामूहिक रूप से चुनाव लड़ा। उन्होंने इस बात पर भी आक्रोश जताया कि उन पर पार्टी के कुछ उम्मीदवारों को हराने का आरोप लगाया गया। उन्होंने कहा कि उन्होंने आज तक पार्टी में ऐसा काम नहीं किया। इस तरह के आरोप बेबुनियाद हैं और उन पर लगाए गए आरोपों की जांच की जाए। यदि आरोप सही निकले तो वे विधायकी से इस्तीफा दे देंगे। प्रीतम सिंह के इस मुखर अंदाज से पार्टी में खलबली मची हुई है।

वहीं दूसरी ओर जब पार्टी आलाकमान नेतृत्व परिवर्तन कर रहा था, तब प्रीतम सिंह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले थे। दोनों का मिलना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलहाल कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने राज्य कांग्रेस में जो बदलाव किया है,उससे पार्टी एकजुट होने की बजाय बिखराव की ओर जा रही है।