उत्तराखंड में हरिद्वार नगर निगम से जुड़े 56 करोड़ रुपए के जमीन घोटाले की जांच में सामने आया है कि भूमि के उपयोग को बदलने और खरीद में नियमों व शर्तों का पालन नहीं किया गया। इस मामले में हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजय वीर सिंह को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पहल पर हरिद्वार नगर निगम के भूमि घोटाले की जांच करवाई गई है। ईएएस रणवीर चौहान ने बीते गुरुवार को शहरी विकास सचिव नितेश झा को इस संबंध में जांच रपट सौंपी थी। जांच में यह बात साफ हो गई है कि लगभग 33 बीघा भूमि का उपयोग बदलने व खरीद में तय नियमों व शर्तों का पालन नहीं किया गया था। जांच रपट में हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी व एसडीएम अजयवीर सिंह को प्रथम दृट्या दोषी पाया गया है।
33 बीघा कृषि भूमि का उपयोग बदलाव केवल 20 दिन के अंदर कर दिया गया
इस मामले में मंगलवार को निलंबित किए गए आइएएस वरुण चौधरी राज्य सचिवालय में अपर सचिव स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। वहीं, एसडीएम अजय वीर सिंह भगवानपुर में तैनात थे। घोटाले के समय अजय वीर सिंह हरिद्वार के एसडीएम थे। नगर निगम भूमि घोटाला सामने आने के बाद उनका तबादला हरिद्वार से भगवानपुर कर दिया गया था। हरिद्वार नगर निगम के अंतर्गत आने वाली 33 बीघा कृषि भूमि का उपयोग बदलाव केवल 20 दिन के अंदर कर दिया गया था।
कूड़े के ढेर के समीप स्थित इस कृषि भूमि को व्यावसायिक भू-उपयोग में तब्दील किए जाने पर इसके दाम 15 करोड़ से उछलकर 55 करोड़ तक पहुंच गए थे। इसके बाद अधिकारियों की मिलीभगत के चलते यह जमीन ऊंचे दामों पर नगर निगम के लिए खरीद ली गई। जांच रपट में जमीन खरीद के औचित्य पर गहरे सवाल उठाए गए हैं। इसके अलावा भू उपयोग परिवर्तन से सरकारी खजाने में लगी करोड़ों की चपत को भी गंभीर प्रशासनिक लापरवाही माना गया है।
जांच अधिकारी आइएएस रणवीर सिंह चौहान ने हरिद्वार डीएम कमेंद्र सिंह व पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी के बयान दर्ज किए थे और हरिद्वार जाकर अभिलेखों की जांच व मौका मुआयना किया था। नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों की बंदरबांट के इस कारनामे में तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह के स्टेनो और डाटा एंट्री आपरेटर से भी पूछताछ की गई। इस मामले में एक कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए हैं। जांच में पाया गया कि उक्त भूमि की खरीद के लिए गठित समिति के सदस्य के रूप में हरिद्वार नगर निगम के अधिशासी अधिकारी श्रेणी-2 (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त) रवींद्र कुमार दयाल, सहायक अभियंता (प्रभारी अधिशासी अभियंता) आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल ने अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। इस आरोप में इन सभी को निलंबित कर दिया गया है।
इस प्रकरण में सेवा विस्तार पर कार्यरत सेवानिवृत्त संपत्ति लिपिक वेदपाल की भी संलिप्तता पाई गई, जिसके बाद उनका सेवा विस्तार समाप्त करते हुए सरकार ने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही हरिद्वार नगर निगम की वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है। नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2024 में आइएएस वरुण चौधरी को नगर निगम का प्रशासक तैनात किया गया था। भूमि खरीद में नगर निगम कानून का पालन किया जाना था। जमीन खरीद से जुड़े शासन के नियम व निर्देश भी नहीं माने गए और 15 करोड़ की जमीन 56 करोड़ रुपए में खरीद ली गई। इस खरीद में चार करोड़ रुपए के स्टांप भी लगाए गए। इस तरह यह घोटाला करीब 60 करोड़ का हो गया है।
इस भूमि घोटाले में एक बात यह भी सामने आ रही है कि संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों ने भूमि खरीद की तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। इस मामले में एक मई को चार अधिकारियों के निलंबन के बाद जांच अधिकारी आइएएस रणवीर सिंह ने हरिद्वार के जिलाधिकारी कमेंद्र सिंह व पूर्व नगर प्रशासक हरिद्वार वरुण चौधरी से पूछताछ की थी। नगर निगम हरिद्वार के चुनाव होने के बाद नवनिर्वाचित मेयर किरण जैसल ने इस भूमि खरीद घोटाले की शिकायत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से की थी और इसकी जांच किए जाने की मांग की थी। मुख्यमंत्री ने जांच आइएएस अधिकारी रणवीर सिंह को सौंपी थी।
जांच रपट के मुताबिक, सराय गांव में स्थित यह भूमि कृषि प्रयोग के लिए थी। यदि इस भूमि को कृषि भूमि के तौर पर खरीदा जाता, तो इसकी कुल कीमत पंद्रह करोड़ के आस पास होती। परंतु इस भूमि के उपयोग को बदलने के बाद इसकी कीमत 54 करोड़ के आस पास हो गई। पिछले साल अक्तूबर में एसडीएम अजयवीर सिंह ने इस जमीन का उपयोग खेती से बदलकर व्यवसायिक कर दिया और कुछ दिनों बाद नगर निगम के अधिकारियों ने इस जमीन का सौदा कर लिया और एक महीने के भीतर नवंबर में इस जमीन की रजिस्ट्री भी करवा ली गई।