उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश देने वाले बदायूं के एसडीएम को निलंबित कर दिया गया है। जब आदेश की कॉपी राजभवन पहुंची तो वहां मौजूद अधिकारी सकते में आ गए थे और राजभवन की ओर से इस मामले को लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई गई थी। राज्यपाल के सचिव ने डीएम को एक पत्र भी इसके जवाब में भेजा था जिसमें कड़ी चेतावनी दी गई थी। इस मामले को लेकर आदेश जारी करने वाले पेशकार पर भी गाज गिरी है।
किस मामले में भेजा गया था समन?
यूपी के बदायूं सिविल लाइन थाना क्षेत्र के गांव लोड़ा बहेड़ी के चंद्रहास नाम के व्यक्ति ने सदर तहसील के एसडीएम न्यायिक कोर्ट में एक वाद दायर किया था। जिसमें लेखराज, पीडब्ल्यूडी के अधिकारी और राज्यपाल को पक्षकार बनाया गया था। चंद्रहास ने आरोप लगाया था कि उनकी चाची की जमीन एक रिश्तेदार ने अपने नाम करवा ली है और यह जमीन सरकार द्वारा अधिग्रहित कर ली गई। सरकार से मिला पैसा लेखराज नाम के व्यक्ति ने ले लिया है।
इसे लेकर एसडीएम ने पीडब्ल्यूडी की जगह राज्यपाल के नाम समन जारी कर दिया था। राज्यपाल को राजस्व संहिता की धारा 144 के तहत उनकी कोर्ट में 18 अक्तूबर को तलब होने का आदेश दिया गया था। राज्यपाल सचिव ने इसका जवाब देते हुए कड़ी आपत्ति जताई और संविधान के अनुच्छेद 361 का पूर्णतया उल्लंघन का हवाला भी दिया।
क्या है अनुच्छेद 361?
इस पूरे मामले के सामने आने के बाद राज्यपाल\राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर सवाल सामने आने लगे, राज्यपाल की गिरफ्तारी के कानून पर भी बात होनी लगी। दरअसल अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपालों तथा राजप्रमुखों का संरक्षण करता है। जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति या राज्यपाल या किसी राज्य का प्रमुख अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्त्तव्यों के पालन और उसके द्वारा किये जाने वाले किसी भी कार्य के लिये किसी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगा। राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उसके पद पर रहने के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है।