80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद का एक ही लक्ष्य है 2019 में भाजपा को हराना और नरेंद्र मोदी की सरकार गिराना। अगर उनका गठबंधन मजबूत रहा तो संभव है कि महागठबंधन यूपी में बड़ी जीत हासिल करे मगर यह संभव तभी है जब इन दलों के बीच सीटों के बंटवारे का मसला सुलझ जाय। उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियों सपा और बसपा के बीच मुख्य खींचतान राज्य की सभी 17 रिजर्व सीटों को लेकर है। इन सीटों को दोनों दल अपने-अपने खाते में रखना चाहते हैं। फिलहाल सभी पर बीजेपी का कब्जा है। 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो इनमें से 11 सीट पर बसपा नंबर दो पर रही थी, जबकि पांच सीटों पर सपा नंबर दो पर रही थी और एक सीट पर कांग्रेस नंबर दो पर रह चुकी है। नंबर दो रहने की हैसियत की वजह से बसपा सभी सीटों पर दावा ठोक रही है।
साल 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इन 17 सीटों में से 10 पर सपा का कब्जा रहा है जबकि दो पर बसपा, दो पर कांग्रेस, दो पर बीजेपी और एक पर रालोद का कब्जा रहा है। इस लिहाज से सपा इनमें से अधिकांश पर दावा कर रही है। हालांकि, मौजूदा सियासी परिस्थिति में जातीय समीकरण और पिछले चुनाव के वोट पैटर्न को देखते हुए अगर महागठबंधन के तहत सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद ने चुनाव लड़ा तो राज्य की 17 में से सभी 17 रिजर्व सीटों पर भाजपा की हार हो सकती है। फिलहाल सभी 17 सुरक्षित सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
अगर ऐसा हुआ तो हारने वालों में केंद्र की मोदी सरकार की कृषि राज्यमंत्री कृष्णा राज भी शामिल होंगी। वो शाहजहांपुर सुरक्षित सीट से 2014 में चुनाव जीती थीं और पहली बार ही नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंत्री बनाया। 2014 में कृष्णा राज को कुल 5 लाख 25 हजार 132 वोट (46.45 फीसदी) मिले जबकि नंबर दो पर रहे बसपा के उम्द सिंह कश्यप को कुल 1 लाख 89 हजार 603 (25.62 फीसदी) वोट, सपा के मिथलेश कुमार को 2 लाख 42 हजार 913 (21.49 फीसदी) वोट और कांग्रेस के चेतराम को 27 हजार 011 (2.39 फीसदी) वोट मिले। अगर 2014 का ही चुनावी पैटर्न दोहराया गया यानी मोदी लहर रही तब भी इस सीट से भाजपा की जीत नहीं हो सकती है। वैसे पिछले साढ़े चार सालों में सियासी हवा भा बदली है।
इस बीच, बहुजन समाज पार्टी की चीफ मायावती ने फिर दोहराया है कि सम्मानजनक सीटें मिलेंगी तभी वो लोकसभा चुनावों में गठबंधन करेंगी वरना वो एकला चल सकती हैं। इधर, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफतौर पर कहा है कि उनके लिए सीटें अहम नहीं हैं बल्कि 2019 का लक्ष्य महत्वपूर्ण है। हालांकि, भाजपा ने शिवपाल यादव को फोड़कर महागठबंधन की धार कमतर करने की कोशिश की है लेकिन यह कितना कारगर होगा फिलहाल कहना मुस्किल है।