मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार साल 2019 से पहले, उत्तर प्रदेश में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा के लिए कमिटी गठित करने वाली है। चार सदस्यीय समिति जांच करेगी कि क्या पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को उनकी संख्या के आधार पर आरक्षण मिल रहा है? चार सदस्यीय इस समिति का नाम ‘उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग न्यायिक समिति’ होगा। कमिटी के पास अपनी रिपोर्ट को दाखिल करने के लिए दो महीने का वक्त होगा। इस समिति में रिटायर जज राघवेंद्र कुमार, पूर्व नौकरशाह जेपी विश्वकर्मा, बीएचयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे भूपेन्द्र सिंह और वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक राजभर शामिल हैं।
मीडिया से बात करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा,”अभी तक पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण का लाभ कुछ गिनी-चुनी पिछड़ी जातियां ही उठाती रही हैं। उदाहरण के लिए, आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ यादव जाति के लोगों ने उठाया है। लेकिन महापिछड़ा वर्ग जैसे पासी और राजभर समाज को उसकी संख्या के मुताबिक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। इनके अलावा भी अन्य जातियां जैसे घोसी, कंबोज, दर्जी और बिंद भी लाभ न ले पाने वालों में शामिल हैं। इसीलिए इस मामले में दोबारा विचार करने की जरूरत है।”

सूचना के मुताबिक, वर्तमान में 60 से ज्यादा ऐसी पिछड़ी जातियां हैं, जिन्हें उनकी संख्या के मुताबिक आरक्षण नहीं मिल सका है। साल 2002 में जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उस वक्त उन्होंने कोशिश की थी कि वह अति पिछड़ों और महा दलितों के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण की व्यवस्था कर सकें। लेकिन वह प्रस्ताव जमीन पर उतारा नहीं जा सका। हालांकि राजनीति के कई विद्वान मानते हैं कि योगी सरकार ये फैसला मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी की जड़ों को काटने के लिए कर रही है। समाजवादी पार्टी के मुख्य समर्थक यादव हैं, जिन्होंने पिछड़ा वर्ग आरक्षण का लाभ कथित तौर पर सबसे ज्यादा उठाया है।
मीडिया से बात करते हुए समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता और एमएलसी सुनील सिंह साजन ने कहा,”सरकार कमिटी की आड़ में आरक्षण खत्म करने की साजिश कर रही है। हमारी पार्टी के अध्यक्ष ने मांग की है कि हर किसी को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए और सरकार को सबसे पहले जाति आधारित जनगणना के आंकड़े का अध्ययन करना चाहिए। लेकिन भाजपा जाति आधारित जनगणना करवाने के लिए तैयार नहीं है। इसके पीछे कारण क्या हैं, वह बेहतर जानते होंगे। सरकार ये कदम पिछड़ों और अति पिछड़ों के आरक्षण को भविष्य में कमजोर करने के लिए उठा रही है।”

वहीं इस मामले में सरकार में शामिल पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री और सुहैलदेव राष्ट्रीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर की अलग ही राय है। राजभर ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा,”मैं पिछले 20 मार्च को इस मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर उनकी अनुमति ले चुका हूं। उन्होंने कहा है कि हम इसे 2019 के चुनावों से छह महीने पहले लागू करेंगे। जब मैं दिल्ली से आया, सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस मामले को राज्य विधानसभा में रखा। 11 अप्रैल को जब अमित शाह लखनऊ आए थे। मैं, मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एमएन पांडेय ने साथ बैठकर चर्चा की थी। हम चारों इस बात पर रजामंद थे कि 27 प्रतिशत पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण में आरक्षण होना चाहिए। शाह ने इस बात पर जोर दिया था कि ये लोकसभा चुनावों से छह महीने पहले लागू हो जाना चाहिए ताकि चुनाव में इसका अच्छा संदेश जाए।”
इस फैसले से यूपी की सियासत में उठने वाले तूफान और यादवों और जाटवों की नाराजगी पर उन्होंने कहा,” यादव और जाटव क्यों नाराज होंगे? ये गलत धारणा है और लोगों को भ्रमित करने के लिए फैलाई जा रही है। क्या वे बिहार में नाराज हुए थे जब नीतीश कुमार ने पिछड़ा वर्ग में अति पिछड़ा वर्ग को अलग किया था? क्या यादव सिर्फ उत्तर प्रदेश में नाराज होंगे? अगर एक परिवार में चार भाई हैं। उनके पास 100 बीघा पैतृक जमीन है। अगर एक भाई को 60 बीघा दे दिया जाए, दो भाइयों को बीस बीघा जमीन दे दी जाए और एक भाई को आधा बीघा जमीन भी न मिले तो क्या उनमें झगड़ा नहीं होगा?”