उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। बताया जाता है कि समाजवादी पार्टी से विधायक आजम खान और उनका परिवार नाराज चल रहा है। इसका कारण है कि अखिलेश यादव मुसलमानों को अधिक तरजीह नहीं दे रहे हैं। वहीं अखिलेश के करीबियों का मानना है कि अखिलेश यादव नहीं चाहते कि पार्टी पर मुस्लिम पक्षधर होने का आरोप लगे ,इसलिए वह आजम खान से नहीं मिल रहे हैं। लेकिन वह आजम खान को गार्जियन की तरह मानते हैं।

आजम खान को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से ऑफर मिला है। आजम खान को AIMIM ने ओवैसी के साथ आने को कहा है। AIMIM के प्रवक्ता मोहम्मद फरहान ने आजम खान को सीतापुर जेल में पत्र लिखकर भेजा है और कहा है कि अखिलेश यादव मुसलमानों के हितैषी नहीं है और आप हमारे साथ आइए। चिट्ठी में लिखा गया है कि, “अखिलेश को मुसलमानों से कतई हमदर्दी नहीं है। पिछले 3 सालों में न ही अखिलेश और न ही उनके सलाहकारों ने आजम को जेल से छुड़वाने के लिए कोई ठोस कदम उठाया है।”

कुछ दिन पहले ही रामपुर में समाजवादी पार्टी की जिलास्तरीय बैठक में आजम खान के मीडिया प्रभारी फसाहत अली खान ने एक बयान दिया था, जिससे प्रदेश की राजनीति में हड़कंप मच गया था। फसाहत अली खान ने कहा था कि मुसलमानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, बुलडोजर चलाए जा रहे हैं लेकिन अखिलेश यादव चुप हैं। मुसलमानों ने वोट दिया तब जाकर सपा को 111 सीटें आई हैं। अब आजम खान साहब को फैसला लेना चाहिए।”

फसाहत अली खान यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि योगी आदित्यनाथ शायद सही कहते थे कि अखिलेश यादव खुद नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आए। फसाहत अली खान ने कहा था कि, “अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव को मुसलमानों ने ही वोट देकर मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन आज वह चुप है और आजम खान से सिर्फ एक बार जेल में मिलने गए हैं। आजम खान ने लोकसभा की सदस्यता इसलिए छोड़ी ताकि विधानसभा में जनता के मुद्दों को उठा सके, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के लिए अखिलेश ने उनके नाम पर विचार नहीं किया।”

बता दें कि अगर आजम खान और उनका परिवार समाजवादी पार्टी छोड़ता है तो इससे समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान होगा। आजम खान मुसलमानों में अच्छी पैठ रखते हैं और उनका राजनीतिक तजुर्बा और प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को समझने की क्षमता सपा को काफी मदद करती है।