यूपी विधानसभा में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी से उनके बड़े वाले दफ्तर छीन लिए गए हैं। वहीं समाजवादी पार्टी को इस बार पहले से भी बड़ा दफ्तर मिल गया है। अब ये फैसला इसलिए लिया गया है क्योंकि पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी बदल चुकी है, दोनों बसपा और कांग्रेस का संख्याबल विधानसभा में कम हो गया है।

क्या कहते हैं नियम?

इसी वजह से उनका संख्याबल देखते हुए उन्हें छोटे कमरे अलॉट कर दिए गए हैं। असल में यूपी विधानसभा सदस्य नियमावली 1987 की धारा 157 (2) के अनुसार जिस भी पार्टी की संख्या 25 सीटों से ज्यादा रहती है, उन्हें विधानसभा में सचिवालय द्वारा कक्ष, चपरासी, टेलीफोन दिया जाता है। कुछ और सुविधाएं भी मिलती हैं अगर विधानसभा अध्यक्ष के आदेश रहें। लेकिन इस समय कांग्रेस के पास सिर्फ दो विधायक हैं, वहीं बसपा के पास तो सिर्फ एक रह गया है, इसी वजह से दोनों ही पार्टियों को छोटे रूम अलॉट किए गए हैं।

कांग्रेस के लिए बड़ा झटका क्यों?

वैसे आजादी के बाद ये पहली बार है जब देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से उसका यूपी में बड़ा दफ्तर छिन गया है। ये अपने आप में उस पार्टी के लिए बड़ा झटका है जिसने किसी जमाने में दो दशक से ज्यादा समय तक यूपी पर राज किया था। बसपा की बात करें तो उसने भी 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ यहां सरकार बनाई थी, लेकिन अब हर बीतते चुनाव के साथ मायावती की पार्टी का प्रदर्शन भी लचर होता जा रहा है।

क्या होता है विधानसभा वाले कमरों में?

यहां ये समझना जरूरी है कि ओपी राजभर, जयंत चौधरी की पार्टियों को भी यूपी विधानसभा में छोटे रूम अलॉट किए गए हैं। इन रूम में पार्टी विधायकों की मीटिंग होती हैं, कुछ जरूरी फैसले लिए जाते हैं। अब इतने बड़े बदलाव पर अभी तक कांग्रेस या बहुजन समाज पार्टी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।