जिन अखिलेश यादव ने 2017 के उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य की सीट पर जीत का परचम फहराया था, उसकी हार का हिसाब इस बार के उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ ने रामपुर और आजमगढ़ जीत कर पूरा किया। योगी के लिए दोनों ही लोकसभा सीटों पर जीत का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि एक आजमगढ़ सपाई किला था तो दूसरा रामपुर आजम खां की सियासी रियासत।
2017 के विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्हें अपनी परम्परागत गोरखपुर सीट से इस्तीफा देना पड़ा। वहीं केशव प्रसाद मौर्य को अपनी फूलपुर की लोकसभा सीट, उपमुख्यमंत्री बनने के बाद छोड़नी पड़ी। इन दोनों सीटों में से फूलपुर सपा ने और गोरखपुर सपा ने अपने उस वक्त के सहयोगी निषाद पार्टी के समर्थन से जीती। इन दोनों ही सीटों को खोने का दंश भीतर ही भीतर योगी आदित्यनाथ को पांच साल तक सालता रहा। आजमगढ़ और रामपुर जीत कर योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश से अपना पुराना सियासी हिसाब-किताब चुकता कर लिया।
जबकि अखिलेश यादव ने आजमगढ़ से अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट तो दिया लेकिन वे आजमगढ़ चुनाव प्रचार करने नहीं गए। उनके आजमगढ़ न जाने को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे। लेकिन हकीकत ये रही कि धर्मेंद्र को हमेशा से शिवपाल यादव का करीबी माना जाता रहा है। ऐसे में अखिलेश का आजमगढ़ उपचुनाव में प्रचार के लिए न जाना साफ जाहिर कर रहा है कि अभी तक यादव परिवार के बीच चल रहा शीत युद्ध थमा नहीं है। जबकि रामपुर में सपा सुप्रीमो के प्रचार के लिए न जाने के भी मतलब बहुत गहरे हैं।
इसकी शुरुआत विधानसभा के उत्तर शतीरजत जयंती समारोह में हुई थी, जब प्रणब मुखर्जी बतौर राष्टÑपति इस समारोह में उपस्थित थे। उस वक्त मो. आजम खां ने भरे सदन इस बात की घोषणा की थी कि उन्होंने टीपू को सुलतान बना डाला। टीपू अखिलेश यादव के घर का नाम है। कार्यक्रम के अगले दिन अखिलेश यादव ने आजम साहब के इस बयान की मुखालफत यह कह कर की थी कि सदन में उन्हें घरेलू नाम से न पुकारा जाए।
इस बात का हिसाब अखिलेश यादव ने आजम खां से रामपुर के उपचुनाव में लिया। रामपुर से एक बार सांसद और नौ बार विधायक रहे आजम खां को इस बात का गुमान था कि उन्हें जेल से बाहर आने पर रामपुर की जनता सर आंखों पर बिठाएगी। जेल से बाहर आने के बाद भी चैनलों को दिए साक्षात्कार में आजम खं ने टीपू को सुलतान बनाने की बात दोहराई थी। जिसका खामियाजा उन्हें उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त की शक्ल में भुगतना पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 से अब तक कन्नौज, अमेठी, बदायूं और आजमगढ़ के अलावा रामपुर का किला भी फतह कर इस बात की ताकीद की है कि उत्तर प्रदेश में विरोधियों के किसी भी किले पर काबिज होने की कुव्वत उसके पास है। खास तौर प्आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज कर योगी आदित्यनाथ ने यह संदेश देने में कामयाबी हासिल की है कि यादव और मुसलमान मतदाताओं को किसी एक दल की पूंजी समझने का दौर अब बीती बात हो चुकी है।
एम-वाई फैक्टर के जरिएअपनी सियासी नैया पार लगाने की ख्वाहिश पाले समाजवादी पार्टी के लिए अब सोचने का वक्त है। उन्हें नई रणनीति बना कर उसपर संजीदगी से काम करना होगा। साथ ही इस बात को भी स्वीकार करना हेगा कि विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक विधायक जिता पाने वाली बहुजन समाज पार्टी अभी भी समाजवादी पार्टी के रास्ते में हार के कांटे बिछाने की क्षमता रखती है।