दुनिया का सातवां अजूबा आगरा स्थित ताजमहल को लेकर कुछ समय से एक विवाद चल रहा है और हिंदू संगठनों और नेताओं द्वारा इसके हिंदू मंदिर ‘तेजो महालय’ होने का दावा किया जाता रहा है। इस बीच, भाजपा नेता रजनीश सिंह ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की थी कि ताजमहल के जो 20 दरवाजे बंद हैं, उन्हें दोबारा खोला जाए, साथ ही फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी जो ताजमहल के ‘वास्तविक’ इतिहास के बारे में पता लगाएगी। कोर्ट ने भाजपा नेता की इस याचिका को खारिज कर दिया।

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इसके एक दिन पहले, राजसमंद से भाजपा सांसद दीया कुमारी ने दावा किया था कि जिस जमीन पर ताज है, वह उनके पूर्वजों की है। उन्होंने कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वे इसके दस्तावेज दिखाने को तैयार हैं। कई भाजपा नेताओं ने भी बार-बार यह दावा किया है कि ताज वास्तव में शाहजहां के शासनकाल से बहुत पहले बनाया गया एक हिंदू मंदिर है। 2017 में विनय कटियार (तब भाजपा के राज्यसभा सदस्य) ने दावा किया था कि ताजमहल वास्तव में एक शिव मंदिर ‘तेजो महालय’ था, जिसे एक हिंदू शासक द्वारा बनाया गया था।

ताजमहल के ‘तेजो महालय‘ होने का दावा सबसे पहले पीएन ओक नामक इतिहासकार ने 1989 में लिखी एक किताब में किया था। उन्होंने दावे को स्थापित करने की कई बार कोशिश की और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी। हालांकि, उनकी याचिका को सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया था। 1976 में प्रोफेसर ओक ने एक किताब लिखी, जिसका शीर्षक था- “लखनऊ के इमामबाड़े हिंदू भवन हैं” और दूसरी किताब ‘दिल्ली का लाल किला हिंदू लालकोट है’। 1996 में उन्होंने ‘इस्लामिक हैवॉक इन इंडियन हिस्ट्री’ प्रकाशित की।

पीएन ओक की 1989 की किताब, ‘ताज महल: द ट्रू स्टोरी’ ताजमहल के इर्द-गिर्द वर्तमान विवादों को आकार देती है। ओक ने तर्क दिया कि शाहजहां का ताज वास्तव में भगवान शिव का एक हिंदू मंदिर था जिसे एक राजा परमर्दीदेव ने चौथी शताब्दी में बनावाया था। ओक के मुताबिक, न केवल मुगलों के आने से सदियों पहले ताज का निर्माण किया गया था, “हमारे शोध ने मजूबती से इस बात को स्थापित किया है कि ताजमहल शब्द प्राचीन हिंदू नाम ‘तेजो महालय’ का एक गलत उच्चारण है।”

क्या है ओक थ्योरी

उनकी थ्योरी है कि 12वीं शताब्दी के अंत में मुहम्मद गोरी के भारत पर आक्रमण के दौरान ‘तेजो महालय’ को तोड़ दिया गया और हुमायूं (16 वीं शताब्दी के मध्य) की हार के बाद यह जयपुर शाही परिवार के हाथों में चला गया और जय सिंह के द्वारा इसका प्रबंधन किया जा रहा था, जो एक मुगल मनसबदार और आमेर के राजा थे। ओक के अनुसार, मंदिर को तब शाहजहां ने अपने कब्जे में ले लिया और इसे एक मकबरे में बदल दिया, फिर इसका नाम बदलकर ताजमहल कर दिया।